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________________ शिवादेशक शिवादेशक पुं० भविष्य भाखनारो (२) शुभ समाचार लावनारो शिवालय पुं० शिवनुं रहेठाण (२) न० शिवनुं मंदिर (३) स्मशान शिवी पुं० द्वि० व० शिव अने पार्वती शिशिर वि० ठंडु; शीतळ (२) शिशिर ऋतुने लगतुं (३) पुं०, न० ठंडी; हिम (४) माघ अने फागण मासनी ऋतु शिशिरकिरण, शिशिरदीधिति पुं० चंद्र शिशिरमथित वि० ठंडीथी पीडा शिशिरात्यय, शिशिरापगम पुं० वसंत ऋतु (शिशिर ऋतु जतां आवे ते) शिशिरांशु पुं० चंद्र शिशु, शिशुक पुं० बाळक; बच्चु . शिशुपाल पुं० चेदि देशनो राजा शिशुमार पुं० एक जळचर प्राणी (२) ध्रुव पासेनुं ताराचक्र शिशुमारशिरस् न० ईशान खूणो शिश्न न० पुरुषनी गुडेंद्रिय शिश्नोदरपरायण वि० जीभना स्वादमां अने कामवासनामां रत शिष् १० उ०,७५० शेष - बाकी राखवू (२) ७ प० भेद बताववो शिष्ट ('शिष' नुं भू० कृ०) वि० बाकी रहेढुं; वधेलु (२) आज्ञा करेलु (३) सुशिक्षित ; डायु (४) मुख्य; आगेवान शिष्टाचार पुं० डाह्या-विद्वान-माणसोनो व्यवहार (२) सभ्य रीतभात शिष्टि स्त्री० शासन (२) हुकम (३) सजा; शिक्षा शिष्ट्यर्थम् अ० सुधारणा-शिक्षण माटे शिष्य पुं० विद्यार्थी (२) चेलो शिघ १५० सूंघवं गरजवं शिज १,२ आ०,१० उ० रणकवु (२) शिज पुं० रणकार (घरेणांनो) शिजित ('शिंज्' नुं भू० कृ०) रणकतुं (२) न० (घरेणांनो) रणकार शिंजिनी स्त्री० धनुष्यनी दोरी शील शिबा, शिबि, शिबी स्त्री० शिंग; फळी शिशपा स्त्री० एक झाड (२)अशोक वृक्ष शी २ आ० शयन करवू; सूर्बु शोक १ आ० छांटवू शोकर पुं० फर फर (पाणीनी) (२) टीपुं; फोरं (पाणी के वरसादD) शीकरवर्षिन वि० फरफर रूपे वरसतुं शीकरिन् वि० फरफर वरसावतुं शीघ्र वि० झडपी; वेगवंत शीघ्रचेतन पुं० कूतरो शीघ्रता स्त्री०, शीघ्रत्व न० झडप; वेग; उतावळ शीघ्रम् अ० जलदीथी; वेगथी शीघ्रलंघन वि० जलदी रस्तो कापतुं शीत वि० ठंडु; टाढुं (२) मंद; सुस्त (३) न० टाढ; ठंडी (४) कफ (धातु) शीतकिरण, शीतग,शीतद्यति, शीतरश्मि, शीतरच (-चि) पुं० चंद्र शीतल वि० ठंडु (२)पीडा न थाय ते, शीतला स्त्री० बळियाना रोगनी देवी; ते रोग (२) रेती शीताल वि० टाढथी अकडाई गयेलं शीतांश पुं० चंद्र शीतीभू १५० टाढुं पाडवू शोधु पुं०, न० मद्य (शेरडीनुं) शीफर वि० रम्य शीर पुं० अजगर शीर्ण ('श'नुं भू० कृ०) वि० चीमळाई गयेलं; सडी गयेलुं (२) तूटी-फाटी गयेलु (३) सुकाई गयेलं; कृश शीर्ष न० माथु लायक शीर्षच्छेद्य वि० माथु कापी नाखवा शीर्षत्राण न० लोखंडी टोपो शील १५० मनन करवू; चिंतवq (२) भजवू; पूजq(३)आचर (४) १० उ० आदर करवो(५) अभ्यास-पुनरावृत्ति करवी (६) वारंवार मुलाकाते जवू (७) पहेरवू सं. गु.-३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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