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________________ शक्त शत्रु ४९१ शक्त ('शक' भू० कृ०) वि० शक्ति- शतकृत्वस् अ० सो वखत मान; समर्थ (२) बलिष्ठ (३) समृद्ध शतकोटि वि० सो धारवाळू (२) पुं० (४) अर्थ बताववानी शक्तिवाळं इन्द्रन वज्र (३) स्त्री० सो करोड शक्ति स्त्री० बळ; सामर्थ्य (२) राज- शतक्रतु पुं० इंद्र सत्ता (३) कवित्व शक्ति (४) देवनी शतघ्नी स्त्री० एक अस्त्र; लोखंडना मूर्तिमंत ताकात (तेनी पत्नी तरीके) खोलावाळी मोटी शिला (५)एक अस्त्र (६) भालो (७) शब्दनुं शतचंद्र पुं० सो चंद्रबिथी शणगाअर्थ सूचववानुं सामर्थ्य (अभिधा, रेली तरवार के ढाल लक्षणा, व्यंजना)(८) (शाक्तो पूजे शतदल न० कमळ छे ते)जगतना मूळ कारणरूप योनि । शतधृति पुं० ब्रह्मा (२) इंद्र (३)स्वर्ग शक्तिधर पुं० भालावाळो (२) कार्तिकेय शतपत्र पुं० मोर (२) लक्कडखोद पक्षी शक्तिध्वज पुं० कार्तिकेय (३) सारस (४) एक जातनो पोपट शक्तिनाथ पुं० शिव (५) न० कमळ शक्तु पुं०, न० सक्तु; साथवो शतपत्रयोनि पुं० ब्रह्मा शक्त्यपेक्ष वि० शक्ति इच्छतुं शतपथ पुं० शुक्ल यजुर्वेदनो ब्राह्मण ग्रंथ शक्य वि० बनी शके के करी शकाय एवं (सो खंडवाळो) (२) सीधुं दर्शावातुं (जेम के शब्दनो शतपाक वि० सो वखत उकाळेलं अर्थ) (३) मधुरभाषी शतमख, शतमन्यु पुं० इंद्र शक्र पुं० इंद्र (२)स्वामी (३) घुवड (४) शतमान न० पल वजन- रू' कुटज वृक्ष (५) अर्जुन वृक्ष शतमुख वि० सो मुखवाळू ; सो मार्गवाळं शक्रगोप पुं० इंद्रगोप; गोकळगाय शतयज्वन् पुं० इंद्र (सो अश्वमेध शक्रजित् पुं० रावणनो पुत्र मेघनाद यज्ञ करनारो होवाथी) ('इंद्रने जीतनार') करातो ध्वज शतलोचन पुं० इंद्र(' सहस्रलोचन' पण) शक्रध्वज पुं० इंद्रना मानमां ऊभो शतशस् अ० सो वखत (२) सेंकडो शक्रभिद् पुं० जुओ ‘शक्रजित्' प्रकारे (३) सेंकडो- अनेक होय तेम क्व पुं० हाथी शतसुख न० पार वगरनुं सुख शचि (-ची) स्त्री० इंद्राणी शतलदा स्त्री० वीजळी (२) वज्र शठ वि० ठग; धूर्त (२) दुष्ट ; दुरा- शताक्ष वि० सो आंखवाळं चारी (३) पुं० ठग-धूर्त माणस (४) शताक्षी स्त्री० रात्री जूठो प्रेमी (५) मूर्ख के आळसु माणस शतानंद पुं० गौतम – अहल्यानो पुत्र; शठोदर्क वि० अंते छतरनारं जनकनो पुरोहित शण न० भींडीनी जातनो एक छोड शताब्द न० सैकुं शत न० सो (संख्या) (२) कोई पण शतायुत् वि० सो वर्ष जीवतुं मोटी संख्या शतिन् वि० सो; असंख्य (३) पुं० सो शतक वि० सो (२)सो संख्यावाळं (३) (सिक्का के चीजो) नो मालिक न० सैकुं (४) सो श्लोकनो संग्रह . शत्रु पुं० हरावनारो, विजेता; नाश शतकुंभ पुं० एक पर्वत-ज्यां सोनुं मळतुं करनारो (२) दुश्मन; विरोधी; कहेवाय छे (२)एक यज्ञ (३)न० सोनुं हरीफ (३) पडोशनो हरीफ राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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