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________________ वैघसिक ४८० वैषस वैघसिक वि० वधेलं भोजन खानारु वत्तपाल्य वि० कुबेर संबंधी (तपस्वीओनो एक वर्ग) बंद पुं० डाह्यो माणस वैचक्षण्य न० विचक्षणता; कुशळता वैदग्ध, न०, वैदग्धी स्त्री०, वैदग्थ्य न० वैचित्य न० दुःख; खेद निपुणता; कुशळता (२) गोठवणीनी वैचित्र, वैचित्र्य न० विचित्रता (२) कुशळता(३)चतुराई ; चालाकी विविधता (३)आश्चर्य (४)विकळता वैदर्भ पुं० विदर्भ देशनो राजा (२) वैजन्य न० एकांत; निर्जनता न० संदिग्ध वाणी वैजयंत पुं० इंद्रनो महेल (२) इंद्रनो वंदर्भो स्त्री० दमयंती (२) रुक्मिणी ध्वज (३)ध्वज (४) इंद्र (३)साहित्यनी अमुक शैली (काव्य) वैजयंतिका स्त्री० धजा; पताका (२) वैदिक वि० वेदोने लगतुं; वेदविहित मोतीनो एक जातनो हार (२) पवित्र (३) पुं० वेद जाणनारो वैजयंती स्त्री० धजा; पताका (२) ब्राह्मण (४) न० वेदवाक्य हार; माळा (३)विष्णुनी माळा वैदुषी स्त्री०, वैदुष्य न० विद्वत्ता वड्र्य न० एक मणि वैदूर्य न० एक मणि वणव वि० वांस- (२) वांसनो दंड वैदेशिक वि० विदेश - परदेशन (२) पुं० परदेशी माणस (३) वांसनुं फळ के बीज वैदेश्य वि० विदेशी (२)न० परदेशीपणं बणविक पुं० वांसळी वगाडनारो वैणिक पुं० वीणा वगाडनारो वैदेह पुं० विदेहनो राजा (जनक) (२) विदेहनो वतनी (३)वेपारी (४) वैतथ्य न० खोटापणुं; जूठापणुं वैश्यनो ब्राह्मण स्त्रीथी थयेलो पुत्र वैतनिक वि० पगारथी- वेतनथी काम वैदेहाः पुं० ब० व० विदेहना लोको करनारुं (२) पुं० मजूर; नोकर वैदेही स्त्री० सीता वैतरणि (-णी) स्त्री० नरकनी एक नदी वैद्य वि० वेदो संबंधी; आध्यात्मिक वैतस वि० नेतर संबंधी (२) नेतर (२) वैदा संबंधी (३) पुं० डाह्योजेवू (बळवान सामे नमी जनारु) पारंगत माणस (४)वैदूं करनार (५) वैतस्तिक वि० वेंत लांबं (बाण) ब्राह्मणथी वैश्य स्त्रीने थयेलो पुत्र वैतंसिक पुं० पारधी; पंखी पकडनारो (६) शूद्रने वैश्य स्त्रीथी थयेलो पुत्र (२) खाटकी; मांस वेचनारो (३) वैद्यक न० वैदक; वैदं न० फांदामां नांखतुं ते वैद्युत वि० विद्युतने लगतुं (२) न० वैतान वि० यज्ञ संबंधी (२) न० वीजळीनुं तेज-प्रकाश यज्ञकर्म (३)चंदरवो [आहुति वैध वि० विधि - धाराधोरण मुजबर्नु वैतानिक वि० यज्ञ संबंधी (२) न० वैधर्म्य न० भिन्नता; विशिष्ट गुणोनो वैतान्य न० खिन्नता भेद (२) विरुद्धता (३) विरुद्ध धर्म के वैतालिक पुं० भाट; चारण; स्तुति- कर्तव्यवाळा होवापणुं (३) अधार्मिकता गानथी राजाने जगाडनारो (२) बंधव वि० चंद्र संबंधी (२)पुं० बुधग्रह जादुगर; वेताल साधनारो (३) न० वैधवेय पुं० विधवानो पुत्र ६४ कळाओमांनी एकनुं ज्ञान वैधव्य न० विधवापणुं बतृष्ण्य न० तृष्णानी शांति; तृष्णानो वैषस वि० ब्रह्माए रचेलं (२) विधि - अभाव (२)तरस छीपवी ते नसीबथी बनेलं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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