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________________ ४७८ वेणिबंध वेणिबंध पुं० वाळनो गूंथेलो चोटलो वेदमातृ स्त्री० गायत्रीमंत्र (२) सरवेणिसंहार पुं० छूटा वाळने वेणीमां स्वती, सावित्री अने गायत्री बांधवा ते वेदवाद पु० कर्मकांड वेणी स्त्री० जुओ 'वेणि' वेदविद्वस् वि० वेद जाणनाएं वेणु पुं० वांस (२) नेतर; बरु (३) वेदव्यास पुं० (वेदोने गोठवनार) वांसळी (४) पताका व्यासमुनि वेणुक पुं० वांसळी (२) वासळी वगा- वेदस् न० धन; मिलकत डनारो (३) न० वांसनो परोणो वेदांग न० वेदनां छ अंगो (शिक्षा, वेतन न० पगार; रोजी कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, वेतस पुं० नेतर; बरु ज्योतिष) -मान दरेक वेतसगह न० नेतरनो बनेलो मंडप वेदांत पुं० हिंदु तत्त्वज्ञानना छ दर्शनोवेतसवृत्ति वि० नेतरनी पेठे वळी ___मांनुं छेल्लु दर्शन; उत्तरमीमांसा - नमी जतुं वेदि स्त्री० यज्ञ माटेनो कुंड (२)वच्चेथी वेतसी स्त्री० नेतर; बरु सांकड़ो एवो अमुक आकारनो कुंड वेतंड पुं० हाथी (जेथी स्त्रीनी कमर तेनी साथे बेताल पुं० एक जात- भूत; मडदामां सरखावाय छे) (३) मंदिर के पेठेलुं भूत (२) द्वारपाळ महेलना आंगणानो चोतरो (४) वेतालसाधन न० वेताळने साधी तेनी ऊंचु आसन (५) मुद्रा; महोर मदद मेळववी ते [ मेळवनारो । वेदिका स्त्री० यज्ञकुंड (२)जुओ 'वेदि' वेतृ पुं० ज्ञाता (२) ऋषि (३)पति (४) ___ अर्थ २ (३) बेठक (४) आंगणानी वेत्र पुं०, न० नेतर; बरु; वांस (२) वच्चे आवेलो छाजवाळो चोतरो दंडो (३) वृत्रासुर [चोकीदार (५)मंडप थियेली) वेत्रधर, वेत्रधारक पुं० छडीदार; वेदिजा स्त्री० द्रौपदी (यज्ञकुंडमां उत्पन्न वेत्रयष्टि, वेत्रलता स्त्री० नेतरनो दंड वेदित वि० जणावेल वेत्रवती स्त्री० एक नदी (आजे जेने वेदिन वि० जाणनारुं (२) परणनाएं बेटवा कहे छे) वेदी स्त्री० जुओ 'वेदि' वेत्रवल्ली स्त्री० एक जातनो सुंदर वेद्य वि० जाणवानु; जाणवा लायक वांस (जेमांथी मोती मळतुं कहेवाय छे) (२) शीखवा - समजवा योग्य (३) वेद पुं० ज्ञान (२) पवित्र ज्ञान ; हिंदु- परणाववानुं ओना प्राचीन धर्मग्रंथ (ऋग्वेद, वेध पुं० वींधवं ते (२) दर; छिद्र ; यजुर्वेद, सामवेद अने अथर्ववेद) (३) खाडो (३) ऊंडाई (खाडानी) (४) कर्मकांड; यज्ञप्रक्रिया (४) स्मृति सूर्य, ग्रह, नक्षत्र वगेरेनुं स्थळ नक्की साहित्य ('आम्नाय' ने आधारे प्रक्र्तेल) करवं ते वेददृष्ट वि० वेदोए फरमावेलु के वेधक पुं० (रत्नो) वींधनारो मान्य राखेलं वेघस् पुं० स्रष्टा (२) ब्रह्मा (३) वेदन न०, वेदना स्त्री० जाणवू ते ब्रह्मा पछीनी गौण स्रष्टा (दक्ष इ०) (२) लागणी (३) पीडा; दुःख । वेधिन वि० वींधनालं . (४) मिलकत (५) लग्न वेप १ आ० धूजवू; कंपवू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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