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________________ विभावन विभावन न०, विभावना स्त्री० तत्वनिर्णय (२) चर्चा; परीक्षणं (३) कल्पना; धारणा (४) विकास (५) पालन (६) दर्शन (७)प्रगट करवू ते विभावनीय वि० दृश्य विभावर वि० प्रकाशित; तेजस्वी विभावरी स्त्री० रात्रि (२)वाचाळ स्त्री (३)दुराचारी स्त्री [जातनो हार विभावसु पुं० सूर्य (२)अग्नि (३)एक विभावित वि० प्रगट करेलु; देखाय तेम करेलु (२) जाणेलं; समजेलं; अवधारित करेलु (३) कल्पेलं; अनुमान करेलु (४)सिद्ध थयेलुं के करेलु विभावितकदेश वि० एक अंशमां जे पकडाई गयं छे-दोषित पुरवार थयुं छे तेवू [शकाय तेवू विभाव्य वि० समजी शकाय-चितवी विभास् स्त्री. प्रकाश; तेज विभिद् ७ उ० भागवू; तोडवू (२) भोंकवृं; वींधq (३) जुदुं पाडवू (४) छोडवं (गांठ) (५)भंग करवो (६) भेदभाव ऊभो करवो -कर्मणि बदलावं -प्रेरक० जुएं करवू (२) भेदभाव ऊभो थाय तेम करवु (३)दूर करवू; हांकी काढ विभिदा स्त्री० भेद विभिन्न वि० भांगेलं; तूटेलं (२) वींधायलं; घवायलं (३) हांकी काढेलं; विखेरी काढेलु; दूर करेलु (४) हताश (५) मिश्रित (६) प्रगट करेलु के थयेलं (६) बेवफा नीवडेलुं (७) पुं० शिव विभी वि० निर्भय विभीतक पुं० बहेडान झाड विभीषण वि० भयकारक (२) पुं० रावणनो भाई (रामनो भक्त) विभीषा स्त्री० डराववानी इच्छा विभ्रष्ट विभीषिका स्त्री० डर; भय (२) डराववानुं साधन (चाडियो) विभु वि० बळवान ; शक्तिशाळी (२) मुख्य; श्रेष्ठ (३) शक्तिमान (४) संयमी; आत्मनिग्रही (५) सर्वव्यापी (६) पुं० आकाश (७) स्वामी; राजा (८) सम्राट; राजा (९) शिव विभुग्न वि० वळेल; वाळेलं विभुता स्त्री० सामर्थ्य ; प्रभाव विभू १५० देखावू; प्रगट थर्बु (२) व्यापq (३)पूरता थq; शक्तिमान थव -प्रेरक विचारवं; चिंतवq (२) जाणवू (३) निहाळवू (४) प्रगट करवु (५)धार; कल्पq (६)पुरवार करवं (७) रक्ष विभूति स्त्री० शक्ति; सामर्थ्य (२) ऐश्वर्य; संपत्ति (३)अलौकिक शक्ति -सिद्धि (४) विस्तार विभूष १० उ० शणगारQ विभूषण न० आभूषण; अलंकार विभूषा स्त्री० आभूषण; अलंकार विभूषित वि० शणगारेलं; अलंकृत (२) न० आभूषण; शणगार विभेद पं० भागवं; जुदं पाडवं; टुकडा करवा (२) विभाग; भागला; जुदापणुं (३) वींधq - घायल करवं ते (४) विरोध (५) वेर (६) भव चडाववां ते (७) विविधता विभ्रम १, ४, प० भटकवू; भम, (२) गोळ फरवु (३) मंझावु ; गूंचवावु (४) पटपटावq (पुछडी) विभ्रम पु० आमतेम भटकवू ते (२)गोळ फरवू ते (३) भ्रम; भूल (४)व्याकुळता (५) व्याकुळताने कारणे घरेणां वगेरे अस्थाने पहेरवां ते (६) विलासचेष्टा (७) सौंदर्य ; शोभा (८) क्षोभ ; गाभरापणुं (९)गर्व; अभिमान विभ्रष्ट वि० पडी गयेलु; जुदुं पडेलु; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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