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________________ ४५० वितनु सिद्ध कर; पार पाडवु (९) सज्ज- तैयार कर पु० कामदेव वितनु वि० पातळ; नाजुक ; सुंदर (२) वितप १ आ० तप:प्रकाशवं (२)ताप वितमस्, वितमस्क वि० अंधकार विना नु; प्रकाशित (२) शुद्ध; निष्कलंक । वितरण न० पार करी जवं ते (२) बक्षिस; भेट (३) तजी देवु ते वितर्क १० उ० तर्क के कल्पना करवी (२) मानद्धारवं ( ३) अपेक्षा राखवी (४) शोधी काढनु ; निश्चित कर वितर्क पुं० दलील; तर्क; अनुमान (२) धारणा; मान्यता (३) कल्पना (४) संशय (५) चर्चा-विचारणा (६) खोटी कल्पना के धारणा (७)हेतु; प्रयोजन । विर्ताद, विदिका, वितर्दी, वितर्द्धि (-झै)स्त्री० चोक के आंगणामांऊभो करेलो चोतरो; बेसवानी ऊंची चोखंडी जगा (२) ओसरी; वरंडो वितल न० सात पाताळ पैकी वीज वितंडा स्त्री० पोतानो पक्ष ज न होय अने सामा पक्षनुं खंडन कर्या करवं ते (२) खोटो बकवाद; नकामी माथाझीक वितंत्री स्त्री० बेसूरी वीणा (तार ऊतरी जवाथी) वितान वि० खाली; शून्य (२) मूर्ख (३) खिन्न ; उदास (४) दुष्ट ; स्वच्छंदी (५) पुं०, न० विस्तार (६) चंदरवो (७) ओशीकुं (८) जथो; समूह (९) यज्ञ ; आहुति (१०) न० विश्रांति; फुरसद वितानक पुं०, न० विस्तार (२) ढगलो जथो (३) चंदरवो देवू) वितानायते आ० (चंदरवा तरीके काम वितायमान वि० फेलातुं वितीर्ण वि० ओळंगी गयेलु (२) आपेलं; बक्षेलु (३)नीचे ऊतरेलु वितुन्न वि० भोंकायेलं; चिरायेलु विदग्ध वितृष्ण वि० तष्णारहित वितृष्णा स्त्री० तीव्र इच्छा वित १५० ओळंग; पार करवू (२) आपq; बक्षवु (३)उत्पन्न करवू वित्त वि० (विद् 'न भू० कृ०) शोघेलु; जडेलु (२) मळेलं; मेळवेल (३) तपासेलु (४) जाणीतुं प्रसिद्ध (५) न० धन; मिलकत (६)शक्ति (७)सोनु वित्तक वि० प्रख्यात (२) कीर्तिवान वित्तप, वित्तपति, वित्तपाल पुं० कुबेर वित्तपेटा(-टी) स्त्री० पैसानी कोथळी वित्तमात्रा स्त्री० मिलकत; रकम वित्तसमागम पुं० धनप्राप्ति; आवक वित्तेश पुं० कुवेर वित्तेहा स्त्री० धननी इच्छा वित्रस् १,४प० वी; त्रास वित्रास पुं० भय; त्रास; डर विद् २ प० जाणव; समजवू ; खोळी काढवु; नक्की करवू (२) अनुभव (३) गणबु; मानवं -प्रेरक० जणाव; कहेव (२) शीखव; समजावयु (३) अनुभवत्रु विद् ४ आ० विद्यमान होवू (२) थवं विद् ६ उ० [विदति-ते मेळव ; प्राप्त करव (२) खोळी काढ; अळख (३) अनुभवयु (४) पाणवं विद् ७ आ० [विन्त ] जाणवू ; समजबु (२) गणवू; मानव (३) मळवु (४) विचारवं ; चितववु (५) तपासवू विद १० आ० कहे; जणाव (२) अनुभव (३) रहे विद् वि० (समासने अंते) जाणकार; परिचित (२) पु० डाह्यो माणस; विद्वान (३) स्त्री ज्ञान (४) बद्धि विद पुं० पंडित; डाह्यो माणस विदग्ध वि० बळी गयेलु (२) रांधेलं । ३, पची गयेलु (४) नाश पामेलु (५) होशियार; चतुर (६) चालाक'; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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