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________________ ४४३ 'दुराचारी विकत्था विकत्था स्त्री० बडाई मारवी ते (२) कटाक्षमां स्तुति करवं। ते (३) मोटेथी जाहेर करवू ते निशानी विकरण पुं० संस्कृत धातुना गणनी विकराल वि० भयानक ; डरामj विकर्तन पुं० सूर्य (२) आकडानो छोड विकर्तृ वि० विघ्न करनारुं कर्म विकर्मन् वि० दुराचारी (२) न० निषिद्ध विकर्मस्थ वि० दुराचारी विकर्षण पुं० कामदेवनां पांच बाणोमांनु एक (२) न० खेंच, ते; खेंची काढवू ते (३) न खावं ते; उपवास विकल् १० उ० विकळ - पांगळं करवू विकल वि० पांगळं; अपंग ; खोडीलं (२) गभरायेल; व्याकुळ (३) -रहित; -विनानं (समासमां) (४) खिन्न; हताश (५) निरुपयोगी विकलकरण वि० नंखाई गयेला अव यववाळं; सुस्त विकलकरुण वि० दयामj विकलयति प० (व्याकुळ - हताश कर) विकला स्त्री० कलानो ६० मो भाग विकलांग वि० अपंग; खोडीलं; वधाराना नकामा अवयववाळं विकल्प पुं० शंका; संदेह (२) अनिश्चय; आनाकानी (३) करामत; युक्ति (४) चाली शके तेवी अनेक बाबतोमांथी एक पसंद करवानी छुट होवी ते (५)विविधता; अनेक प्रकार (६) कल्पनो विभाग (७) उत्पत्ति विकल्पक वि० वहेंचनाएं; हिस्सो पाडनारुं (२) बदली नाखनाएं विकल्पिन वि० संदेहवाळं विकल्मष वि० निष्पाप; निष्कलंक विकस् १ प० खीलवू; विकसवु विकसित ('विकस्'न भू० कृ०) वि० विकसेलु ; खीलेलु विकस्वर वि० खीलतुं ; विकसतुं (२) मोटं - स्पष्ट संभळाय तेवू (अवाज) विकीर्णमूर्धज विकंकट पुं० एक वृक्ष (जेना लाकडानी कडछी-उचा बनावाती) विकंप १ आ० कंपवू; भ्रूजवू विकंपित वि० धूजतुं; कंपावेलु (२) अस्थिर (३) ऊछळतुं विकार पुं० स्वभाव के स्वरूपमा फेरफार; कुदरती स्थितिमा पलटो थवो ते, (२) फेरफार; विक्रिया (३) बीमारी; रोग (४) वलण अथवा प्रयोजन बदलाई जवां ते (५) लागणी (६) क्षोभ (७) चहेरामां फेरफार थवो तो (८) मूळ प्रकृतिमाथी विकसेलु - परिणमेलं ते [योजन विकारण वि. कारण विनान; निष्प्रविकारहेतु ९० प्रलोभन थियेलं विकारित वि० बदलायेलं; विकारवाळ विकारिन् वि० फेरफार के विकार थाय तेवू (२) बदलातु (३)भ्रष्ट थतुं (४) प्रेमनी असरवाळं बनेलुं शके एवं विकार्य वि० जेमां विकार-फेरफार थई विकाल, विकालक पुं० संध्या;सांज (२) अयोग्य समय (३)प्रकाशवू विकाश १ आ० देखा (२) खीलवू विकाश पुं० प्रदर्शन; देखाडवं ते (२) खील - विकसवं ते (३) सीधो के खुल्लो मार्ग (४)वांको के तीरछो मार्ग (५) हर्ष ; आनंद (६) आकाश (७) तीव्र इच्छा विकाशिन्, विकाषिन् वि० नजरे देखातुं; प्रकाशी ऊठतुं (२)खीलतुं(३)प्रकाशतुं विकास पुं० खील ते (२) वृद्धि विकासिन् वि० जुओ 'विकाशिन्' विकांक्षा स्त्री० विसंवाद (२) आना कानी ; अनिश्चय (३) कांक्षारहितपणं विकिर पुं० वीखरायेलो के वेरेलो भाग (२) फाडी खानार के वेरनार ते; पंखी [वीखरायेलं (वाळ) विकीर्ण वि० विखरेलं; वेरेलु (२) विकीर्णमर्धज वि० वीखरायेला वाळवाळं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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