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________________ वचनकर ४२५ वडवानल कथन; बोलेलं ते (३)फरी बोली जq वजाघोष वि० वज़ के वीजळीना कडाका ते (४) शास्त्रवाक्य (५)आज्ञा; हुकम जेवा अवाजवाळं (६) सलाह; उपदेश (७) अर्थ थवो वजधर पुं० इंद्र (२) घुवड ते (शब्दनो) (८) संख्या (व्या०) वजनाभ पुं० कृष्ण, चक्र वचनकर वि० आज्ञानुं पालन करनाएं वजपतन न० वज्रनुं पडवं ते (२) वचनक्रिया स्त्री० आज्ञापालकपणुं वीजळी पडवी ते वचनगौरव न० आज्ञा प्रत्ये आदर; वजपाणि पुं० इंद्र (२) घुवड आज्ञा शिरोधार्य करवी ते वजपात पुं० जुओ 'वज्रपतन' वचनपटु वि० बोलवामां होशियार; वजमणि पुं० हीरो [कठोर वक्तृत्वशक्तिवाळु [कहे ते वज़मय वि० अत्यंत कठण (२) क्रूर; वचनशत न० सो वार - वारंवार वजमुख पुं० एक जीवडु (ऊंडु कोतरनार) वचनसहाय पुं० वातचीतनो सोबती वजलेप पुं० एक जातनो सखत चोटी वचनस्थित वि० आज्ञापालक जनारो लेप (२) कदी उखेडी न वचनावक्षेप पुं० गाळ देवी ते शकाय तेम चोटी जq ते वचनीय वि० कहेवा योग्य (२)ठपको वजव्यूह पुं० एक जातनो लश्करी व्यूह आपवा योग्य (३) न० निंदा; ठपको वजसंधात वि० वज्रनी कठिनतावाळं वचनेस्थित वि० जुओ 'वचनस्थित' वजसार वि० वज्र के हीरा जेवू कठण वचनोपन्यास पुं० सूचक वाणी; वजाकर पुं० हीरानी खाण आडकतरी रीते सूचव, ते वजाघात पुं० वज्रनो के वज्र जेवो प्रहार वचस् न० वाणी; शब्द; वाक्य (२) वजायुध पुं० इंद्र आज्ञा; हुकम (३) सलाह; उपदेश वजाशनि पुं० इंद्रनुं वज़ वचसांपति पुं० बृहस्पति (२) गरुग्रह । वज्रांक वि० हीराजडित वचस्विन वि० वक्तृत्व शक्तिवाळं वजिन् पुं० इंद्र (२) घुवड वचःक्रम पुं० वातचीतनो क्रम; वातचीत वट १५० वींटाळवं; वींटq (२) १० उ० वचःप्रवृत्ति स्त्री० बोलवानी कोशिश कहेQ (३)वांटQ; भाग पाडवा (४) वचोमार्गातीत वि० शब्दोमां कही शकाय बांधवू; जोडQ तेथी मोटुं के तेथी पर -कर्मणि० वटाएं; कचरायूँ वचोहर पुं० दूत वट पुं० वडनुं झाड (२) गोळी (३) वज वि० कठण (२) कठोर (३)पुं०,न० वर्तुलाकृति (४) व (खावानु) इंद्रनुं आयुध (दधीचिनां हाडकांमांथी वटाकर, वटारक पुं० दोरडं बनावेलु) (४) वज्र जेवू कोई पण वटी स्त्री० दोरी (२) गोळी भेदक हथियार (५) मणि वगेरे वटु पुं० छोकरो (२) ब्रह्मचारी वींधवानी हीरानी शारडी (६) हीरो __ वडभि (-भी) स्त्री० जुओ 'वलभि' (७) पुं० सैन्यनो एक व्यूह (८) न० वडवा स्त्री० घोडी (२)दासी (३)वेश्या पोलाद (९) कठोर भाषा (४) अश्विनी अप्सरा, जेने घोडीरूपे वजकीट पुं० लाकडामां के पथ्थरमां सर्यथी बे अश्विनो रूपी पुत्रो थया हता काणुं पाडनार एक कीडो वडवाग्नि, वडवानल पुं० समुद्रमां वजकील पं० वज्र रहेलो मनातो अग्नि (दक्षिण ध्रुव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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