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________________ रक्षःप्रकांडक ४०३ रज्जुपेडा रक्षःप्रकांडक पुं० श्रेष्ठ राक्षस (४) ग्रंथ ; निबंध (५) वाळ ओळीने रक्षा स्त्री० रक्षण (२)राखडी; तावीज गोठववा ते (६)लश्करनी व्यूहरचना (३) राखोडी रचित ('रच् 'भू० कृ०) वि० रचेलं रक्षाकरंड पुं० रक्षा माटे बंधातुं (२) गोठवेलु (३) गूथेलु (४) लखेलं अलौकिक शक्ति धरावतुं तावीज रचितपूर्व वि० पहेलां भजवेलु रक्षागृह न० प्रसूतिगृह रचितार्थ वि० कृतार्थ रक्षापरिघ पुं० आगळो; भोगळ रज पु० जुओ 'रजस्' रक्षापाल, रक्षापुरुष पुं० पहेरेगीर रजक पुं० धोबी रक्षाप्रतिसर पुं० तावीज रजत वि० श्वेत; धोळ (२) चांदीनुं रक्षाप्रदीप पुं० भूत-पिशाच दूर राखवा बनावेलु (३)न० चांदी ; रू (४)सोनुं सळगतो रखातो दीवो (५) मोती, घरेणुं के हार रक्षामणि पुं० भूत-पिशाचथी बचवा रजतकूट पुं० मलय पर्वतर्नु एक शिखर पहेरातुं रत्न के घरेणु रजताद्रि पुं० कैलास रक्षामंगल न० भूत-पिशाचादिथी बचवा रजनि स्त्री० रात्री करातो विधि रजनिकर पुं० चंद्र रक्षारत्न न० जुओ 'रक्षामणि' रजनिचर पुं. निशाचर; राक्षस (२ रक्षिक पुं० रक्षक (२) पोलीस चोर (३) (रातनो) रखवाळ रक्षिजन पुं० रक्षकोनी टुकडी रनिमन्य वि० रात जेवू देखातुं रक्षित ('रक्ष'तुं भू० कृ०) वि० रक्षेलं रजनी स्त्री० रात्री रक्षितक न० संरक्षण रजनीकर पुं० चंद्र रक्षित, रक्षिन् वि० रक्षण करनारु रजनीचर पुं० जुओ 'रजनिचर' (२) पुं० रक्षक (३) पहेरेगीर रजनीपति, रजनीरमण पुं० चंद्र रक्षोध्न पुं० राक्षसोनो नाश करनार रजस् न० रज; धूळ (२) फूलनो पराग एक मंत्र (२) न० हिंग (३) सूक्ष्म कण (४)विकार; विकृति रक्षण पुं० रक्षण (५) रजोगुण (६) स्त्रीनो मासिक रघु पुं० एक सूर्यवंशी राजा (दिलीपनो रजस्राव (७) पाप पुत्र ; अजनो पिता) (२) ब० व० रजस्वल वि० रजवाळं; रजथी छवारघुना वंशजो येलं (२) रजोगुण के विकारथी भरेलं रघुनंदन, रघुनाथ, रघुपति पुं० राम रजस्वला स्त्री० मासिक ऋतुधर्ममां रघुप्रतिनिधि पुं० अज राजा आवेली स्त्री (२) परणाववा योग्य रघुश्रेष्ठ, रघुसिंह पुं० राम थयेली कन्या रघद्वह पुं० (रघुओमां श्रेष्ठ) राम रजोगुण पुं० प्रकृतिना त्रण गुणोमांनो रच् १० उ० गोठवq; तैयार करवं; बीजो (सत्त्व, रजस्, तमस्) योजq(२)बनावq;सर्जवं; उत्पन्न करवू रजोजष वि० रजोगुण सेवतुं (३)लखवूग्रंथ रचवो(४)उपर मूकवू, रजोनिमीलित वि०विकारथी अंध बनेलं खोसq के चोटाडवू (५) शणगारवं रज्जु स्त्री० दोरडु; दोरी रचन न०, रचना स्त्री० गोठवणी (२) रज्जुक पुं० रज्जु ; दोरडु [झोळो रचq ते; सर्जन (३)अमल; व्यवहार राजुपेडा स्त्री० दोरडीनो बनावेलो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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