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________________ Lilin मुक्ताफल ३८३ मुक्ताफल न० मोती मुखराग पुं० मों के चहेरानो रंग मुक्तामणि पुं० मोती मुखरित वि० अवाजवाळू करेलु के थयेलु मुक्तामणिसर पुं० मोतीनो हार मुखरीकृ ८ उ० अवाज के ध्वनिवाळू मुक्तावलि (-ली) स्त्री० मोतीनी माळा करवु (२) बोले तेम करवू मुक्तासन वि० आसन उपरथी ऊभुं थतुं मुखलेप पुं० मदंगना मों पर काळो (२)न० योगर्नु एक आसन; सिद्धासन लेप चडाववो ते मुक्ताहार पुं० मोतीनो हार मुखवास पुं० श्वासने सुगंधीदार करे मुक्ति स्त्री० मुक्त थq- छूटवू ते (२) तेवी सुगंध संसारमाथी छूटq ते; मोक्ष (३)तजवू मुखव्यावान न० बगासु खावं ते ते (४) छोडवू के फेंकवू ते (५) ऋण मुखशेष पुं० राहु ग्रह भरपाई करवू ते [सिवाय मुखस्राव पुं० लाळ मुक्त्वा अ० तजीने (२)बाद राखीने; मुखहास पुं० मुखर्नु हास्य के प्रसन्नता मुख न० मों (२) चहेरो (३) अग्रभाग मुखासव पुं० अधररस (४)अणी; धार(४)टोचईं; दींटडी मुख्य वि० मोंने लगतुं (२) प्रमुख; (५) दिशा (६)खुल्लो भाग (७) नदी आगेवान (३) पुं० मुखी; आगेवान समुद्रने ज्यां मळे ते भाग (८)बार[(९) मुख्यतः, मुख्यशः अ० मुख्यत्वे करीने आरंभ ; शरूआत (१०) उपोद्घात मुग्ध वि० मूर्छित; बेभान (२)मूंझायेलु; (११) (समासने अंते) मुख्य - अग्रेसर मूढ (३) मूर्ख; अज्ञ (४) भोळं मुखग्रहण न० मुख चूमवू ते (५)कामविकारथी अणजाण; निर्दोष; मुखचंद्र पुं० चंद्र जेवू मुख [चूर्ण बाळक जेवू(६) सुंदर; मनोहर (७) मुखचूर्ण न० मों उपर लगाडवानुं सुगंधी नवं- शरूआतनं (चंद्र) मुखतस् अ० मुखथी; मोढाथी मुग्धत्व न० भोळपण; निर्दोषता (२) मुखदोष पुं० जीभ के अवाजनो अपराध सुंदरता; मनोहरता मुखपट पुं० मों उपरनो बुरखो मुग्धवश वि० सुंदर आंखोवाळं मुखपिंड पुं० (अन्ननो) कोळियो मुग्धधी, मुग्धमति वि० मूर्ख; भोळं मुखप्रसाधन न० मों शणगारवं ते मुग्धविलोकित न० सुंदर कटाक्ष मुखभंग पुं० मों पर तमाच के प्रहार मुग्धस्वभाव पुं० भोळपण; निर्दोषता (२) मोनो चाळो मुग्धा स्त्री० भोळी जुवान छोकरी मुखभंगी स्त्री० मोंनो चाळो मुग्धाक्षी स्त्री० मनोहर आंखोवाळी स्त्री मुखमधु वि० मोंढे मीठु बोलनारुं मुग्धालोक वि० देखवामां मनोहर एवं मुखमारुत पुं० श्वास मुच १ आ० [मोचते] छतरवु (२) मुखमुद्रा स्त्री० चूपकीदी; चुप रहेवं ते ६ उ० [मुंचति- ते] छूटुं करवू; मुक्त मुखर वि० वाचाळ; वातोडियुं (२) करवू; जवा देवू; ढीलुं मूकवू (३) चालु अवाज करतुं (३) गाजतुं खुल्लुं करवू; काढq (अवाज) (४) (समासने छेडे) (४) प्रगट करतुं; तजवं; छोडी देवु (५) बक्षq दर्शावतुं (५) पुं० आगेवान -प्रेरक० छोडावq; छूटुं करावq मुखरयति प० (गाजे तेम करवं; बोले (२)मुक्त करवू; उद्धारवु (३)बक्षQ तेम करवू; जाहेर करवू) (४) छुटुं करवू (धूसरीमाथी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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