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________________ मज्जन ३६२ मत्स्यी मज्जन न० डूबकू लगावq ते (२)स्नान मताक्ष वि० पासा रमवामां कुशळ . (३) डूबवू ते (४) मज्जा . मति स्त्री० बुद्धि; समज (२) मन; मज्जा स्त्री० हाडकांमांनो मावो हृदय (३)विचार; मान्यता; धारणा मटक पुं०, न० शब; मडदूं (४) इरादो; प्रयोजन (५) निश्चय मटची (-ती) स्त्री० करानी वृष्टि (६)संमान; आदर(७) इच्छा; वृत्ति; मठ पुं०, न० तपस्वीनी कोटडी (२) वलण (८)सलाह (९)याददास्त संन्यासीओने रहेवानुं मकान (३) मतिगति स्त्री० विचारनुं वलण विद्यालय [जवाबदारी मतिगर्भ वि० बुद्धिशाळी; कुशळ मचिता स्त्री० मठनी व्यवस्था इ० नी मतिप्रकर्ष पुं० बुद्धिमत्ता मायतन न० विद्यालय; मठ मतिभ्रम पुं० बुद्धिने भ्रम थई आववो ते मठिका स्त्री० तपस्वीनी कोटडी मतिमत् वि० बुद्धिमान मड्मडायित वि० गळी जवायेलं मतिशालिन् वि० बुद्धिशाळी ; होशियार मणि पुं० रत्न (२) घरेणुं (३) ते ते । मतिक ८ उ० विचार के निश्चय करवो वर्गमां श्रेष्ठ एवं ते (४)स्फटिक (५) मत्क वि० मारु; मारा संबंधी गठ्ठो के ईंट जेवो आकार (धातुनो) । मत्कुण पुं० माकण मणिक पुं०, न० पाणीनो घडो मत्त ('मद् 'नुं भू० कृ०)वि० मदमत्त; मणिकार पुं० झवेरी पीधेलु (२) गांडु(३)मद-गळतुं (४) मणित न० रतिक्रीडा वखतनो गणगणाट गर्विष्ठ (५)स्वच्छंदी (६) कामोन्मत्त मणितुलाकोटि स्त्री० पगर्नु रत्नमय घरेणुं मत्तकाशिनी, मत्तकासिनी स्त्री० अति मणिदंड वि० रत्नजडित हाथावाळू मोहक स्त्री मणिपुष्पक पुं० सहदेवना शंखनुं नाम । मत्तपालक पुं०पीधेलो गांडा जेवो माणस मणिबंधपुं० कांडु (२)-उपर रत्न जडवां मत्तवारण, मत्तभ पुं० मद-झर हाथी के चोटाडवां ते मत्प्रिय वि० मने वहालुं एवं मणिबंधन न० कांडु (२)वींटी अथवा मत्या अ० जाणी बूजीने (२)-मानीने; कडानो ते भाग ज्यां रत्न जडाय छे -धारीने; कल्पीने (३) मोती- घरेणुं [महेल मत्सर वि० इर्ष्याळु; अदेखु (२)लोभी; मणिभित्ति, मणिमंडप पुं० शेषनागनो तृष्णाळू (३)स्वार्थी (४)पुं०अदेखाई; मणिमंथ न० खनिज मीठु ; सिंधव ईर्ष्या (५) वेर; द्वेष (६) गर्व (७) मणिमेखल वि० मणिना कंदोरावाळू लोभ (८)क्रोध मणिरत्न न० रत्न मत्सरिन् वि० इाळु; अखं (२) मणिविग्रह वि० मणिओ जडेलु वेरी; द्वेषी (३)लोभी; स्वार्थी मणिसर पुं० कंठहार मत्स्य पुं० माछलुं मतल्लिका, मतल्लो स्त्री० (नामने छेडे) मत्स्यकोश पुं० हाथी "ते वर्गनुं श्रेष्ठ ' एवो अर्थ दर्शावे छे मत्स्यगंधास्त्री० सत्यवती;व्यासनी माता (उदा० 'गोमतल्लिका'उत्तम गाय) मत्स्यजीवत, मत्स्यजीविन्, मत्स्यबंध, मतंग पुं० हाथी (२) एक ऋषि (३) मत्स्यबंधिन् पुं० माछीमार त्रिशंकु राजा मत्स्यंडिका, मत्स्यंडी स्त्री० उकाळेला मतंगज पुं० हाथी शेरडीना रसनी राब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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