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________________ भोज्य ३६० भ्राजिष्णु भोज्य वि० खावान; खावा योग्य (२) ते(२)-मांथी खसवं ते (३) भूलमां भोगववान; भोगववा योग्य (३) पडवं ते (४) लथडियं (५) तंमर अनुभववा के वेठवा योग्य (४) न० भ्रमणीविलास पुं० आनंद-यात्रा अन्न; भोजन (५) खावानी चीजोनो भ्रमर पुं० भमरो (२)जार; कामी (३) संग्रह (६) मीठाई; पकवान (७) भोग भमरडो (४) कुंभारनो चाकडो (८)लाभ(९) मर्मस्थानमां घा भ्रमरकरंडक पुं० भमराओ भरेली पेटी भोज्या स्त्री० भोज लोकोनी राजकुंवरी (राते दीवाओलववा चोरो राखे) (२)कुट्टणी; दूती [खेद बतावे छे) भ्रमरबाधा स्त्री० भमराओथी पजवणी भोस् अ० अरे, ओ, हे, ओहो (प्रश्न के भ्रमराभिलीन वि० भमराओ जेने भौत वि० भूतप्राणी संबंधी(२)पंचभूत वळग्या होय तेवू संबंधी (३) भूत-पिशाच संबंधी (४) भ्रमरित वि० भमराना रंगनुं थई गयेलं गांडु; आवेशयुक्त भ्रमरी स्त्री० भमरी । भौतिक वि० भूतप्राणी संबंधी (२) भ्रमि स्त्री० भमवू के घूम, ते; गोळ महाभूतनुं बनेलं (३) भूत-पिशाच फरवू ते (२)वमळ ; भमरो (३) मूर्छा संबंधी (४)वळगाडवाळं भ्रमित वि० भमावेलु; गोळ फेरवेल भौम वि० भूमि - पृथ्वीने लगतुं (२) (२) भ्रमथी मानी लीधेलं पृथ्वी उपरनु (३) माटी, बनेलु (४) भ्रष्ट ('भ्रंश् 'भू० कृ०) वि० खरी मंगळ ग्रह संबंधी (५) पुं० मंगळ ग्रह पडेलु; नीकळी पडेलु (२)क्षीण थयेलं (६) नरकासुर (७) न० माळ (३)नासी गयेलु(४)दुराचरणी । (मकाननो) (८) धान्य; अनाज भ्रष्टक्रिय वि० विहित कर्मो न करनारं भौमदिन न० मंगळवार । भ्रष्टश्री वि० दुर्भागी भौमन पुं० विश्वकर्मा भ्रष्टाधिकार वि० काढी मूकेलं; होद्दा भौमब्रह्मन् न० वेदो, ब्राह्मणो अने यज्ञो उपरथी दूर करेलु -ए त्रणनो समुदाय भ्रस्ज् ६ उ० [भज्जति-ते] भंजवं; शेकवं भौवन पुं० जुओ 'भौमन' भ्रंश १ आ०, ४ प० सरी पडवू; खसी भ्रम् १, ४ ५० भमवं; भटक, (२) पडवू; पडी जवू (२)ठोकर खावी (३) कुंडाळे फरवू; आसपास फरवू (३) --मांथी खसी पडq (४)खोवू ; गुमावदूं अवळे मार्गे जq (४) फेलावू; प्रचारमा (५) नासी जq (६) क्षीण थर्बु (७) आवq (५) फरकवू; थरथर (६) अलोप थq डामाडोळ थर्बु (७) भूलमां पडवू भ्रंश पुं० पडी जर्बु के सरी पड ते (२) -प्रेरक० आसपास के गोळ फेरव क्षीण थर्बु ते (३) नाश पाम ते (४) (२) भटके तेम करवू (३) भूलमां अलोप थर्बु ते (५) नासी जq ते नाखवू (४) फेरवq; घुमावq (हाथमा) भ्रंशन न० नीकळी पडq के पडी जवू ते (५) ढोल पीटीने जाहेर करवू भ्रंशिन् वि० पडी जतुं; नीकळी पडतुं भ्रम पुं० भटकवू ते (२)गोळ फरवु ते । (२) भ्रष्ट थतुं (३) नाश पमाडतुं (३) भूलमां पडवू ते (४) गूचवण; भ्राज १ आ० प्रकाश; चळकवू मूझवण (५)भमरो; वमळ (६)फुवारो भ्राजिन् वि० चमकतुं; चळकतुं .. भ्रमण न० भमढुं, भटकवू के गोळ फरवं भ्राजिष्णु वि० तेजस्वी; कांतिमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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