SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रदेक ३२० करते (३) वातचीत (४) लोकवायका ___-मां रोकायेलं; गूंथायेलु (३) ऊंडु (५)दंतकथा (६)पडकार (७) निंदा; ऊतरी गयेलुं (जैम के आंख) [ते कलंक (८) बहार्नु; मिष प्रविष्टक न. रंगभूमि उपर दाखल थवं प्रवाल पुं०, न० फणगो; कुंपळ (२) प्रविसृत वि० पथरातुं (२) नासी गयेलु परवाळू [दूर जq ते (३)तीव्र [पार्छ भगाडेलु प्रवास पुं० परगाम वसवू ते ; मुसाफरीए प्रविहत वि० नसाडी मूकेलं; मारीने प्रवासन न०परगाम रहेवू ते के जq ते(२) प्रवीण वि० चतुर; कुशळ; निपुण । देशनिकाल करवं ते (३) वध; कतल प्रवीर वि० मुख्य ; उत्तम (२) बळवान; प्रवासिन् पुं० मुसाफर; वटेमाणु पराक्रमी (३)पुं० वीर पुरुष (४) मुख्य प्रवाह पुं० वहेवू ते (२) वहेण(३)परंपरा -विशिष्ट माणस (४)घटनाओनी परंपरा (५)प्रवृत्ति । प्रव ५ उ० ढांकवृं; आच्छादन करवू अविघटित वि० कापी नाखेलं; छुटुं (२)पहेरवु (३)पसंद कर पाडेलु [आगळ वधवू प्रवृत् १ आ० आगळ वधq (२)-मांथी 'प्रविचर् १५० रखडवू; भटकवू (२) नीकळवू; उदय थवो (३)बनवू; थर्बु प्रविचल् १५० विचलित थवू; अवळा (४)आरंभ करवो(५)प्रयत्न करवो; जq (२)कंपवू; धूजq.. प्रयत्नशील थर्बु (६) वर्तवू; आचरवू प्रविचारमार्ग पुं० ब०व०(लडती वखते) (७)होQ (८) सतत चालु रहेQ। एक बाजुथी बीजी बाजू ठेकडा भरवा ते प्रवृत वि० ('प्रवृ'नुं भू० कृ०)पसंद प्रवितत वि० विस्तीर्ण (२)वीखरायेखें; करेलु __ अस्तव्यस्त (वाळ) प्रवृत्त वि० ('प्रवृत् 'नुं भू० कृ०)शरू अविषा ३ उ० नक्की करवं; निर्णय करेलं (२) शरू थयेलं; बेठेलं (ऋतु करवो (२) बनावq; करवू (३)चिंतन इ०) (३) मां लागेलं (४) -तरफ करवू; विचार जवा नीकळेलु (५) निश्चित; स्थिर प्रविभक्त वि० छुटुं पाडेलु; अलग करेलु करेलुं (६)वहेतुं प्रविभाग पुं० जुएं पाडवू ते ; वहेंचणी(२) प्रवृत्तवाक् वि० वक्तृत्वशक्तिवार्छ भाग; हिस्सो प्रवृत्ति स्त्री० सतत आगळ वधq ते प्रविरल वि० घणा अंतरवाळू (२)घj (२) ऊगम; मूळ ; उद्भवस्थान (३) थोडं; भाग्ये ज जोवा मळतुं देखावू के प्रगट थqते (४)शरूआत थवी प्रविलप्त वि० कापी नाखेल; अळगुं ते; बेस, ते (ऋतुनुं) (५) वलण; करेलु (२)भूसी नाखेलं लगनी (६)वर्तन; वर्तणूक (७)घंधो; अविवाद पुं० वादविवाद; तकरार । कामकाज (८) उपयोग; प्रचार (९) प्रविविक्त वि० अलग पाडेलु; अळगुं कर्ममय जीवन ('निवृत्ति'थी ऊलटुं) (२) एकांत; निर्जन (१०) समाचार; खबर [न इच्छतुं अविश् ६५० पेस; दाखल थर्बु (२) प्रवृत्तिपराममुख वि० समाचार आपवा शरुआत करवी; मंडवं प्रवृद्ध वि० वघेलं; विकसेलु (२)पूर्ण; प्रविषण्ण वि० खिन्न ; उदास ऊंडु (३) तुमाखीभर्यु प्रविषय पुं० गोचर; क्षेत्र; पहोंच प्रवृद्धि स्त्री० वृद्धि; विकास (२)समृद्धि प्रविष्ट वि० दाखल थयेलं; पेठेलु (२) प्रवेक वि• उत्तम; श्रेष्ठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy