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________________ प्रब २५० जाहेर कर (२) बूम पाडवी (३) कहे; बोलवू (४) प्रशंसा करवी (५) शीखवQ प्रभग्न वि० कचरी नाखेलु; हरावेलु प्रभद्रक वि० अत्यंत सुंदर प्रभव पुं० उत्पत्तिस्थान; मूळ (२) जन्म; उत्पत्ति (३) नदीनुं मूळ (४) उत्पन्न करनार कारण (५) समृद्धि (६) -मांथी जन्मेलं (समासने अंते) प्रभवित पुं० स्वामी; नियंता प्रभविष्णु वि० समर्थ ; शक्तिमान (२) श्रेष्ठ (३) पुं० स्वामी; मालिक प्रभंजन पुं० तोफानी पवन; वंटोळ प्रभा २५० देखावं (२) प्रकाशq (३) सवार थवी (४) प्रकाशित कर प्रभा स्त्री० दीप्ति; तेज (२) किरण प्रभाकर पुं० सूर्य (२) पद्मराग मणि प्रभात वि० तेजवाळूथवा लागेलं (२) न० परोढ ; सवार [आवेलु प्रभातकल्प,प्रभातप्राय वि० सवार थवा प्रभातरल वि०.देदीप्यमान प्रभापल्लवित वि० कांति वडे देदीप्यमान प्रभाप्रभु पुं० सूर्य .... प्रभाभिद् वि० देदीप्यमान .. प्रभामंडल न० तेजनुं कुंडाळू प्रभालेपिन् वि० प्रकाशित; तेजस्वी प्रभाव पुं० प्रकाश; दीप्ति (२)प्रताप; तेज (३) बळ ; पराक्रम ; ताकात प्रभावन वि० प्रभाववाळं; ताकातवान (२) उत्पादक (३) प्रगट करनारं (४) पुं० रचयिता; विधाता. . . प्रभाष १ आ० बोलवं; संबोध (२) जाहेर करवं (३) प्रगट करवू (४) समजाव (५) बकवू. प्रभाषित वि० कहेलं ; जाहेर करेल . प्रभास् १ आ० प्रकाशवं (२) देखा .. -प्रेरक० प्रकाशित कर प्रभास पुं० प्रकाश; कांति प्रमत्त प्रभास्वर वि० प्रकाशित; तेजस्वी .. प्रभिन्न वि० फाडेलु ; फाटेलं (२) टुकडा थयेलं (३) कापी नाखेलु जुदं पाडेलं (४) खीलतुं; ऊघडतुं (५) मदमां आवेल (६) वींधेलु (७) पुं० मद झस्तो हाथी प्रभित्रकरट वि० (गंडस्थळ फाटया होय तेवं) मद झरतुं [आंजण प्रभिन्नांजन न० (तेल मिश्रित) एक प्रभु वि० समर्थ; शक्तिशाळी (२) समोवडियु; सामनो करी शके तेवं (३) पुं० स्वामी; मालिक ; हाकेम। प्रभुता स्त्री० स्वामीपणुं; सत्ता; प्रभाव (२) मालकी .. प्रभू १ प० उत्पन्न थर्बु (२)हो; थवं (३) देखावू (४) वध (५) समर्थ थq; शक्तिमान थq ; पोतानी ताकात बताववी (६)-ना उपर काबू होवो; -ने दबाव (७) नुं बराबरियु थर्बु (८) पूरतुं थq; समावी शकवं (९) -मां समा [घणु; पुष्कळ प्रभूत वि० -मांथी उत्पन्न थयेलु (२) प्रभूतता स्त्री०, प्रभूतत्व न• पुष्कळता प्रभूतवयस् वि० घरडु, वृद्ध प्रभृति स्त्री० आदि; शरूआत (आ । अर्थमां बहुव्रीहि समासने अंते वपराय छे; उदा० इंद्रप्रभृतयः = इंद्र वगेरे) प्रभृति अ० -थी मांडीने प्रभेद पुं० फाडवं - चीरवं ते (२)भाग पाडवा ते (३) मद झरवो ते (४) तफावत; भिन्नता (५) नदीनुं मूळ प्रभ्रष्ट वि. पडी गयेलु (२) न० वाळनी लटमां लटकावेली फूलमाळा प्रभ्रंश १ आ०,४ प० पडी जवू ; गबडी पडवं (२) -ना विनाना थर्बु (३) --मांथी नासी छुटवू प्रमत्त वि० मदमत्त ; पीधेलु (२) गांडु (३) बेदरकार; प्रमादी (४) भूल करनाएं; कर्तव्यभ्रष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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