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________________ Jiitilhlien प्रकाश २९६ प्रकाश वि० तेजस्वी; चळकतुं (२) प्रकीर्ति स्त्री० प्रशंसा; कीर्ति (२) स्पष्ट ; देखी शकाय तेवू; प्रगट (३) प्रख्याति (३) जाहेरात प्रसिद्ध (४) जाहेर (५) झाड वगेरे प्रकीर्तित वि० जाहेर करेल (२) वखाणेल विनानुं - चोख्खं (६) खीलेलं (७) प्रकुप् ४ प० गुस्से थवं ; चिडावं (२) (समासने अंते) -ना जेवू देखातुं ; -ने वधq; तीव्र थवं मळतुं आवतुं (८) पुं० तेज; कांति; प्रकृ८ उ० करवं; आरंभ, (२) सिद्ध चळकाट (९) (ग्रंथनामने अंते) करवू; अमलमां मूकवू (३) हुमलो विवरण ; खुलासो (१०) तडको (११) करवो; बळात्कार करवो (४) संमाकीर्ति ; प्रसिद्धि (१२) खुल्ली जगा नवं; पूजq (५) उच्चारवु (६)आगळ (१३) ज्ञान मूकवू; प्रथम उल्लेख करवो (७) प्रकाशक वि० प्रकाश आपतुं (२) प्रगट नीमवं(८)प्रकार - विभाग पाडवा करतुं; देखाडतुं; खुल्लु करतु (३) प्रकृत वि० संपूर्ण थयेलं; पूर्ण करेलु (२) खुलासो करतुं; विवरण करतुं शरू करेलु; आरंभेलु (३) नीमेलं प्रकाशनारी स्त्री० वेश्या; गणिका (४) साचं ; स्वाभाविक (५)प्रस्तुत; प्रकाशम् अ० जाहेरमां; खुल्ली रीते जेनी वात चालु होय तेवू (६) न० (२) मोटेथी; बधा सांभळे तेम मूळ वस्तु; उपाडेली- चालु वात । ('आत्मगतम् ' थी ऊलटुं) प्रकृति स्त्री० कोई पण वस्तुनं कुदरती प्रकाशात्मक वि० प्रकाशतं; तेजस्वी स्वाभाविक रूप (तेथी ऊलटुं 'विकृति') प्रकाशात्मन् वि० तेजस्वी (२) मुं० (२) स्वभाव; मिजाज (३) मूळ; सूर्य (३) विष्णु (४) शिव वंश; मूळ कारण(४)जड पदार्थोचें मूळ प्रकाशिन् वि० चळकतुं ; तेजस्वी ; स्पष्ट कारण (सांख्य०)(५) ब० व० राजानो प्रकाशे अ० जाहेरमा (२) प्रगट (३) अमात्य वर्ग (६) राजानो प्रजावर्ग -नी हाजरीमा प्रकृतिकल्याण वि० कुदरती रीते सुंदर प्रकाशेतर वि० अदृश्य प्रकृतिकृपण वि० समजवामां स्वभावथी प्रकाश्य वि० प्रगट करवा योग्य ; प्रकाश- ___ ज धीमुं के अशक्तिमान वा योग्य (२) न० प्रकाश प्रकृतितरल वि० स्वभावथी ज चंचळ प्रकांड पुं०, न० मूळयी शाखा सुधीनो प्रकृतिपुरुष पुं० प्रधान; राजपुरुष थडनो भाग (२)शाखा; फणगो (३) प्रकृतिमत् वि० कुदरती; सामान्य (२) (समासने अंते)ते ते वर्गर्नु श्रेष्ठ होय ते __ सात्त्विक वृत्तिवाळु [प्रजावर्ग (उदा० क्षत्रप्रकांड') (४) पु० बाहुनो प्रकृतिमंडल न० आखं राज्य ; आखो उपरनो भाग प्रकृतिसिद्ध वि० कुदरती; स्वाभाविक प्रकीर्ण वि० वेरायेलुं - वेरेलु ; विखेरा- प्रकृतिसुभग वि० कुदरती रीते ज संदर येलु (२) जाहेर करेलु (३) फरफरतुं प्रकृतिस्थ वि०मूळ स्वाभाविक स्थितिमां (४) गूंचवायेलं; अव्यवस्थित (५) रहेल के आवेल (२) सहज ; कुदरती मिश्रित (६) नष्ट (७) गाढ लेपायेलं (३) नीरोगी; रोगमुक्त थयेलु (४) (८) न० परचूरण-मिश्र एवं ते नग्न; खुल्ल प्रकीर्णक पुं०, न० चमरी; चामर (२) प्रकृत्यमित्र पुं० सामान्यपणे शत्रु होय ते न० परचूरण बाबतोनो संग्रह प्रकृष् १ प० खेंची जq; खेंचवू (२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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