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________________ पारणा २८१ पार्थिव पारणा स्त्री० उपवास पछी जमवू ते; पारिजात, पारिजातक पुं० स्वर्गनां पारj (२) जमवू ते पांच वृक्षोमांनु एक (समुद्रमंथनमांथी पारतंत्र्य न० परतंत्रता; पराधीनता एक रत्न तरीके नीकळेल) पारत्रिक, पारत्र्य वि० परलोक संबंधी; पारितोषिक वि० आनंदप्रद; संतोषप्रद परलोकमां उपयोगी (२) न० इनाम ; बक्षिस पारद पुं० पारो पारिपार्श्वक, पारिपाश्विक पुं० नोकर; पारदारिक पुं० परस्त्रीगामी हरियो (२) सूत्रधारनो मददनीश पारदार्य न० व्यभिचार; जारकर्म पारिप्लव वि० चंचल ; अस्थिर; कंपतुं पारवृश्वन् वि० डायु; समजणुं (२) (२) तरतुं (३) व्याकुळ ; क्षुब्ध पारंगत; प्रवीण (४) पुं० नाव; नौका (५) न० पारमार्थिक वि० परमार्थ - परम तत्त्वने अशांति ; व्याकुळता लगतुं (२) ययार्थ; वास्तविक ; सत्य पारिबह पुं० लग्न वखतनी भेट (२) (३) परमार्थनी परवा करतुं (४) परिजन-परिवार [परिभाषारूप अति उत्तम पारिभाषिक वि० चालु ; सार्वत्रिक (२) पारमिक वि० उत्तम; मुख्य ; श्रेष्ठ पारियोत्र पुं० सात 'कुलपर्वत'मांनो एक पारमित वि० सामे पार गयेलं (महेंद्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्, पारमिता स्त्री० सिद्धि; परिपूर्णता ऋक्ष, विन्ध्य, पारियात्र) पारयिष्णु वि० आनंददायक (२) अंत पारिवाजक, पारिवाज्य न० भिक्षुपणुं सुधी जई शकनारं; यशस्वी पारिषद पुं० सभामां हाजर रहेलो सभ्य पारलौकिक वि० परलोकने लगतुं; पर- पारिषदाः पुं० ब०व० देवनो परिवार लोक माटे हितकर पारिहारिक पुं० माळा बनावनार-माळी पारस वि० ईरान देश पारिहार्य पुं० हाथर्नु घरेणुं- कडु पारसीक पुं० ईराननो वासी पारी स्त्री० पाणी पीवानुं पात्र (२) दूध पारंगत वि० पार गयेलं दोहवा- पात्र . पारंपर वि० आगळन; भविष्यन पारीण वि० सामे पार जतुं (२) (समास पारंपरिण, पारंपरीण वि० परंपराथी । ने छेडे) पारंगत ; प्रवीण चाल्यु आवतुं; वंशानुक्रमे चाल्यु आवतुं पारुष्य न० कठोरता; कर्कशता (२) पारंपर्य न० परंपराथी चाल्यू आववं ते निष्ठुरता (३.) अपशब्द पारंपर्येण अ० क्रमथी; अनुक्रमथी पारे अ० सामी बाजुए पारा स्त्री० एक नदी पार्थ पुं० पृथा-कुंतीनोपुत्र (युधिष्ठिर, पारापत पुं० कबूतर; पारे, भीम, अर्जुन) (२) राजा पारायण न० सामे पार जवू ते (२) पार्थक्य न० जुदाई; जुदापणुं सूक्ष्म अभ्यास (३)पूरेपूरु- समग्र ते पार्थसारथि पुं० अर्जुनना सारथि - पारावत पुं० कबूतर; पारेवं श्रीकृष्ण पारावार न० बंने किनारा; नजीक अने पार्थिव वि० पृथ्वीने लगतुं (२)माटीनुं दूरनो किनारो (२) पुं० समुद्र बनेलं (३) पृथ्वी उपर राज्य करतुं पाराशर, पाराशर्य पुं० पराशर ऋषिना (४) राजाने लगतुं (५) पुं० पृथ्वीनो पुत्र-व्यास वासी (६) राजा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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