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________________ अनर्घ वि० अमूल्य (२) पुं० खोटी के अयोग्य किंमत अनय वि० अमूल्य(२)सौथी वधु पूज्य अनर्थ वि०निरुपयोगी;नकामुं(२)अभागी (३) नुकसानकारक; अनिष्ट (४) अर्थ वगरनुं (५) पुं० निरुपयोगिता (६) प्रयोजन के उपयोग विनानी वस्तु (७) अनिष्ट ; आफत अनर्थक, अनर्थ्य वि० अर्थ वगरनुं (२) प्रयोजन विनानु; लाभ वगरनुं (३) दुर्भागी (४) न० निरर्थक प्रलाप । अनर्ह वि० अयोग्य; लायक नहि तेवू अनल पुं० अग्नि (२) जठराग्नि (३) क्रोधाग्नि तम अनलम् अ० बस नहि तेम; पूरतुं नहि अनलस वि० आळस विनानु; उद्योगी अनल्प वि० घj; पुष्कळ विनानुं अनवकाश वि० अवकाश-प्रसंग-तक अनवगीत वि० निदित नहि तेवं अनवग्रह वि० काबूमां न रहे तेवू अनवच्छिन्न वि० छुटुं पाडेलुं नहि तेवू (२) सीमा के मर्यादा नहि करायेलु (३) निश्चित नहि करायेलु [अनिंदित अनवद्ध वि० दोष -खोड विना; अनवरत वि० सतत; निरंतर अनवसर वि० अवकाश-फुरसद वगरन (२) उचित काळ विनानुं अनवसित वि० पूरुं न थयेलं; असमाप्त अमवस्थ वि० अस्थिर; चंचळ अनवस्था स्त्री० अस्थिरता (२) अनिश्चितता (३) निर्णय अथवा छेडो न आववो ते; एक तर्कदोष राखवी ते अनवेक्षण न० काळजी-तपास न अनशन न० उपवास (२) आमरणांत उपवास विनानुं अनसूय, अनसूयक वि० असूया-अदेखाई अनंग वि. अंगरहित (२) पुं० कामदेव अनंगलेख पुं० प्रेमपत्र अनंगशत्रु पुं० शंकर भगवान अनापद अनंजन वि० आंजण दिनानुं (२) दोष विनानुं (३) कशा संबंध विनानुं अनंत वि० अपार (२) शाश्वत (३) पुं० शेषनाग अनंतर वि० पछी- (२) नजीकचें (३) अंतर वगरनुं - सतत; अखंड अनंतरम् अ० तरत ज (२) पछीथी अनंतराय वि० अंतराय-बाधा विनानं अनंतरीय वि० क्रममा तरत ज पछीनुं अनंद वि. आनंदरहित; दुःखपूर्ण अनागत वि० नहि आवेलु(२)नहि मळेलु (३) भावि; भविष्यकाळनु माणस अनागतविधात पुं० अगमचेतीवाळो अनागस् वि० निर्दोष ; निरपराधी । अनाघ्रात वि० नहि संघेलं नहि भोगवेलं अनाचार वि० शास्त्रविहित आचारो न आचरनारं; निषिद्ध आचार आचरनारं अनात्मन् वि० आत्मा,मन वगेरे विनानं (२) शरीरने लगतुं (३) जेणे आत्मा जीत्यो नथी तेवू; अजितेंद्रिय (४) पुं० शरीर वगेरे जड वस्तु अनात्मक वि० आत्मा जेवी स्थिर वस्तु विनानु; क्षणिक अनाथ वि० आश्रय वगरनु; असहाय (२) माबाप-स्वामी वगेरे विनानुं अनादर वि० आदर विनानु (२) पुं० तिरस्कार; अपमान तेवं अनादि वि० जेनो आरम्भ के जन्म नथी अनादिनिधन वि० आदि तथा अंत विनानुं विनानुं अनादिमध्यान्त वि० आदि-मध्य-अंत अनावीनव वि० दूषण वगरन . अनादृत वि० अनादर करायेलु;अनादर पामेलं नथी तेवू; शाश्वत अनाद्यनंत वि. जेनो आरम्भ के अंत अनाधृष्ट, अनाधृष्य वि० न जीती के दबावी शकाय तेवं अनापद् स्त्री० आपत्तिनो अभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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