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________________ २५६ नैयायिक नृप, नृपति पुं० राजा नेमिवत्ति वि० –ता चोले चीले चालतं नपनीति स्त्री० राजनीति नेमी स्त्री० जुओ नेमि' तेवू नृपशु पुं० जानवर जेवो माणस नेय वि० दोरी जवा योग्य ; दोरी जवाय नृपसंश्रय पुं० राजानो आश्रय नेष्ट वि० नहि गमतुं (२) अप्रिय नपात्मज पुं० राजकुंवर (३) अनिष्ट (४) अनिष्टन साधन नपात्मजा स्त्री० राजकुंवरी नेष्टु पुं० माटीन ढेफु नृपाल पुं० राजा नैक वि० अनेक (२)विविध (३) एक नृपांगण (-न) न० राजदरबार पण नहि तेवू नपांश पुं० कररूपे राजाने अपातो भाग नै फटिक वि० नजीकच् (२)पुं० भिक्षु (अनाजनो छठ्ठो, आठमो इ०हिस्सो) नैकटय न० निकटता; समीपता नृशंस वि० क्रूर; घातकी (२) न० नेकधा अ० बहु प्रकारे; अनेक रोते घातकी कृत्य नैकशस् अ० घणी मोटी संख्यामां (२) नृशंसन न० क्रूरता वारंवार [क्रूर; घातकी नृषद्, नृसद् स्त्री० बुद्धि नैकृतिक वि० दुष्ट ; कपटी; नीच (२) नृसिंह पु० (विष्णुनो चोथो ) नरसिंह नैगम वि० वेद के शास्त्रने लगतुं (२) अवतार (२) मनुष्योमा श्रेष्ठ पुं० वेदन तात्पर्य बतावनार (३) नसोम पुं० महापुरुष उपाय; युक्ति (४) वेपारी (५) नहरि पुं० जुओ 'नृसिंह शहेरनो माणस नजन न० धोवं ते (२) धोबीघाट नज वि० पोतान; आत्मीय नेतव्य वि० दोरवा के लई जवा योग्य नैतल न० सात पाताळोमांनु एक नेतृ पुं० नायक ; आगेवान (२) गुरु (वितल) नेत्र न० आंख (२) रवैयानी दोरी; नैतलसमन् न० यम नेतरुं (३) रेशमी वस्त्र नैत्यक न० (रोज धरावातुं) नैवेद्य नेत्रगोचर वि० नजरनी मर्यादामां नैदाघ पुं० उनाळो आवेलं; नजरे पडे तेवू नंद्र वि० निद्राजनक (२)ऊंघे भरायेलं नेनिसिन वि० आंखने स्पर्शत (ऊंघ) (३)बिडायेलु (पांखडीओनी जेम) नेत्रांजन न० काजळ ; आंजण नपुण (-ण्य) न० निपुणता; कुशळता नेत्रोत्सव पुं० जोवी गमे तेत्री सुंदर वस्तु नैभृत्य न० नम्रता (२) गुप्तता (३) नेदिवस वि० अवाज करनारं चूपकीदी नेदिष्ठ वि० सौथी वधु नजीक नमय पुं० वेपारी नेदीयस् वि० वधु पासे नैमित्त वि० निमित्त (भविष्य-सूचक नेपथ्य न० आभूषण; शणगार (२) चिह्न)संबंधी (२)पु० ज्योतिषी वस्त्र ; पहेरवेश (३) नटनो पहेरवेश । नैमित्तिक वि० प्रसंगोपात्त ; आनुषंगिक (४) नटो वस्त्रपरिधान करे ते स्थळ (२)० भविष्य भाखनार (पडदा पाछळ) नैमिष वि० क्षणिक (२) न० नैमिनेपथ्यविधान न० नटोनां वस्त्राभषण षारण्य (ज्यां सौतिए महाभारतनी वगेरेनी गोठवण [परिघ कथा संभळावी हती) [नार नेमि पुं० पैडानो घेराव (२)धार (३) नैयायिक पुं० न्याय – तर्कशास्त्र जाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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