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________________ पारायंत्र २२६ पारायंत्र न० फुवारो (२) झारी षिक अ० 'धिक्कार छे' -ए अर्थ धारावर्ष पुं०, न० मुशळधार के एकधारो बतावतो उद्गार पडतो वरसाद धिक्कार पुं० तिरस्कार; ठपको धारावाहिन् वि० सतत चालु रहेतुं धिक्क ८ उ० धिक्कार; ठपको आपवो धारासंपात पुं०, न० जुओ 'धारावर्ष' । विक्कृत वि. धिक्कारायलं; तिरस्कृत धारासार पुं० मुशळधार वरसाद । (२)न० धिक्कार; तिरस्कार पारांकुर पुं० वरसाद- फोरुं के करो धिक्रिया स्त्री० तिरस्कार; ठपको धारिणी स्त्री० पृथ्वी [राखनाएं। घिग्वाद पुं० ठपको; निंदा धारिन् वि० धारण करनारु (२) याद । पिप्सु वि० छेतरवा इच्छतुं; छेतरे तेवू धारोष्ण वि० ताजु दोहेलु-गरम । घिषण न० निवासस्थान धार्तराष्ट्र पुं० धृतराष्ट्रनो पुत्र (२) षिषणा स्त्री० बुद्धि (२) वाणी (३) काळी चांच अने काळा पगवाळू स्तुति (४) पृथ्वी हंस जेवू एक पक्षी षिष्ठित वि० बराबर गोठवायेखेंधार्मिक वि० धर्माचरण करनारु (२) स्थपायेलु (२) दृढ़ करेलु; स्थिर करेलु न्यायी (३)पुं० न्यायाधीश (४)धांध (३) बहादुरीथी सामे थयेलं माणस (५) मदारी; ऐंद्रजालिक विष्ण्य पुं० यज्ञना अग्निनुं स्थान (२) धार्य वि० धारण करवा योग्य (२) न० स्थान; निवासस्थान (३) नक्षत्र सहन करवा योग्य (३)पहेरवा योग्य घी ४ आ० अनादर करवो (२) (४) मनमां राखवा योग्य आराधq (३)धारण करवं; समावq धाष्ट्र्य न० धृष्टता; उद्धताई ; हिंमत (४) सिद्ध करवू [कल्पना धाव १५० दोडवू; आगळ वधवं (२) धी स्त्री० बुद्धि; मन (२) विचार; -नी तरफ घसवू; हमलो करवो (३) धीमत् वि० बुद्धिमान; विद्वान नासी जवू (४) १ उ० धोवू; साफ धीर वि० धैर्यवाळू; निर्भय (२)दृढ़; करवं (५) मांजवू; ऊजळू कर स्थिर (३) दृढ निश्चयी (४) शांत; घावक वि. दोडी जनारु (२) झडपी स्वस्थ (५)गंभीर (६)बुद्धिमान (७) (३) धोनारं (४) पुं० धोबी __ मंद; सौम्य पावन न० दोडवू ते (२) वहे ते (३) धीरचेतस् वि० दृढ निश्चयी आक्रमण करवं ते (४) धोवू ते; धीरता स्त्री०, धीरत्व न० धैर्य ; हिंमत स्वच्छ कर, ते (५) मांजवू ते (२)गंभीरता (३)पांडित्य ; डहापण धावल्य न० धोळाश (२) फीकाश धीरम् अ० दृढताथी; स्वस्थताथी घावित ('धा' नुं भू० कृ०) वि० धीरोदात्त पुं० (धीर अने उदात्त) धोयेलु (२) -नी तरफ दोडतुं (३) नायकनो एक प्रकार (नाटय०) जलदी जतु धीरोद्धत पुं० (धीर पण उद्धत) पावित पुं० वेगे दोडनार नायकनो एक प्रकार (नाटय०) षि ५५० खुश कर; संतुष्ट करवं धीवर पुं० माछीमार (२)६५० पासे होवू; धारण करवू धीवरी स्त्री० माछण घि पुं० (समासने छेडे) भंडार; निधि ५ ५ उ० जुओ 'धू' (उदा० 'जलषि') धुक्ष् १ आ० सळगाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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