SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दोषत्रय २१९ द्यूतक्रीडा दोषत्रय न० त्रिदोषनो व्याधि- सनेपात दौर्जन वि० दुर्जन संबंधी दोषदृष्टि वि० मात्र दोष जजोनारं दौर्जन्य न० दुर्जनता । दोषन् पुं०, न० हाथ (आनां द्वितीया दौर्बल्य न० दुर्बळता; कंगालपणुं ब०व० थी अगाऊनां पांच रूपो नथी) दौर्मनस्य न० अणबनाव (२) खेद; दोषभाज् वि० दोषी; अपराधी (२) बेचेनी; निराशा खोटुं करना (३) दुष्ट ; बदमाश दौमंत्र्य न० खोटी सलाह दोषल वि० दोषयुक्त; दूषित दोहद न० वेर; अणबनाव (२)सगर्भादोषस् स्त्री० रात्री (२)न० अंधकार वस्था (३)गर्भिणीनो दोहद दोषा स्त्री० रात्रि; रातनुं अंधारु (२) दौवारिक पुं० द्वारपाळ अ० राते; सांजे दोश्चर्य न दुर्जनता; दुष्टता (२) दुष्कर्म दोषाकर पुं० चंद्र दौष्कुल,दौष्कुलेय, वौष्कुल्य वि० हलका दोषातन वि० रातर्नु; राते थतुं कुळमां जन्मेलं दोषिक वि० दोषवाळू ; खामीवाळु (२) दौष्यंति पुं० दुष्यंतनो पुत्र पुं० व्याधि; रोग दोहदिक पुं० वृक्षोनो-उपवननो माळी दोषिन् वि० दोषवाळु ; खामीवाळु (२) (२) तीव्र अभिलाषा दुष्ट ; खराब काढनाएं दौहित्र पं० पुत्रीनो पुत्र ; दोहितर दोषकदृश् वि० मात्र दोष ज जोनाएं के दौहित्री स्त्री० पुत्रीनी पुत्री दोस् पुं०, न० हाथ ; बाहु (द्वितीया ब० । दौहृद न० जुओ 'दौहृद' व० पछी 'दोषन्' विकल्पे मुकाय छे) दौःशील्य न० दुःशीलता दोह पुं० दोहवं ते (२) दूध (३) दोहवानुं दौःसाधिक पुं० द्वारपाळ पात्र द्यावापृथिव्यौ (द्यो+पृथिवो) स्त्री० द्वि० दोहद पुं०, न० सगर्भा स्त्रीने थतो अभि- व० स्वर्ग अने पृथ्वी धसवू लाष (२) तीव्र अभिलाष छु २५० [द्यौति] हुमलो करवो;-तरफ वोहदिन वि० तीव्र अभिलाषावाळू धु पुं० अग्नि (२)न० दिवस (३) गगन बोहन वि० दूध आपनाएं (२) इच्छित (४)स्वर्ग (व्यंजनथी शरू थता प्रत्ययो वस्तु आपनाएं (३) न० दोहवं ते पहेला तथा समासमां 'दिव्' स्त्री० ने (४) दोहवानुं वासण बदले 'धु' मुकाय छे) दोहल पुं० जुओ 'दोहद' घुत् ११० प्रकाशवू; शोभवू वोःशालिन् वि० मजबूत बाहुवाछं; -प्रेरक० प्रकाशित करवू (२) बहादुर; लडायक समजाव, (३) स्पष्ट-प्रगट करवू बोस्य पुं० नोकर (२) सेवा (३) क्रीडा धति स्त्री. प्रकाश; कांति (२)किरण दौत्य न० दूत, कार्य; संदेशो लई धुमत् वि० तेजस्वी; कांतिमान जवो ते (२) संदेशो धुम्न न० तेज ; कांति (२) बळ; पराक्रम दौरात्म्य न० दुरात्मापणुं; दुष्टता । धुयोषित् स्त्री० अप्सरा दौरधरी स्त्री. चंद्रनो गुरु अने शुक्र खुसरित स्त्री० गंगा नदी साथेनो योग (जन्मकाळ तरीके उत्तम धूत पुं०, न० जुगार; जूगटुं गणाय छे) छूतकर पुं० जुगारी वोर्गस्य न० दुर्गति; कंगालियत द्यूतक्रीडा स्त्री० जुगार खेलवो ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy