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________________ तिर्यग्योनि तिर्यग्योनि स्त्री० पशुप्राणीनी सृष्टि तिर्यच्, तिथंच वि० तीरछु; त्रांसु (२) वांकुं (३) पुं०,न० पशु; जानवर (४) पंखी; पक्षी तियंची स्त्री० पशुनी मादा तिल पुं० तलनो छोड; तल (२) कोई पण पदार्थनो सूक्ष्म कण (३) शरीर उपर तल जेवो डाघो तिलक पुं० सुंदर फूलवाळु एक झाड (२) पुं०, न० चांल्लो; टीखें (३) समासने अंते 'ते ते वर्गमां श्रेष्ठ - शणगाररूप' -एवा अर्थमां वपराय छे । तिलका स्त्री० एक जातनो हार तिलकित वि० तिलक करेलु (२)शोभित तिलखलि (-ली) स्त्री० तलनो खोळ तिलपीड पुं० घाणी फेरवनारो; घांची तिलशः अ० तल जेवडा नाना अंशमां तिलोत्तमा स्त्री० एक अप्सरा तिलोदक न० पितृतर्पण अर्थे अपातुं तिलयुक्त जल तिष्ठद्गु अ० गायो (दोहवा माटे) सांजे ऊभी रहे त्यारे (संध्या पछी कलाक जेटले समये) तिष्य वि० पुष्य नक्षत्रमा जन्मेलुं (२) भाग्यशाळी; शुभ (३) पुं० पुष्य नक्षत्र (४) न० कळियुग तितिड पु०, तितिडिका, तितिडी, तितिलिका, तितिली स्त्री० आमली तीक्ष्ण वि० धारवाळु; तीव्र (२) ती (३) गरम (४) कठोर; कडक (५) तोछडु (६) होशियार; जोशील; उत्साही (७) पवित्र; धार्मिक; तपस्वी (८) हानिकारक; प्रतिकूळ तीक्ष्णधार पुं० तरवार वाळू तीक्ष्णबुद्धि वि० होशियार; तीव्र बुद्धितीक्ष्णमार्ग पुं० तरवार तीक्ष्णांशु पुं० सूर्य (२) अग्नि तीर न० किनारो (२) कोर; कोराण तीरित वि० फैसलो आपेलं; चुकादो आपेलं (२) न० समाप्ति; परिपूर्णता तीर्ण ('तु'न भू००) वि. ओळंगी गयेलं; तरी गयेलु (२) चडियातुं (३) पराभव पामेलु (४) नाहेलं; नाहवा ऊतरेखें तीर्थ वि० पवित्र (२) तारनारु (३) न० मार्ग; रस्तो; घाट ; ओवारो (४) जळाशय (५) यात्रा, धाम ; पुण्यक्षेत्र (खास करीने नदीने किनारे आवेलु) (६) उपाय ; साधन (७) पूज्य के पवित्र माणस (८) आचार्य; गुरु (९) प्रधान; मंत्री (१०) शिखामण; बोध (११) योग्य समय (१२) पुं० शंकराचार्य संन्यासीओना स्थापेला दस वर्गोमांनो एक (१३) संन्यासीना नाम पाछळ लगाडातो मानवाचक शब्द तीर्थकर पुं० जैनधर्मनो प्रवर्तक (चोवीस छे) (२) साधु ; तपस्वी (३) नवो सिद्धांत प्रवर्तावनार आचार्य तीर्थकाक पुं० लोलुप मनुष्य (तीर्थ स्थानना कागडा जेवो) तीर्थचर्या स्त्री० तीर्थयात्रा तीर्थध्याक्ष पुं० जुओ 'तीर्थकाक' तीर्थभूत वि० पवित्र ; पावनकारी तीर्थयात्रा स्त्री० तीर्थनी यात्रा तीर्थराज पुं० प्रयागराज तीर्थराजि (-जी) स्त्री० काशी तीर्थवायस पुं० जुओ 'तीर्थकाक' तीर्थकर पुं० जुओ 'तीर्थकर' तीथिक पुं० जात्राळु (२) तपस्वी ब्राह्मण (३) अन्य संप्रदायनो अनुयायी के आचार्य करनारु) तीर्थोदक न तीर्थस्थान- जळ (पवित्र तीव्र वि० उष्ण; तीखं; कठोर; दुःसह तु अ० (वाक्यारंभे कदी न आवे) पण; परंतु (२) बीजी बाजु - ऊलटुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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