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________________ मानवं जोटिंग १८४ ज्योत्स्ना जोटिंग पुं० शिव (२) उग्र तपस्वी ज्ञानेंद्रिय न० ज्ञान ग्रहण करनार इंद्रिय जोष पुं० संतोष; तृप्ति सुखे; निरांते (त्वच्, रसना, चक्षुस्, कर्ण ने घ्राण) जोषम् अ० चूपकीथी; छानामाना (२) ज्ञापक वि० जणावनाएं; कहेनालं; रजू ज्ञ वि० जाणनाएं; परिचित (समासने करनारुं (२) पुं० गुरु ; शिक्षक (३) अंते) (२) डाहयुं (३) पुं० विद्वान राजदरबारनो एक अधिकारी (जे (४) जीवात्मा स्तुति आवेदनपत्र रजू करे छे) ज्ञप्ति स्त्री० जाणवू ते (२) बुद्धि (३) ज्ञेय वि० जाणवा के तपासवा योग्य ज्ञा ९ उ० [जानाति ; जानीते जाणवु; ज्या स्त्री० धनुष्यनी पणछ परिचित थq (२) शोधी काढq (३) ज्यानि स्त्री० जीर्णपणुं; वृद्वता (२) समजवू; अनुभवq (४) कसोटी करवी; तजq ते (३) हानि । परीक्षा थवी (५) ओळखq (६) गणवू; ज्यायस वि० वधारे मोटं के चडियातुं ज्यायिष्ठ वि० उत्तम; श्रेष्ठ -प्रेरक० [ज्ञापयति, ज्ञपयति] ज्येष्ठ वि० सौथी मोटुं (उमरमां) (२) जणाव; जाहेर करवू सौथी उत्तम ; श्रेष्ठ (३) पुं० मोटो ज्ञात ('ज्ञा'- भू० कृ०) वि० जाणेलं; भाई (४) जेठ मास समजेलु (२) न० ज्ञान ज्येष्ठा स्त्री० मोटी बहेन (२) वचली ज्ञाति पुं० पिता(२)पितातरफनो संबंधी; आंगळी (३) गंगा नदो (४) अढारमुं पित्राई;ते आखो वर्ग (३) सगुं माणस । नक्षत्र ज्ञातिभाव पुं० सगाई; सगापणुं ज्योतिर्मय वि० ताराओन बनेलं जातिभेद पुं० सगांमां कुसंप ज्योतिविद् पुं० ज्योतिषी; जोषी ज्ञातृ वि० जाणनारुं; डाहयु; विद्वान ज्योतिविद्या स्त्री० ज्योतिषशास्त्र (२) ज्ञान न० जाणवू ते; समजवू ते (२) खगोळशास्त्र विद्या (३) ब्रह्मज्ञान (४) खबर; ज्योतिश्चक्र न० राशिचक्र माहिती (५) भान; प्रतीति (६) ज्योतिष पुं० ज्योतिषी; जोपी (२) बद्धिशक्ति (७) अभिप्राय; मत न० ज्योतिर्विद्या ज्ञानकृत वि० जाणी ब्रूजीने करेलु ज्योतिषिक पुं० जोषी ज्ञानचक्षुस् न० ज्ञानरूपी आंख ज्योतिषी स्त्री० तारो ज्ञानतस् अ० जाणी जोईने; इरादापूर्वक ज्योतिष्क पुं० ग्रह, नक्षत्र, सूर्य इ० ज्ञानद पुं० गुरु; आचार्य आकाशना तेजस्वी पदार्थमांनो दरेक ज्ञानदा स्त्री० सरस्वती ज्योतिष्मत् वि० तेजस्वी; प्रकाशित ज्ञानमय वि० ज्ञानरूप ; ज्ञाननुं बनेलं (२) तारा, ग्रह वगेरेथी युक्त ज्ञानयोग पुं० मोक्ष माटे ज्ञान-चिंतन ज्योतिष्मती स्त्री० रात्रि रूपी साधनमार्ग ज्योतिस् न० प्रकाश ; तेज (२) वीजळी ज्ञानवृद्ध वि० ज्ञानमां आगळ वधेलं; (३) ग्रह, नक्षत्र वगेरे तेजस्वी पदार्थ ज्ञानमां मोटुं- श्रेष्ठ (४) ज्योतिषशास्त्र (५) सूर्य अने ज्ञानित्व न० भविष्य भाखवू ते चन्द्र (द्वि० व०मां) ज्ञानिन् वि० ज्ञानी; डाह्यं (२) पुं० ज्योतिःशास्त्र न० जुओ 'ज्योतिर्विद्या' भविष्य भाखनार; ज्योतिषी (३) ज्योत्स्ना स्त्री० चांदनी; चंद्रप्रकाश आत्मज्ञानी (२) चंद्रप्रकाशवाळी रात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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