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________________ १८२ जीवन्मुक्ति जि १५० जीतवं;हरावq (२) चडियाता नियोधिन् वि० अप्रामाणिक रीते थएँ (३) जीतीने मेळवq (४) निग्रह लडनारुं (२) पुं० भीम करवो; संयममा राखवू जिमित वि. वांकु वळेलू - वाळेलं जिगीषा स्त्री० जीतवानी इच्छा (२) जिह्व पुं०, जिह्वा स्त्री० जीभ स्पर्धाहरीफाईमां ऊतरेलु जिह्वालौल्य न० जीभनी लोलुपता जिगीषु वि० जीतवानी इच्छावाळू (२) जीन वि० वृद्ध; जीर्ण (२) पुं० जिघत्सा स्त्री० खाचानी इच्छा; भूख चामडानी कोथळी जिघांसा स्त्री० मारी नाखवानो इरादो जीमूत पुं० मेघ ; वादळ जिघांसु वि० हणवानी इच्छा राखनालं जीर्ण ('ज'- भू० कृ०) वि० जूनू ; प्राचीन (२) पुं० शत्रु [इच्छा (२) घसाई गयेलं; फाटी गयेलं जिघृक्षा स्त्री० पकडवानी- लेवानी (३) पाचन थयेलं जिज्ञासा स्त्री० जाणवानी इच्छा जीर्णोद्धार पुं० जीर्ण थयेला मंदिर जिज्ञासु वि० जाणवानी इच्छावाळु वगेरेने फरी समरावq ते जित् वि० (समासने छेडे) जीतनाएं जीव १५० जीववं (२) सजीवन थर्बु जित ('जि'नुं भू० कृ०) वि० जितायेलं: (३)-ना वडे निर्वाह चलाववो । ताबे करेलु (२)जीतीने मेळवेलुं (३) जीव वि. जीवतुं; हयात (२)पुं० प्राण -थी वश थयेलं (४) न० विजय (३) जीवात्मा (४) जीवन ; आयुष्य जितकाशि पुं० दृढ मूठी - मुक्को (५) प्राणी (६) व्यवसाय; धंधो जितकाशिन् वि. विजय वडे शोभतं; जीवक वि० जीवतुं (२) -ना वडे विजयोन्मत्त जितश्रम वि० न थाके तेवू आजीविका चलावतुं (३)लांबो वखत जीवतुं (४)पुं० प्राणी (५)नोकर (६) जितात्मन्, जितेंद्रिय वि० जात उपर बौद्ध भिक्षु (७) गारुडी (८) व्याजे के इंद्रियो उपर विजय मेळवनाएं; नाणां धीरनार शाहुकार आत्मनिग्रही जित्वर वि० जीत मेळवनाएं; विजयी जीवजीवक पुं० चकोर पक्षी जिन वि० विजयी (२) पुं० बौद्ध के जीवत् वि० जीवतुं जैन संत (३) विष्णु जीवधानी स्त्री० पृथ्वी जीवन वि० सजीवन करनारुं (२) पुं० जिष्णु वि० विजयी (२) -ना करतां परमात्मा; परब्रह्म (३) न० जीवq ते चडियातुं (समासने छेडे) (३) पुं० (४)आयुष्य; जिंदगी(५) जीवन-शक्ति; सूर्य ; इंद्र ; विष्णु; अर्जुन प्राण (६) पाणी (७) आजीविकानुं जिहान वि० जतुं; -नी तरफ जतुं (२) साधन (८) सजीवन करवू ते मेळवतुं; पामतुं जीवनिकाय पुं० जीवधारी प्राणी जिह्म वि० वक्र; वांकु (२) कपटी;कुटिल; जीवनीय वि० निर्वाहोपयोगी (२) अप्रमाणिक (३) मंद; सुस्त (४) झांखं; __ जीववा योग्य (३) न० पाणी (४) अंधारियु(५) न० कपट; अप्रमाणिकता ताजं दूध [आजीविका जिह्मग वि० वांकुंकुं जनारु (२) धीमे जीवनोपाय पुं० निर्वाहनुं साधन; चालनारु (३) पुं० साप जीवन्मुक्त वि० छते देहे मुक्त थयेलं जिह्मगति वि० वांकुंकुं चालनारं जीवन्मुक्ति स्त्री० जीवन्मुक्त दशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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