SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अक्षय अक्षय वि० क्षय न पामतुं;अविनाशी(२) अखूट (३) पुं० परमात्मा [अखूट अक्षय्य वि० क्षय के नाश न पामे तेवु(२) अक्षर वि० अविनाशी; शाश्वत (२) पुं० परमात्मा (३)न० वर्णमाळानो प्रत्येक वर्ण (४) मोक्ष (५) परब्रह्म अक्षरन्यास पुं० वर्णमाळा (२) लखाण अक्षरशः अ० अक्षरे अक्षर; शब्दे शब्दना अर्थ प्रमाणे ज्ञान अक्षहृदय न० पासानी विद्यार्नु रहस्य के अक्षांति स्त्री० क्षमानो अभाव (२) ईर्षा (३) क्रोध अक्षांश पुं० विषुववृत्तथी उत्तर के दक्षिणतुं अंतर-अक्ष बतावनार १८० अंश छे ते अक्षि न० आंख (२) 'ब'नी संख्या अक्षिगत वि० प्रत्यक्ष ; दृष्टिगोचर (२) आंखमां खूचतुं; अप्रिय [पापण अक्षिपक्ष्मन्, अक्षिलोमन् न० आंखनी अक्षिश्रवस् पुं० साप अक्षुण्ण वि० वटायेलुं नहि तेवू (२) अजित; फतेहमंद अक्षेत्र वि० खेतर विनानु; खेड विनानुं (प्रदेश) (२) न० खराब खेतर (३) कुपात्र शिष्य अक्षौहिणी स्त्री०२१८७०हाथी,२१८७० रथ, ६५६१० घोड़ा, तथा १०९३५० पायदळनी बनेली महासेना अखर्व वि० ठींगणुं नहि एवं (२) मोटुं अखंड, अखंडित वि० खंडित न थयेलं; अग्नितनय अगति स्त्री० उपाय के मार्ग न होवो ते (२)प्रवेश के पहोंच नहीं ते (३) अवगति अगतिक, अगतीक वि० निराधार (२) छेवटनुं (उपाय) अगद वि० नीरोगी (२) न बोलतुं के कहेतुं (३) पुं० ओसड (४) तंदुरस्ती अगम्य वि० ज्यां जई न शकाय तेवू (२) समजी न शकाय तेवू; गूढ; __ अज्ञेय (३) तजवा जेवू; निषिद्ध अगम्या स्त्री० जेनी साथे संग निषिद्ध होय तेवी (स्त्री) अगम्यागमन न० निषिद्ध स्त्री साथे व्यभिचार अगरु पुं० एक जातनुं चंदन [खाडो अगाष वि० घणुं ऊंडु(२) पुं०, न० ऊंडो अगार न० रहेठाण; आवास; घर अगुण वि. निर्गुण (परमात्मा) (२) सारा गुणो विनानु; निरुपयोगी (३) पुं० दोष अगुरु वि० वजनदार नहि एवं; हलकुं (२) ट्रॅकु; ह्रस्व (पद्यमां) (३) जेने गुरु न होय तेवू; नगुरुं (४) न० अगरु अगृह पुं० घर वगरनो- वानप्रस्थ अगोचर वि० इंद्रियातीत; अगम्य अग्नि पुं० अग्नि; आग (२) अग्निदेव (३) जठराग्नि (४) पित्तनो अग्नि (५) सोनुं (६) 'त्रण'नी संख्या अग्निकर्मन् न० अग्निमां होम करवो ते अग्निकुमार पुं० कार्तिकेय अग्निकोण पुं० अग्निखूणो (दक्षिण-पूर्व) अग्निक्रिया स्त्री० प्रेत-संस्कार; शबने अग्निदाह देवो ते अग्निक्रीडा स्त्री० आतशबाजी अग्निगर्भ वि० जेमांथी अग्नि जन्मे एवं (२) सूर्यकांत मणि (३) अरणी अग्निज वि० अग्निमांथी उत्पन्न थयेलं (२)पुं० कार्तिकस्वामी (३) न० सोनुं अग्निजिह्वा स्त्री० अग्निनी ज्वाळा अग्नितनय पुं० कार्तिकस्वामी आखु अखिल वि० आखू; बधुं; समस्त अल्यात वि० अप्रसिद्ध (२) न कहेलु अग वि० चाली न शके तेवू (२) जेनी पासे न जई शकाय तेवू (३) पुं० वृक्ष (४) पर्वत (५)साप (६) सूर्य (७) 'सात'नी संख्या अगण्य वि० गणी न शकाय तेटलुं (२) गणनामां न लेवाय तेवू - तुच्छ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy