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________________ १२३ कर्मपाक पुं० जुओ कर्मविपाक कर्षण न० खेडवू ते (२) खेंचq ते (३) कर्मफल न० कर्मनुं फळ - परिणाम दुःख देवं ते (४)एक शस्त्र (५)खेड;खेती कर्मबंध पुं०, कर्मबंधन न० कर्मनुं बंधन कर्षित वि० खेडायेलू (२) आकर्षायेलु (२) कर्मना फळरूपे मळतो पुनर्जन्म (३)पीडा करायेलु (४) घसाई गयेलं कर्मभूमि स्त्री० कर्म करवानें क्षेत्र (२) कर्षिन् वि० खेंचनारु (२)आकर्षक (३) धर्मकर्म करवानो देश (भारतवर्ष) पुं० खेडूत कर्मयोग पुं० उद्योग (२) यज्ञादि कर्मने कहि अ० क्यारे? कये वखते? अनुसरवा द्वारा मोक्ष मेळववानो मार्ग कहिचित्, कहिस्वित्, कपि अ० कदी कर्मविपाक पुं० करेलां कर्मनुं फळ पण; क्यारे पण मळवू ते कल् १ आ० अवाज करवो (२) गणवू कर्मसचिव पुं० मंत्री; प्रधान (३) १० उ० पकडवू; लेवू; धारण कर्मसंग पुं० सांसारिक कर्मो अने तेमनां कर (४) गणतरी करवी; मापवू फळो प्रत्येनी आसक्ति (५) धारवं; मानवं; गणवं; समजवू कर्मसाक्षिन् पुं० नजरे जोनार साक्षी (६) प्रेर, (७) १० प० हांकवू; (२) माणसनां सारांनरसां कर्म जोनार धकेलq (८) नाखवू; फेंक (सूर्य, चन्द्र, यम, काल अने पंच- कल वि० अस्पष्ट ; मधुर (२) मिष्ट; महाभूतो) कार्यमा सफळता। धीमुं; हळवू (३)झंकार करतुं; रणकतुं कर्मसिद्धि स्त्री० कर्मफळनी प्राप्ति (२) (४) पूर्ण कलबल; घोंघाट कर्मायतन न० इंद्रिय; कमद्रिय कलकल पुं० कलरव ; गुंजारव (२) कार पुं० सराणियो; लुहार कलकंठ वि० मधुर अवाजवाळू कर्माशय पुं० (सारांमाठां) कर्मोनो कलत्र न० पत्नी; भार्या (२) नितंब संचय के तेनुं स्थान । कलधौत न० चांदी ; रू' (२)सोनुं कर्मात पुं० कार्यनो अंत; कर्मनी समाप्ति कलन वि० करनारु (समासने अंते) (२)धोरोजगार (३) कार्यकर; सेवक (२) न० चिह्न (३) दोष (४) ग्रहण कर्मातर न० चालु धर्मकार्य थोभ्यु होय करवू ते (५) ज्ञान ते वचगाळो (२) अन्य कर्म । कलना स्त्री० ज्ञान (२) ग्रहण करवू कर्मातिक पुं० मजूर; कारीगर ते (३)पहेर -धारण कर ते (४) कमिन् वि० उद्योगी (२)फळना हेतुथी उतारी नाखवू - काढी नाखवू ते धार्मिक कार्यों करनारु (३) पुं० कलभ पुं० हाथी के ऊंटनुं बच्चु (२) कारीगर [(२) कार्यकुशळ त्रीस वर्षनी वयनो हाथी कमिष्ठ वि० कर्म करवा उपर प्रीतिवाळू कलम पुं० एक जातनी डांगर (२) लेखणी कमेद्रिय न० कर्म करवानी इंद्रिय (हाथ, कलरव पुं० मधुर ध्वनि पग, वाणी, गुदा अने उपस्थ) कलविक पुं० चकलो महासागर कर्वट पुं० जिल्लानी राजधानी जेवू के कलश पुं०, न० लोटो; कळश (२) बजार, मोटुं शहेर कलशि(-शी) स्त्री० घडो; गोळी कर्वर वि० काबरचीतरं कलस पुं०, न० जुओ 'कलश' कर्शन वि० कृश बनावतुं ; पीडा करतुं कलसि (-सी) स्त्री० जुओ 'कलशि' कर्षक पुं० खेड करनार; खेडूत कलह पुं० कजियो; कंकास (२) युद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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