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________________ - उपालंभ १०८ उपालंभ पुं०, उपालंभन न० ठपको; थर्बु (३) स्वीकार; आचरb; धारण महेणुं ते; आळोटबुं ते करवू; पाम, (स्थिति) उपावर्तन न० पार्छ फरवू ते (२)गबडवू उपेक्ष १ आ० उपेक्षा करवी ; अवगणना उपावृत् १ आ० पार्छ फरवू (२) पासे करवी (२) बेदरकार रहेQ (३) जवु (३) आपवं (४) आळोटवू; गबडवू तिरस्कार करवो (४) त्याग करवो उपाश्रय पुं० आशरो; आधार (२) (५) जोवू; विचारवं आश्रयस्थान उपेक्षण न०, उपेक्षा स्त्री० अनादर; उपाधि १ उ० आश्रय लेवो तिरस्कार (२) त्याग (३) अनपेक्षा उपाश्रित वि० आशरो लेनाएं (२) उदासीनता (४) बेदरकारी धारण करनारुं; वहन करनारं उपेत ('उपे' नुं भू० कृ०) वि० नजीक उपास २ आ० पासे बेसवं (२) उपासना __ आवेलु (२) युक्त; सहित करवी; सेवQ (३) पसार करवू (समय) उपेय वि० पासे जवा योग्य (२) पाळव (४) पहोंचवें; जवु (५) रहे; पासे रहे लायक (३) उपायथी साधवा लायक (६) घेरो घालवो सेवक उपद्र पुं० विष्णु (वामन अवतारम उपासक पुं० भक्त; साधक (२)अनुयायी; इंद्रना नाना भाई होवाथी) उपासन न०, उपासना स्त्री० आराधना; उपोढ वि० एकळु थयेलं; संग्रहायल सेवा; भक्ति (२) ध्यान-चिंतन (३) (२) नजीक लावेल - आवेलु (३) धनुर्वेदनो अभ्यास आरंभायेलु (४) परणेलं उपाहार पुं० अल्प आहार; नास्तो उपोद्घात पुं० आरंभ (२) ग्रंथनी प्रस्तावना (३) प्रसंग; साधम उपाहित वि० मूकेलं (२)अनामंत मूकेलं उपोषण, उपोषित न० उपवास (३)पहेरेलु (४) युक्त उपोह, (उप+ऊह.) १ प० धकेल; उपाह १ उ० लई आवq; लावq (२) -नी तरफ खसेडवू आपवू; अर्पण कर उप्त ('वप्' न भू० कृ०) वि० वावेलु उपांग पुं० कपाळे करवामां आवतुं (२) नाखेल (३) मूंडेलु चंदननुं टीलु (२) न० मुख्य विषयनो उप्ति स्त्री० वावणी पेटा भाग ; गौण अंग-अंगनुं अंग (३) उभ् ६ प० [उभति, उभति, ७ प० वेदांग जेवां चार शास्त्र (पुराण,न्याय, [उनप्ति, ९ ५० उभ्नाति| भरवू ; मीमांसा, धर्मशास्त्र) [(पाणी) छाई देवं मां ज वपराय) उपांच (उप+अंच्) १ उ० ऊंचे चढाववं उभ स० ना०, वि० बंने ; बे (द्वि०व० उपांत वि० छेडानी नजीकच् (२) पुं० उभय स० ना०, वि० बन्ने (अर्थम नजीकनो भाग – प्रदेश (३) कोर; द्विवचनी छतां एकवचन के बहुवचन छेडो; सीमा; हद (४) आंखनो खूणो मां ज वपराय) (५) निकटता; नजीकपणु उभयतस् अ० बन्ने बाजुएथी उपांत्य वि० छल्लानी पहेलानु (२) उभयथा अ० बन्ने रीते न० सांनिध्य गप्त रीते उभयान्वयिन् वि० उभय (पद अथवा उपांशु अ० खानगीमां; धीमेथी (२) वाक्य) -ने जोडनारुं (व्या०) उपे (उप+इ)२५०पासे आवq ; आवी उम् अ०प्रश्न, सांत्वन, संमति, स्वीकार पहोंचवु (२) गुरु पासे जवू; शिष्य क्रोध - ए भाव दर्शावे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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