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________________ तेना क्रममा एनो अर्थ मळी जशे. ज्यां जरूर मानी त्यां ए उपसर्गने छटो पाडी कौंसमां फरीथी लख्यो छे. जेम के 'अधी' (अधि + इ); 'व्यपे' (वि + अप + इ). (२) संस्कृत कोशमां बीजी मुख्य मुश्केली अनुनासिकना उपयोगवाळा शब्दोनो क्रम शोधवामां पडे छे. जेम के सामान्य संस्कृत कोशमां अंश, अंस, अंहस् वगेरे शब्दो अ अक्षरथी शरू थता शब्दोनी छेक ज शरूआतमां आप्या हशे, अने अंड, अंत, अंध, वगेरे शब्दो अण्ड, अन्त, अन्ध, ए प्रकारे क्रम कल्पीने ए क्रममा मूक्या हशे. आ कोशमा विद्यार्थीनी सगवड विचारी, गूजरात विद्यापीठना गुजराती जोडणोकोशनी रीते बधा अनुनासिकोने अवश्य अनुस्वाररूपे ज लखीने, दरेक स्वर ने अंते ज एक साथे आप्या छे. अर्थात् 'अ' अक्षर पूरो थतां अं थी शरू थता शब्दो, 'आ' पूरो थया पछी आं थी शरू थता शब्दो, ए प्रमाणे. __दरेक धातुनुं त्रीजी विभक्ति एकवचननुं रूप आप्यु होय तो उपयोगी थाय खलं; पण एनाथी मूळ धातुने शोधवा माटे कशी मदद न मळे. एटले ज्यां आदेशने कारणे धातुनुं जुरूप थतुं होय, त्यां ज चोरस कौंसमां ते रूप आप्युं छे. जेम के, गम् १ प० [गच्छति]. ___ दरेक धातुनी साथे तेनुं भूतकृदंत रूप पण अपाय छे. पण तेने मूळ धातु शोधवामां उपयोगी न मानीने भूतकृदंतनो शब्द आवे त्यारे ते जे धातुन भूतकृदंत होय ते कौंसमां बताव्युं छे. जेम के गूढ ('गुह, ' नुं भू० कृ०). (उपसर्ग सार्थना धातुन भूतकृदंत होय, त्यां ते आ प्रमाणे जुदुं नथी बताव्युं. संस्कृतमां भूतकृदंतो कर्मणि भूतकृदंतो मुख्यत्वे होय छे. एटले कर्मणि भू० कृ० न लखतां संक्षेपमा मात्र भू० कृ० ज लख्यं छे. केटलांक बहु ओछां भूतकृदंतो कर्तरि पण होय छे. जेम के 'हतवत् '. ज्यां शब्दनी अंदर इ के उनी पछी स् आववाथी स् नो ष् थई गयो होय छे, तेवे स्थळे कौंसमां ते जुदं दर्शाव्यं छे. जेमके, निषिध, (नि + सिध्), निषेव् (नि + सेव् ). जे शब्दो बहुवचनमां ज वपराय छे, तेमनां प्रयमा विभक्ति बहुवचननां रूप ज मूळ शब्द तरीके मूक्यां छे. जेम के, पौरजानपदाः पुं० ब० व०. परन्तु केटलाक शब्दोना मात्र द्वि० व० के ब० व० मां जुदा अर्थ थता होय, तेवाओने मूळ तो एकवचनमांज मकीने पछी अर्थोमां वचन दर्शावी जुदो अर्थ आप्यो छे. जेम के, पूर्वदेव पुं० (३) (द्वि० व०) नर अने नारायण ; पूर्वपूर्व (२) पुं० (ब० व०) पूर्वजो. नामधातुओर्नु त्रीजा पुरुष एकवचननुं रूप ज मूळ शब्द तरीके मूक्यं छे, अने अर्थ धातुनी रीते कौंसमां दर्शाव्यो छे. तेवी जगाए गण के पद ज्यां मूळ आधारकोशोमांथी मळ्यां त्यां ज दर्शाव्यां छे.जेम के प्रकटयति प० (दविवं, प्रगट करवू). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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