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________________ उदास मुक्ति, शक्ति - वगेरे अर्थमां वपराय (नाम अने क्रियापद पूर्वे) उद, उदक न० जळ ; पाणी उदककार्य न० देहशुद्धि (२) पितृतर्पण; श्राद्ध वारसदार उदकदातृ वि० श्राद्ध करना९ (२) उदकांत पुं० जळागयनो किनारो । उदकुंभ पुं० पाणीनो घडो । उदन वि० ऊंची अणीवाळु (२) ऊंचु (३) मोटुं; विस्तृत (४) उदार;भव्य ; उत्कृष्ट (५) वयोवृद्ध (६) तीव; भयंकर; असह्य (७) उश्केरायेलु; झनूनी उदनप्लुतत्व न० ऊंची छलंग के कूदको उदङमुख वि० उत्तर तरफ मोवाळं उदच वि० ऊंचे जनारु (२) उपरवास आवेलु (३) उत्तर तरफनु (४) पछीजें; पाछलु उदधि पुं० समुद्र ; महासागर उदधिकन्या स्त्री० लक्ष्मी उदधिमेखला स्त्री० पृथ्वी उदधिसुता स्त्री० लक्ष्मी जाय) उदन् न० पाणी (समासमां न्' ऊडी उदन्या स्त्री० तरस उदन्वत् पुं० महासागर उदपात्र न० जळपात्र उदपान पुं०, न० नानुं खाबोचियु (२) कवा पासेनी कुंडी; कूवो उदपीति स्त्री० पाणी पीवान स्थळ उदप्लव पुं० जळप्रलय उदबिंदु पुं० पाणी टी' उदभार पुं० मेघ (२) पूर उदय पुं० चडवू ते, ऊगवू ते; वृद्धि, उन्नति (२)प्रगट थर्बु ते ; उत्पत्ति (३) संपत्ति; लाभ ; उत्कर्ष (४)परिणाम ; फळप्राप्ति ; सिद्धि (५) व्याज (६) आमदनी; महेसूल (७)एक कल्पित पर्वत, जेनी पाछळथी सूर्य उदय पामे छ एम मनाय छे (८) प्रारंभ उदयन न० ऊगवू ते ; उदय उदर न० पेट (२) अंदरनो भागमध्यभाग (३) युद्ध - मारामारी; वध - कतल उदरंभरि वि० पोतानुं पेट भरनाएं; स्वार्थी (२) अकरांतियुं खानाएं उदर्क पुं० अंत (२) परिणाम (३) भविष्य -- भविष्यकाळ (४) चडियाता होवू ते उचिस् वि० सळगतुं; प्रकाशित; तेजस्वी (२) पुं० अग्नि उदवास पुं० पाणीमां रहे ते ; पाणीमां रही तप करवू ते उदवाह पुं० मेघ उदश्रु वि० आंसु सारतुं; रडतुं उदस् ४ प० ऊंचुं करवं - धरवं. (२) नीचे फेंकवं (३)दूर कर;नाबूद करवू उदहार वि० पाणी वही लावनारु (२) पुं० वादळ उदंच वि० जुओ 'उदच' उदंच १ उ० ऊंचं करवू; ऊंचु चडाव, (२) उच्चार (३) अ० क्रि० ऊंचे चडवू; उपर धसवं पाणीनुं वासण उदंचन न० पाणी काढवानी डोल; उदत पुं० समाचार; खबर उदंभस् वि० पाणीथी भरेलं उदात्त वि० उच्च ; श्रेष्ठ (२) उदार (३) प्रख्यात (४) ऊंचु (स्वर) उदान पुं० श्वास उपर खेंचवो ते (२) शरीरमांना पांच प्राणवायुओमांनो एक (३) आनंदनो उद्गार (बौद्ध०) उदायुध वि० शस्त्र उगाम्यां होय तेवू उदार वि० सखी दिलनुदानशील (२) खुल्ला मननु; निखालस (३) प्रमाणिक (४) सुंदर; मनोरम (५) उचित; योग्य (६) पुष्कळ (७) मोटुं; भव्य उदारम् अ० मोटेथी; मोटे अवाजे (२) दलीलो वडे उदास् २ प० उदासीन रहेवं; वेकिकर रहे (२ तटस्थ रहेव (३)निष्क्रिय रहेब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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