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________________ ६२ धन और सत्ता के क्षेत्र में उत्कृष्ट बनूं' - इस प्रकार आकांक्षा करना । इहलोको - मनुष्यलोकः, तस्मिन्नाशंसा - अभिलाषः तस्याः प्रयोगः इहलोकाशंसाप्रयोगः श्रेष्ठी स्यां जन्मान्तरेऽमात्यो वा इत्येवंरूपा प्रार्थना | (उपा १.४४ वृ पृ २१ ) ई ईर्यापथक्रिया क्रिया का एक प्रकार । (द्र ईर्यापथिक बन्ध) ईर्यापथिक बन्ध केवल योग - (कषायमुक्त ) प्रवृत्ति के कारण होने वाला कर्मबंध, ऐर्यापथिकी क्रिया से होने वाला कर्मबन्ध । यह बंध वीतराग के होता है। (तवा ६.५.७) ऐर्यापथिकं - केवलयोगप्रत्ययं कर्म्म तस्य यो बन्धः । (भग ८.३०२ वृ) एवं पञ्चभिः समितिभिः समितस्य तिसृभिर्गुप्तिभिर्गुप्तस्य सर्वत्रोपयुक्तस्येर्याप्रत्ययिकः सामान्येन कर्मबन्धो भवति । ( सूत्र २.२.२ वृ प ४६ ) ईर्यापथिको वीतरागस्य । ईर्या - योगः, पन्थाः -- मार्गों यस्य बन्धस्य स ईर्यापथिकः । अयञ्च सातवेदनीयरूपः द्विसमयस्थितिको भवति । (जैसिदी ७.२० वृ) (द्र ऐर्यापथिकी क्रिया) ईर्यापथिकी आवश्यक का वह सूत्र, जिसका उच्चारण बाहर से आने पर चलने में होने वाले प्रमाद की शुद्धि के लिए किया जाता है। इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए गमणागमणे...... । ( आव ४.४) विणएण पविसित्ता, सगासे गुरुणो मुणी । इरियावहियमायाय, आगओ य पडिक्कमे ॥ Jain Education International (द ५.१.८८) ईर्यासमिति शरीरप्रमाणभूमि को आंखों से देखकर चलना । जैन पारिभाषिक शब्दकोश (जैसिदी ६.१३) युगमात्रभूमिं चक्षुषा प्रेक्ष्य गमनमीर्या । ईर्यासमिति योग अहिंसा महाव्रत की एक भावना। युगप्रमाण भूमि को देखकर चलना । ठाणगमणगुणजोगजुंजणजुंगतरनिवातियाए दिट्ठीए इरियां... एवं इरियासमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा । ( प्रश्न ६.१७ ) ईशान १. दूसरा स्वर्ग । कल्पोपपन्न वैमानिक देवों की दूसरी आवास( उ ३६.२११) भूमि । (देखें चित्र पृ ३४६) २. ईशानस्वर्गवासी देव । ईशानो नाम द्वितीयदेवलोकस्तन्निवासिनो देवा अपि ईशानास्त एव ईशानकाः । एवमुत्तरत्रापि व्युत्पत्तिः कार्या । ( उशावृ प ७०२ ) ३. दूसरे स्वर्ग के इन्द्र । एतेसुणं दस कप्पेसु दस इंदा पण्णता, तं जहा - सक्के, ईसाणे, सणकुमारे, माहिंदे, बंभे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे, पाणते, अच्चुते । (स्था १०.१४९) ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी मुक्त आत्माओं का निवास स्थान। यह लोक के अग्र भाग में स्थित है। सीधे छत्ते के आकार जैसा और श्वेत स्वर्ण से निर्मित है। (देखें चित्र पृ ३४१ ) अलोए पहिया सिद्धा लोयग्गे य पइट्टिया । इहं बोंदिं चइत्ताणं तत्थ गंतूण सिज्झई ॥ बारसहिं जोयणेहिं सव्वट्टस्सुवरि भवे । सीपभारनामा उ पुढवी छत्तसंठिया ॥ अज्जु सुवणगमई सा पुढवी निम्मला सहावेणं । उत्ताणगछत्तगसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं ॥ ( उ ३६.५६, ५७, ६० ) ईहा श्रुतनिश्रित मतिज्ञान का एक प्रकार । अवग्रह के बाद 'यह अमुक होना चाहिए' इस प्रकार किया जाने वाला विशेष का पर्यालोचन । हनमीहा, सद्भूतार्थपर्यालोचनरूपा चेष्टा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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