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________________ ६० ......इच्छाकारो य सारणे । इच्छा - स्वकीयोऽभिप्रायस्तया करणं - तत्कार्यनिर्वर्तनमिच्छाकारः, सारणे इत्यौचित्यत आत्मनः परस्य वा कृत्यं प्रति प्रवर्त्तने, तत्रात्मसारणे यथेच्छाकारेण युष्मच्चिकीर्षितं कार्यमिदमहं करोमीति, अन्यसारणे च मम पात्रलेपनादि सूत्रदानादि वा इच्छाकारेण कुरुतेति । ( उ २६.६ शावृ प ५३५ ) इच्छानुलोमा असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा का एक प्रकार। किसी के कार्य को समर्थन देने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली भाषा, जैसे - यह कार्य तुम करो, मुझे भी यह अच्छा लगता है। इच्छानुलोमा नाम यथा कश्चित्किञ्चित्कार्यमारभमाणः कञ्चन पृच्छति, स प्राह- करोतु भवान् ममाप्येतदभिप्रेतमिति । (प्रज्ञा ११.३७ वृप २५९) इच्छापरिमाण गृहस्थधर्म का पांचवां व्रत, जिसमें परिग्रह की इच्छा का सीमाकरण किया जाता है। अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छापरिमाणं (आव परिपृ २२) उवसंपजड़ । इतरेतरसंयोग दो, तीन आदि परमाणुओं का संयोग होना; द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि स्कंध इसके उदाहरण हैं। दुप्पभितीण परमाणूणं जो संजोगो सो इतरेतरसंजोगो भवति परमाणूणं । (उच् पृ १७) इतरेतराभाव अभाव का तीसरा प्रकार। दो वस्तुओं में परस्पर एकरूपता का अभाव, जैसे- स्तम्भ में घट के स्वरूप का अभाव और घट में स्तम्भ के स्वरूप का अभाव । स्वरूपान्तरात् स्वरूपव्यावृत्तिरितरेतराभावः । यथा स्तम्भस्वभावात् कुम्भस्वभावव्यावृत्तिः । (प्रनत ३. ६३, ६४ ) इत्वर परिहारविशुद्धिक वह मुनि, जो परिहार - विशुद्धि की साधना के बाद पुनः उस साधना को स्वीकार करता है अथवा गच्छ में आ जाता है। कल्पसमाप्त्यनन्तरं तमेव कल्पं गच्छं वा समुपयास्यन्ति ते Jain Education International इत्वरा: । इत्वरिक अनशन सावधिक तप; जैन पारिभाषिक शब्दकोश छम्मासा । (द्र यावत्कथिक अनशन) (प्रज्ञावृ प ६८ ) इसकी अवधि है - उपवास से छह मास पर्यन्त । इत्तरियं णाम परिमितकालियं, तं चउत्थाउ आरद्धं जाव (दजिचू पृ २१ ) इत्वरिक सामायिकचारित्र सात दिन अथवा चार मास अथवा छः मास की अवधि वाला सामायिक चारित्र । इस अवधि की समाप्ति के बाद छेदोपस्थापन चारित्र में उपस्थापन होता है। यह प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के समय होता है। इत्वरस्य भाविव्यपदेशान्तरत्वेनाल्पकालिकस्य सामायिकस्यास्तित्वादित्वरिकः स चारोपयिष्यमाणमहाव्रतः । (भग २५.४५४ वृ) इन्द्र देवों के अधिपति । इन्द्रा भवनवासिव्यन्तरज्योतिष्कविमानाधिपतयः । For Private & Personal Use Only (तभा ४.४ वृ) इन्द्रस्थावरकाय इन्द्र से संबंधित होने के कारण पृथ्वीकाय का अपर नाम है - इन्द्रस्थावरकाय । इन्द्रसंबंधित्वादिन्द्रः स्थावरकायः पृथिवीकायः । (स्था ५.१९ वृप २७९) पंच थावरकाया पण्णत्ता, तं जहा- इंदे थावरकाए, बंभे थावरकार, सिप्पे थावरकाए, सम्मती थावरकाए, पायावच्चे थावरकाए । (स्था ५.१९) इन्द्रस्थावरकायाधिपति वह देव, जो पृथ्वीकायसंज्ञक स्थावरकाय का अधिपति है । स्थावरकायानां – पृथिव्यादीनामिति सम्भाव्यन्तेऽधिपतयो - (स्था ५.२० वृप २७९) नायकाः । इन्द्रिय ज्ञान का वह स्रोत, जिसके द्वारा आत्मा (इन्द्र) का बाह्य जगत् के साथ सम्पर्क होता है और जिसके द्वारा शब्द आदि www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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