SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश होने वाली क्षुल्लकविद्याओं और महाविद्याओं में लुब्ध नहीं होता। अभिगमसम्यग्दर्शन उपदेश आदि निमित्तों से प्राप्त होने वाला सम्यग्दर्शन। अभिगमोऽधिगमो गुरूपदेशादिः। (स्था २.८० वृ प ४४) अभिगृहीता असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा का एक प्रकार। किसी के पूछने पर किसी कार्य के लिए स्पष्ट निर्देश देने वाली भाषा, जैसे-अभी तुम यह काम करो, यह मत करो। अभिगृहीता प्रतिनियतार्थावधारणं, यथा इदमिदानीं कर्त्तव्यमिदं नेति। (प्रज्ञा ११.३६ ७ प २५९) अभिग्रह १. लक्ष्यपूर्ति की शर्त के साथ किया जाने वाला संकल्प. विशेष प्रतिज्ञा। तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-णातिसयण-संबंधिवग्गं पडिविसजेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-बारसवासाई वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पजंति, तं जहा-"दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे अणाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते सम्म सहिस्सामि खमिस्सामि अहियासइस्सामि॥" (आचूला १५. ३४) सामी य इमं एतारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हति, चउव्विहं... दव्वतो कुम्मासे सुप्पकोणेणं, खित्तओ एलुगं विक्खंभइत्ता, कालओ नियत्तेसु भिक्खायरेसु, भावतो जदि रायधुया दासत्तणं पत्ता, णियलबद्धा, मुंडियसिरा, रोयमाणी, अब्भत्तट्ठिया एवं कप्पति, सेसंण कप्पति। (आवचू १ पृ ३१७) अभिगृह्यन्त इत्यभिग्रहा:-प्रतिज्ञाविशेषाः। (आवहावृ २ पृ २१०) २. प्रत्याख्यान का एक प्रकार। विशेष प्रतिज्ञा की संपूर्ति होने से पहले चतुर्विध आहार का त्याग करना। अभिग्गहं पच्चक्खाइ चउव्विहं पि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं.....। (आव ६.९) रोहिणिआदिपंचसयमहाविज्जाओ"सव्वविजाणं जो लोभं गच्छदि सो भिण्णदसपुव्वी, जो पुण ण तासु लोभं करेदि कम्मक्खयत्थी सो अभिण्णदसपुव्वी णाम। (धव पु ९ पृ ६९) अभिभव कायोत्सर्ग १. दूसरों से अभिभूत होकर किया जाने वाला कायोत्सर्ग। २. उपसर्गों के आने पर किया जाने वाला कायोत्सर्ग। सो उस्सग्गो दुविहो चिट्ठाए अभिभवे य नायव्वो। भिक्खायरियाइ पढमो उवसग्गाभिमुंजणे बिइओ॥ (आवनि १४५२) अभिमुखनामगोत्र जो जीव भावी जन्म के नाम और गोत्र के अभिमुख हो, जिसके जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् भावी जन्म के नाम और गोत्र उदय में आने वाले हों। नीचैर्गोत्राख्ये अभिमुखे जघन्यतः समयेनोत्कृष्टतोऽन्तर्मुहूर्तमात्रेणैव व्यवधानात् उदयाभिमुखप्राप्ते नामगोत्रे कर्मणी यस्य सोऽभिमुखनामगोत्रः। (अनु ५६८ मवृ प २१३) अभिलापाक्षर अक्षर का एक प्रकार। अभिलाववण्णा अक्खरं भणिता, पंकजवत्, एवं ताव अभिलावहेतुग्गहणतो सुतविण्णाणस्स अक्खरता भणिता। (नन्दीचू पृ ४४) (द्र व्यञ्जनाक्षर) अभिषवाहार उपभोगपरिभोग-परिमाण व्रत का एक अतिचार। १. चीटी, लट आदि से युक्त आहार करना। कुन्थुपिपीलिकादिसूक्ष्मजन्तुव्यतिमिश्रस्याभ्यवहार: अभिषवाहारः। (तभा ७.३० वृ) २. सिरका का प्रयोग तथा उत्तेजित भोजन करना। द्रवः सौवीरादिकः वृष्यं वा द्रव्यमभिषवः इत्यभिधीयते। (तवा ७.३५) अभिषेक सूत्र, अर्थ और तदुभय का ज्ञाता मुनि, जो आचार्य-पद के अभिन्नदशपूर्वी १. जो समग्र दशपूर्वो का ज्ञाता है। अभिन्नदशपूर्विणः-सम्पूर्णदशपूर्वधरस्य। (नन्दी ६६ मवृ प १९२) . २. वह मुनि, जो दशवें पूर्व का अध्ययन समाप्त होने पर प्राप्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy