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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश याऽसावनौपनिधिकी सा नयवक्तव्यताश्रयणात्। (अनु १११ हावृ पृ ३१) (द्र औपनिधिकी) अन्तगत अवधिज्ञान आनुगामिक अवधिज्ञान का एक प्रकार । एक दिशा में विद्यमान विषय-वस्तु को जानने वाला अतीन्द्रिय ज्ञान। सव्वातप्पदेसविसुद्धेसु वि ओरालियसरीरेगतेण एगदिसिपासणगतं ति अंतगतं भण्णति। (नन्दी १० चू पृ१६) अन्तःशल्यमरण मरण का एक प्रकार। आन्तरिक शल्य (अपराध) की आलोचना किये बिना होने वाला मरण। शल्यमिव शल्यमपराधपदं यस्य सोऽन्तःशल्यो लज्जाऽभिमानादिभिरनालोचितातीचारस्तस्य मरणं अन्तःशल्यमरणम्। (सम १७.९ वृ प३२) अन्तकरभूमि वह भूमि-काल, जिसमें कर्मों का अंत हो, जैसे-पुरुषान्तकरभूमि (युगान्तकरभूमि) और पर्यायान्तकरभूमि। अंतकरभूमि त्ति अन्तः कर्मणां भूमिः-कालो।सो दुविधोपुरिसंतकरकालो परियायतकरकालो य। (दशा ८ परि सू १०५ चू) अन्तरकरण मिथ्यात्व-दलिकों के प्रदेश-वेदन का अभाव–पूर्ण उपशम। अन्तरकरण के पहले क्षण में अन्तर्मुहूर्त स्थितिवाला औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त होता है। तद्वेद्याभावश्चान्तरकरणम्।तस्य प्रथमे क्षणे आन्तौहूर्त्तिकमौपशमिकसम्यक्त्वं भवति। (जैसिदी ५.८ वृ) (द्र अनिवृत्तिकरण) (भग ८.१११ वृ) अन्तर गति (द्र अन्तराल गति) अन्तकृतदशा द्वादशांग का आठवां अंग, जिसमें दस चरमशरीरी साधओं के जीवन का वर्णन है। अंतगडदसासुणं अंतगडाणं"अंतगड़ो मुणिवरो तमरयोधविप्पमुक्को, मोक्खसुहमणुत्तरं च पत्ता।" (समप्र ९६) अन्तरद्वीप लवणसमुद्र के मध्य में विद्यमान द्वीप। अन्तरे----लवणसमुद्रस्य मध्ये द्वीपा अन्तरद्वीपाः। (प्रज्ञा २.२९ वृ प ५०) अन्तकृतदशाधर वह मुनि, जो अन्तकृतदशा के सूत्रपाठ और अर्थ का विशेषज्ञ होता है। अप्पेगइया अंतगडदसाधरा। (औप ४५) अन्तकृतभूमि (दशा ८ परि सू १०५) अन्तरात्मा १. वह जीव, जो भेदविज्ञान-शरीर और आत्मा की भिन्नता की अनुभूति करता है। जे जिणवयणे कुसला, भेयं जाणंति जीवदेहाणं। णिज्जियदुदुमया अंतरप्या य ते.......॥ (काअ १९४) २. वह जीव, जो चौथे से बारहवें गणस्थान तक की अवस्था में विद्यमान है। अविरतगुणस्थाने तद्योग्याशुभलेश्यापरिणतो जघन्यान्तरात्मा, क्षीणकषायगुणस्थाने पुनरुत्कृष्टः, अविरतक्षीणकषाययोर्मध्ये मध्यमः। (बृद्रसंवृ पृ ३८) ३. जीव का एक पर्यायवाची नाम । वह आत्मा, जो मध्यरूप (शरीर में स्थित) है, शरीररूप नहीं है। 'अंतरप्पा'......"अन्तः-मध्यरूप आत्मा, न शरीररूप इत्यन्तरात्मेति। (भग २०.१७ वृ) ४. जो आत्मानन्द में लीन है। (द्र बहिरात्मा) (द्र अन्तकरभूमि) मा अन्तक्रिया जन्म-मरण की परम्परा का अन्तकरण। सब क्रियाओं-कर्मों से मुक्त अवस्था। भवस्यान्तकरणम्। (स्थावृ प १७०) कर्मान्तकरणं मोक्षः। (प्रज्ञा २०.१ प ३९७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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