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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश ३२१ सूर्य ज्योतिष्क देव का एक प्रकार। (उ ३६.२०८) सूर्यप्रज्ञप्ति (नन्दी ७७ चू पृ५८) (द्र सूरप्रज्ञप्ति) सृपाटिका संहनन वह अस्थि-रचना, जिसमें त्वचा और मांस के द्वारा हड्डियां जुड़ी रहती हैं। सपाटिकानाम कोटिद्वयसंगते ये अस्थिनी चर्मस्नायुमांसावबद्धे तत् सपाटिकानाम कीर्त्यते। (तभा ८.१२ वृ पृ १५४) (द्र सेवार्त्त संहनन) सेनापतिरत्न चक्रवर्ती के चौदहरत्नों में से एक रत्न, जो दलनायक होता संघात से होने वाला स्कन्ध, जैसे- प्रत्येक तन्तु स्कन्ध है। उनको समुदित करने से एक स्कन्ध बन जाता है। तदेकीभाव: स्कन्धः। (जैसिदी १.१८) तभेदसंघाताभ्यामपि। स्कन्धस्य भेदतः संघाततोऽपि स्कन्धो भवति, यथाभिद्यमाना शिला, संहन्यमानाः तन्तवश्च । (जैसिदी १.१९ वृ) २. अविभागी अस्तिकाय के लिए भी स्कन्ध शब्द का व्यवहार होता है, जैसे-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय स्कन्ध हैं। अविभागिनि अस्तिकायेऽपि स्कन्धशब्दो व्यवहियते, यथाधर्माधर्माकाशजीवास्तिकाया स्कन्धाः। (जैसिदी १.१९ वृ) स्तनितकुमार भवनपति देवनिकाय का एक प्रकार। वह देववर्ग, जिसका नाद स्निग्ध और गंभीर होता है, जिसका वर्ण कृष्ण आभा वाला तथा जिसका चिह्न है वर्धमान। स्निग्धाः स्निग्धगम्भीरानुनादमहास्वनाः कृष्णा वर्धमानचिह्नाः स्तनितकुमाराः। (तभा ४.११ वृ) सेनापतिः-दलनायकः। (प्रसाव प ३५०) सेवार्त्त संहनन वह अस्थि-रचना, जिसमें दो हड्डियों के पर्यन्त भाग परस्पर एक दूसरे का स्पर्श कर रहे हों। अस्थिद्वयपर्यन्तस्पर्शनलक्षणां सेवामा सेवामागतमिति सेवार्तम्। (स्था ६.३० वृ प ३३९) (द्र सृपाटिका संहनन) स्त्यानगृद्धि दर्शनावरणीय कर्म की एक प्रकृति। प्रगाढतम निद्रा, इस अवस्था में व्यक्ति जागृत अवस्था में पाली हई आकांक्षा को क्रियान्वित कर देता है। स्त्याना-बहुत्वेन सङ्घातमापन्ना गृद्धिः अभिकांक्षा जाग्रदवस्थाऽध्यवसितार्थसाधनविषया यस्यां स्वापावस्थायां सा स्त्यानगृद्धिः। (स्था ९.१४ वृ प ४२४) सोपक्रम आयु (तभा २.५२) (द्र अपवर्तनीय आयु) सौधर्म पहला स्वर्ग। कल्पोपपन्न वैमानिक देवों की पहली आवासभूमि। (उ ३६.२१०) (देखें चित्र पृ ३४६) स्त्रीकथाविरति समितियोग ब्रह्मचर्य महाव्रत की एक भावना। .."एवं इत्थीकहविरति-समितिजोगेण भावितो भवति अंत (प्रश्न ९.८) (द्र नोस्त्रीकथा) रप्पा। स्कन्ध १. वह पुद्गल-समूह, जो परमाणुओं के एकीभाव से होता है। स्कन्ध का भेद और संघात होने से भी स्कन्ध होता है। भेद से होने वाला स्कन्ध, जैसे-एक शिला एक स्कन्ध है। उसके टूटने से अनेक स्कन्ध बन जाते हैं। Jain Education International स्त्रीकथा विवर्जन ब्रह्मचर्य गुप्ति का दूसरा प्रकार। मणपल्हायजणणिं, कामरागविवड्डणिं। बंभचेररओ भिक्खू थीकहं तु विवज्जए॥ (उ १६ गा २) (द्र नोस्त्रीकथा) www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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