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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश पशमसमुत्थं सामायिकभेदं सदसत्क्रियाप्रवृत्तिनिवृत्ति लक्षणम् । (तभा १.१ वृ) सम्यक्त्व (नैश्चयिक ) तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । (तसू १.२) तत्त्वे तत्त्वश्रद्धा सम्यक्त्वम् । (जैसिदी ५.३) अनन्तानुबन्धिचतुष्कस्य दर्शनमोहनीयत्रिकस्य चोपशमे पशमिकम् । तत्क्षये क्षायिकम् । तन्मिश्रे च क्षायोपशमि(जैसिदी ५.४ वृ) कम् । (द्र सम्यग्दर्शन नैश्चयिक) सम्यक्त्व ( व्यावहारिक ) देव, गुरु और तत्त्व में श्रद्धा करना । अरहंतो मह देवो जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिणपण्णत्तं तत्तं इय सम्मत्तं मए गहियं ॥ या देवे देवताबुद्धिर्गुरौ च गुरुतामतिः । धर्मे च धर्मधीरः शुद्धा सम्यक्त्वमिदमुच्यते ॥ ( श्राप्र ४.२ ) ( योशा २.२ ) सम्यक्त्वक्रिया क्रिया का एक प्रकार । सम्यक्त्व को बढ़ाने वाली क्रिया । सम्यक्त्ववर्धिनी क्रिया सम्यक्त्वक्रिया । (तवा ६.५) सम्यक्त्व मोहनीय Jain Education International ( तवा ८.९ ) (द्र सम्यक्त्ववेदनीय) सम्यक्त्ववेदनीय तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट तत्त्वों का श्रद्धानात्मक सम्यक्त्व के रूप में जिस दर्शनमोह का वेदन किया जता है वह सम्यक्त्व वेदनीय है। जिनप्रणीततत्त्वश्रद्धानात्मकेन सम्यक्त्वरूपेण यद् वेद्यते तत् सम्यक्त्ववेदनीयम्। (प्रज्ञा २३.१७ वृ प ४६८) सम्यक्त्व संवर सम्यक्त्व के कारण होने वाला दर्शन मोहनीय कर्म के आगमन का निरोध, मिथ्यात्व आश्रव का निरोध । (स्था ५.११० ) सम्यक्त्व सद्भाव वह नय, जो अपने पक्ष का समर्थन करता हुआ भी परस्पर सापेक्ष है। अण्णोण्णणिस्सिया उण, हवंति सम्मत्तसब्भावा । ३०७ व्यापार । सम्यक्त्वादिपूर्वी मनःप्रभृतिव्यापारः । सम्यक्प्रयोग सम्यग्दर्शनपूर्वक होने वाला मन, वचन और शरीर का ( सप्र १.२१ ) (स्था ३.३९४ वृ प १४१ ) सम्यक् श्रद्धान अर्हत् के द्वारा प्रतिपादित तत्त्वों में होने वाली रुचि । रुचिर्जिनोक्ततत्त्वेषु, सम्यक् श्रद्धानमुच्यते । ( योशा १.१७) (द्र सम्यक्त्व (व्यावहारिक)) सम्यक् श्रुत श्रुतज्ञान का एक प्रकार । अर्हतों द्वारा प्रणीत द्वादशांग गणिपिटक । सम्मसुयं - जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं । (नन्दी ६५) For Private & Personal Use Only सम्यग्ज्ञान मोक्ष-मार्ग का एक अङ्ग । द्वादशाङ्गी का अध्ययन, जिससे संशय और विपर्यय से रहित यथार्थ बोध की प्राप्ति होती है। (तभा १.१ ) सम्यग्दर्शन (नैश्चयिक ) १. अनन्तानुबंधी कषायचतुष्क और दर्शनमोहनीयत्रिकइस दर्शनसप्तक के उपशम, क्षय और क्षयोपशम से होने वाली जीव की यथार्थ श्रद्धा । अर्हदभिहिताशेषद्रव्यपर्यायप्रपञ्चविषया तदुपघातिमिथ्यादर्शनाद्यनन्तानुबन्धिकषायक्षयादिप्रादुर्भूता रुचिर्जीवस्यैव सम्यग्दर्शनमुच्यते । (तभा १.१ वृ) (द्र सम्यक्त्व नैश्चयिक) २. वे नय, जो परस्पर सापेक्षता के सूत्र में पिरोए हुए होते हैं, जैसे एक सूत्र में पिरोई हुई मणियां हार कहलाती हैं। जह पुण ते चेव मणी जहागुणविसेसभागपडिबद्धा। 'रयणावलि' त्ति भण्णइ जहंति पाडिक्कसण्णाउ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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