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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश ३०३ पर्याये निरुक्तिभेदेनार्थभेदकृत् समभिरूढः। यथा-भिक्षते इत्येवंशीलो भिक्षुः, वाचं यच्छतीति वाचंयमः, तपस्यतीति तपस्वी। (भिक्षु ५.१२ वृ) निरूपण करना। प्रतिनियतषट्तयद्रव्यपर्यायाणामागमगम्यानां याथात्म्याविष्करणं यद्वचः तत् समयसत्यम्। (तवा १.२० पृ७५) समयान्त व्यवसाय का एक प्रकार। जैन सिद्धान्त अथवा श्रामणिक ग्रन्थों के आधार पर किया जाने वाला निर्णय। (स्था ३.३९६) (द्र लोकान्त, व्यवसाय) समय १. काल की सूक्ष्मतम इकाई, निमेष का असंख्यातवां भाग। परमनिकृष्टः काल: समयोऽभिधीयते। (आवहावृ १ पृ १७२) निमेषस्यासंख्येयतमो भागः समयः, कमलपत्रभेदायुदाहरणलक्ष्यः । (जैसिदी १.२२ वृ) परमाणुस्स णियट्ठिदगयणपदेसस्सदिकमणमेत्तो। जो कालो अविभागी होदि पुढं समयणामा सो॥ (त्रिप्र ४.२८५) (द्र असंख्येय) २. आत्मा, जीव, जो चैतन्य स्वभाव वाला है। चित्स्वभावो जीवो नाम पदार्थः स समयः। (ससा २ आख्या पृ९) ३. संकेत, जो शब्द के अर्थबोध का हेतु बनता है। सहजसामर्थ्यसमयाभ्यां शब्दोर्थऽप्रतिपत्तिहेतुः॥ ..........समयः संकेत:..........। (भिक्षु ४.५ वृ) ४. सिद्धान्त। 'समयोक्तिः'-सिद्धान्तभणितिः। (प्रसावृ प २१६) समयक्षेत्र अढाई द्वीप और दो समुद्र-जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदसमुद्र, पुष्करवरद्वीपार्ध-समयक्षेत्र कहलाता है, जहां सूर्य और चन्द्रमा की गति के आधार पर काल का निर्धारण होता है। अडाइज्जा दीवा, दो य समुद्दा, एस णं एवइए समयखेत्तेति पवुच्चति। (भग २.१२२) (द्र अर्धतृतीय द्वीप) समवसरण १. तीर्थंकर का प्रवचन-स्थल। समवसरणशब्दस्तीर्थकृतः सभायां"। (पिनि २ अव प १) २. विशेष अवसर पर अनेक साधुओं का मिलनस्थल। जिनस्नपनरथानुयानपट्टयात्रादिषु यत्र बहवः साधवो मिलन्ति तत्समवसरणम्। (सम १२.२.२ वृ प २२) ३. मिलन, इसके अनेक रूप होते हैं • सूत्र और अर्थ का एक साथ होना। • जीव आदि नव पदार्थों का एक साथ समाकलन। • द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का समाकलन। समोसरणं णाम मेलओ, सोय सुत्तत्थाणं, अहवा जीवादिणवपदत्थभावाणं, अहवा दव्वखेत्तकालभावा, एए जत्थ समोसढा सव्वे अस्थि त्ति वुत्तं भवति, तं समोसरणं भण्णति। (निभा ६१८१ चू) ४. वादसंगम, अनेक दर्शनों या दृष्टियों का संगम। समवसरंति जेसु दरिसणाणि दिदीओ वा ताणि समोसरणाणि। (सूत्र १.१२.१ चू पृ २०७) समवसरण सम्भोज सांभोजिक साधुओं के पारस्परिक व्यवहार का एक प्रकार। वह स्थान, जहां साधु चातुर्मास, शेषकाल या स्थिरवास में इकट्ठे होकर रहते हैं। यत्र बहवः साधवो मिलन्ति तत्समवसरणं""तद्यथा--- वर्षावग्रह ऋतुबद्धावग्रहो वृद्धवासावग्रहश्चेति। (सम १२.२.२ वृ प २२) समयज्ञ वह मुनि, जो दूसरों के, स्वयं के तथा दोनों के सिद्धान्तों का ज्ञाता होता है। स समयज्ञो भवति"आत्मपरतदुभयसमयं जानाति। (आभा २.११०) समवहत समुद्घात की क्रिया में प्रवृत्त जीव। (प्रज्ञा ३.१७४) समयसत्य सत्यवचन का एक प्रकार। आगमगम्य पदार्थों का यथार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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