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________________ २७८ जैन पारिभाषिक शब्दकोश व्यावहारिक उद्धार पल्योपम २. योगसंग्रह का एक प्रकार । शरीर, भक्त, पान, उपधि तथा (अनु ४२०) कषाय का विसर्जन। (द्र उद्धार पल्योपम) 'विउस्सज्जे'त्ति व्युत्सर्गो द्रव्यभावभेदभिन्नः। (सम ३२.१.४ प ५५) व्यावहारिक उद्धार सागरोपम ३. कायोत्सर्ग। (अनु ४२२) 'व्युत्सर्गः' कायोत्सर्गः। (बृभा ५५९६ वृ) (द्र उद्धार सागरोपम) ४. आभ्यन्तर तप का एक प्रकार। व्यावहारिक काल (द्र द्रव्यव्युत्सर्ग, भावव्युत्सर्ग) समयक्षेत्र अथवा मनुष्यलोक (मनुष्यक्षेत्र) में सूर्य और चन्द्र व्युत्सर्ग प्रतिमा द्वारा प्रवर्तित दिन-रात, पक्ष-मास आदि कालविभाग। प्रतिमा का एक प्रकार । विवेक-प्रतिमा के द्वारा हेय वस्तुओं समयक्षेत्रं-मनुष्यलोकः। तत्रैव सूर्यचन्द्रप्रवर्तितो का भेदज्ञान पुष्ट होने पर कायोत्सर्ग करना-उनके ममत्व व्यावहारिकः कालो विद्यते। (जैसिदी १.३५ वृ) का विसर्जन करना। व्यावहारिक क्षेत्र पल्योपम व्युत्सर्गप्रतिमा-कायोत्सर्गकरणमेव। (अनु ४३४) (स्था २.२४४ वृप ६१) (द्र क्षेत्र पल्योपम) व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त व्यावहारिक क्षेत्र सागरोपम प्रायश्चित्त का एक प्रकार। गमनागमन, स्वप्न, नदीसंतरण (अनु ४३४) आदि प्रसंगों पर कायोत्सर्ग करना। (द्र क्षेत्र सागरोपम) विओसग्गो कातुस्सग्गो गमणागमणसुविणणईसंतरणादिसु। ___ (आवचू २ पृ २४६) व्यावहारिक नय द्रव्य के स्थल पर्याय को ग्रहण करने वाली नयदष्टि।। व्युत्सृष्टकाय (भग १८.१०७) वह व्यक्ति, जो शरीर का प्रतिकर्म नहीं करता, शरीर की (द्र व्यवहार नय) सार-संभाल नहीं करता। 'वोसट्ठकाए' त्ति अपडिकम्मसरीरो उच्छूढसरीरो त्ति वुत्तं व्याविद्ध होति। (सूत्र १.१६.१ चू पृ २४६) ज्ञान का एक अतिचार । आगम पाठ को आगे-पीछे करना। सूत्रमध-उपरिव्यत्यासेन क्रियमाणं व्याविद्धम्। व्युद्ग्राहित (बृभा २९६ वृ) वह व्यक्ति, जो पूर्वाग्रह से ग्रस्त होने के कारण दुर्बोध्य है। व्युद्ग्राहिताः-कुप्रज्ञापकदृढीकृतविपर्यासः""उक्तञ्चव्युच्छित्तिनय पुव्वं कुग्गाहिया केई, बाला पंडियमाणिणो। नेच्छंति कारणं सोउं, दीवजाए जहा णरे॥ (भग ७.९४) (स्था ३.४७८ वृ प १५६) (द्र पर्यायार्थिकनय) व्युत्सर्ग व्युपरतक्रियाअनिवृत्ति (तसू ९.४१) १. शुक्लध्यान का एक लक्षण । अनासक्त भाव से शरीर और (द्र समुच्छिन्नक्रियाअप्रतिपाति) उपधि का त्याग। निःसङ्गतया देहोपधित्यागो व्युत्सर्गः। व्रत प्रतिमा (स्था ४.७० वृ प १८१) उपासकप्रतिमा का दूसरा प्रकार, जिसमें प्रतिमाधारी उपासक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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