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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें वेलन्धर नामक देव की वक्तव्यता है तथा जिसका परावर्तन करने से वेलंधर नामक देव उपस्थित हो जाता है। (नन्दी ७८) (द्र अरुणोपपात) वेष्टक एक प्रकार का छन्द, जिसमें एकार्थक शब्दों का संकलन होता है। वेष्टकाः - छन्दोविशेषाः एकार्थप्रतिबद्धवचनसंकलिका । (समप्र ८९ वृ प १०१ ) वैक्रियकाययोग वैक्रियशरीरवर्गणा के आलम्बन से होने वाली जीव की शारीरिक शक्ति और प्रवृत्ति । '... विउव्वियाहारा । उरलं मीसा कम्मण, इय जोगा. ॥ (कग्र ४.२४) वैक्रियमिश्रकाययोग (कग्र ४.२४) (द्र वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग) वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग वैक्रियकाययोग का कार्मणकाययोग और औदारिककाययोग के साथ होने वाला मिश्रण १. कार्मण योग के साथ होने वाला वैक्रिय शरीर का मिश्रण। देव और नरक में उत्पन्न होने वाला जीव आहार ले लेता है, किन्तु शरीर पर्याप्ति पूर्ण नहीं बांधता, उस अवस्था में कार्मण योग के साथ वैक्रिय-मिश्र होता है। २. औदारिक काययोग के साथ होने वाला वैक्रिय शरीर का मिश्रण । औदारिक शरीर वाले मनुष्य और तिर्यंच अपनी विशिष्ट शक्ति से वैक्रिय रूप बनाते हैं और उसको फिर समेटते हैं परन्तु जब तक औदारिक शरीर पुनः पूर्ण न बन जाए तब तक औदारिक काययोग के साथ वैक्रिय मिश्र काययोग होता है । वैक्रियमिश्रकशरीरकायप्रयोगो देवनारकेषूत्पद्यमानस्यापर्याप्तकस्य, मिश्रता चेह वैक्रियशरीरस्य कार्मणेनैव । लब्धिवैक्रियपरित्यागे त्वौदारिकप्रवेशाद्धायामौदारिकोपादानाय प्रवृत्ते वैक्रियप्राधान्यादौदारिकेणापि वैक्रियस्य मिश्रता । (भग ८.६१ वृ) Jain Education International वैक्रियमिश्रशरीरकाययोग २७३ (औप १७६) (द्र वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग) वैक्रिय लब्धि नाना प्रकार के रूपनिर्माण में समर्थ योगजनित शक्ति वैक्रियाऽऽहारकनामादिकर्मोदयसमुत्थास्तावद् वैक्रियाssहारकशरीरकरणादिका लब्धयो भवन्ति । (विभा ८०१ मवृ) वैक्रियवर्गणा वैक्रिय शरीर के प्रायोग्य पुद्गल - समूह । ततश्चैकोत्तरवृद्ध्या वर्धमानाः प्रचुरद्रव्यनिवृत्तत्वात् तथाविधसूक्ष्मपरिणामत्वाच्च वैक्रियशरीरस्य ग्रहणयोग्या अनन्ता वर्गणा भवन्ति । (विभा ६३१ ) वैक्रिय शरीर विविध रूप बनाने में समर्थ शरीर । यह नैरयिक तथा देवों के जन्मजात होता है। वैक्रिय लब्धि से सम्पन्न मनुष्यों और तिर्यञ्चों तथा वायुकाय के भी होता है। विविधरूपकरणसमर्थं वैक्रियम्, नारकदेवानां, वैक्रियलब्धिमतां नरतिरश्चां वायुकायिकानाञ्च । (जैसिदी ७.२५ वृ) वैक्रियशरीरबन्धननाम नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से गृहीत और गृह्यमाण वैक्रिय शरीर के पुद्गलों का परस्पर तथा तैजस और कार्मण के पुद्गलों के साथ संबंध स्थापित होता है । यदुदयाद् वैक्रियपुदगलानां गृहीतानां गृह्यमाणानां च परस्परं तैजसकार्मणपुद्गलैश्च सह सम्बन्धः तद्वैक्रियबन्धनम् । (प्रज्ञा २३.४३ वृ प ४७० ) For Private & Personal Use Only वैक्रिय समुद्घात समुद्घात का एक प्रकार । विक्रिया करने के लिए आत्मप्रदेशों को शरीर से बाहर निकालना । वैकुर्विकसमुद्घातसमुद्धतस्तु जीवप्रदेशान् शरीराद्वहिनिष्काश्य शरीरविष्कम्भबाहल्यमात्रमायामतश्च संख्येयानि योजनानि दण्डं निसृजति निसृज्य च यथास्थूलान् वैक्रियशरीरनामकर्मपुद्गलान् प्राग्बद्धान् शातयति । (सम ७.२ वृप ११) www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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