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________________ २२६ जैन पारिभाषिक शब्दकोश सव्वं गेहिं परिण्णाय, एस पणए महामुणी। पणतो महंतं मुणेति संसारं, पहाणो वा मुणी। (आ ६.३७ चू पृ २१२), वणिज्जति तमज्झयणं महापच्चक्खाणं। (नन्दी ७७ चू पृ५८) महाप्रश्नविद्या वाणी के द्वारा प्रश्न करने पर उत्तर देने वाली विद्या। विविधमहाप्रश्नविद्याश्च-वाचैव प्रश्ने सत्युत्तरदायिन्यः महाप्रश्नविद्याः। (समप्र ९८ वृ प ११५) महाप्राण परम समाधि और पूर्ण कायोत्सर्ग की अवस्था। वह सूक्ष्मध्यान, जिसकी साधना सम्पन्न होने पर चतुर्दशपूर्वी मुनि प्रयोजन उपस्थित होने पर अन्तर्मुहूर्त में चौदह पूर्वो की अनुप्रेक्षा कर सकता है-अपक्रम-व्युत्क्रम से उनका परावर्तन कर सकता है। भद्दबाहुस्सामी अच्छंति चोद्दसपुव्वी भणंति-दुक्कालनिमित्तं महापाणं ण पविट्ठो मि, इयाणिं पविट्ठो मि"।" महापाणं किर तदा अतिगतो होति, ताहे उप्पण्णे कज्जे अंतोमुहुत्तेण चोद्दस वि पुव्वाणि अणुप्पेहेन्जंति, उक्कइओवइयाणि चरेति। (आवचू २ पृ १८७) महाप्रातिहार्य तीर्थंकर के आठ चामत्कारिक अतिशय। चउतीसातिसयमिदे अट्ठ महापडिहेरसंजुत्ते। मोक्खयरे तित्थयरे॥ (त्रिप्र ४.९२८) (द्र प्रातिहार्य) महायान महापथ, क्षपकश्रेणि। महायानम्-महापथः क्षपकश्रेणिरिति तात्पर्यम। (आभा ३.७८) महाविकृति मानसिक विकार का हेतुभूत रस, जैसे-नवनीत, मद्य, मांस और मधु। चत्तारि महावियडी य होंति णवणीदमजमंसमधू। कंखापसंगदप्यासंजमकरीओ एदाओ॥ (मू३५३) (द्र विकृति) महाविदेह जम्बूद्वीप द्वीप का वह कर्मभूमि क्षेत्र, जो नीलवान् वर्षधर पर्वत से दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत से उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र से पूर्व में अवस्थित है। णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं, णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे णामं वासे पण्णत्ते। (जं ४.९८) मनुष्यक्षेत्रे भरतैरावतविदेहाः पञ्चदश कर्मभूमयो भवन्ति। (तभा ३.१६) महाविमानप्रविभक्ति कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें सौधर्म आदि कल्पों के आवलिका और प्रकीर्णक दोनों प्रकार के विमानों का विस्तृत वर्णन है। आवलिकाप्रविष्टानामितरेषां वा विमानानां प्रविभक्तिःप्रविभजनं यस्यां ग्रन्थपद्धतौ सा विमानप्रविभक्तिः, सा चैका स्तोकग्रन्थार्था द्वितीया महाग्रन्थार्था, तत्राऽऽद्या क्षुल्लिकाविमानप्रविभक्तिः द्वितीया महाविमानप्रविभक्तिः। (नन्दी ७८ मवृ प २०६) महावीथि महाभद्रा प्रतिमा पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-इन चारों दिशाओं में एकएक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग करना। इसका कालमान चार दिन-रात का होता है। चार दिन के उपवास से यह प्रतिमा पूर्ण होती है। महाभद्रायां पूर्वदिश्येकमहोरात्रं, एवं शेषदिक्ष्वपि, एषा दशमेन पूर्यते। (आवनि ५३० चू१ पृ२८६) (द्र भद्रा प्रतिमा) महामुनि १. जो समग्र कामासक्ति को छोड़कर धर्म के प्रति समर्पित होता है। २. प्रधान मुनि, जो महान् संसार को जानता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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