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________________ २२२ जैन पारिभाषिक शब्दकोश प्रवृत्तिर्मन:संयमः। (योशाव पृ८९३) मनःसंवर मन की प्रवृत्ति का निरोध। (स्था १०.१०) मनः समाधारणा मन का श्रुत में व्यवस्थापन या नियोजन। मनसः समिति-सम्यग् आडिति-मर्यादयाऽऽगमाभिहितभावाभिव्याप्त्याऽवधारणा-व्यवस्थापनं मन:समाधारणा। (उ २९.५७ शावृ प ५९२) मनःसमिति (सम २५.१.२) (द्र मन:समितियोग) मनुष्यायुष्क आयुष्य कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव मनुष्यभव को प्राप्त करता है। आयुरेवायुष्कम् मनुष्याः संमूर्छनगर्भजास्तेषामिदं मानुषम्। (तभा ८.११ वृ) मनोगुप्ति १. सावध संकल्प का निरोध। २. कुशल संकल्प का प्रयोग। ३. मन के कुशल और अकुशल संकल्प का निरोध। सावद्यसंकल्पनिरोधः कुशलसंकल्प: कुशलाकुशलसंकल्पनिरोध एव वा मनोगुप्तिः। (तभा ९.४) मनोदण्ड मन का दुष्प्रयोग। मन के द्वारा होने वाला अशभ चिन्तन। मन एव दुष्प्रयुक्तो दंडो भवति,.."जं असुभं मणे चिंतेति सो मणदंडो। (आवचू २ पृ७७) मनोदुष्प्रणिधान मन की वह अवस्था, जिसमें आर्तध्यान और रौद्रध्यान से संबद्ध एकाग्रता होती है। तिविहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणदुप्पणिहाणे, वयदुष्पणिहाणे, कायदुप्पणिहाणे। (स्था ३.९९) दुष्प्रणिधानम्-अशुभमनःप्रवृत्त्यादिरूपम्। (स्था ३.९९ वृ प ११५) मनःसमितियोग अहिंसा महाव्रत की एक भावना। संक्लेशकारक चिन्तन न करना। न कयावि मणेण पावएणं पावगं किंचि वि झायव्वं । एवं मणसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा। (प्रश्न ६.१८) मनोबल वह प्राण, जो चिन्तन की शक्ति के लिए उत्तरदायी है। (प्रसा १०६६) मनःसुप्रणिधान मन की वह अवस्था, जिसमें आत्मा की शुद्धि के लिए एकाग्रता होती है। (द्र कायसुप्रणिधान) मनसा शापानुग्रहसमर्थ वह मुनि, जिसमें मन से ही शाप देने और अनुग्रह करने की शक्ति होती है। मनसैव परेषां शापानुग्रहौ कर्तुं समर्थाः इत्यर्थः एवं वाचा कायेन। (औप २४ वृ पृ५२) मनुष्यक्षेत्र (भग ९.४) (द्र समयक्षेत्र, अर्धतृतीय द्वीप) मनुष्यगति गतिनाम कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव मनुष्यपर्याय का वेदन करता है। (प्रज्ञा २३.३९ वृ प ४६३) (द्र नरकगति) मनोबली वह लब्धिधारी मुनि, जो ज्ञानावरण और वीर्यान्तराय के प्रकृष्ट क्षयोपशम के कारण अन्तर्मुहूर्त में चतुर्दशपूर्व का अवगाहन कर लेता है। प्रकृष्टज्ञानावरणवीर्यान्तरायक्षयोपशमविशेषेण वस्तूद्धृत्यान्तर्मुहूर्तेन सकलश्रुतोदध्यवगाहनावदातमनसो मनोबलिनः। (योशावृ पृ ४२) मनोयोग मनोवर्गणा के आलम्बन से होने वाला जीव का मानसिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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