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________________ २०६ बादरवनस्पतिकायिक बादरनामकर्म के उदय से निष्पन्न स्थूल शरीरवाले वन (प्रज्ञा १.३० ) स्पतिकायिक जीव । (द्र बादरपृथ्वीकायिक) बादरवायुकायिक बादर नामकर्म के उदय से निष्पन्न स्थूल शरीरवाले वायुकायिक जीव, जो अलग-अलग होने पर दृश्य नहीं होते, असंख्य शरीर समुदित होने पर दृश्य बन जाते हैं। ( प्रज्ञा १.२७) (द्र बादरपृथ्वीकायिक) बादरसम्पराय संयत प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, निवृत्तिबादर और अनिवृत्तिबादरइन चार जीवस्थानों में वर्तमान मुनि, जिसके स्थूल कषाय उदय में रहता है। सम्परायः । बादरः - स्थूलः सम्परायः - कषायस्तदुदयो यस्यासौ बादर(तभा ९.१२ वृपृ २३० ) प्रमत्तादीनां संयतानां सामान्यग्रहणम् - बादरः साम्परायो यस्य सोऽयं बादरसाम्परायः । ( तवा ९.१२) बाल १. वह जीव, जो सर्वथा अविरत है, व्रत की चेतना से शून्य है. अविरई पडुच्च बाले आहिज्जइ । (सूत्र २.२.७५) बालः - अज्ञस्तद्वद् यो वर्त्तते विरतिसाधकविवेकविकलत्वात् स बालः - असंयतः । (स्था ३.५१९ वृ प १६५ ) २. वह व्यक्ति, जिसका आशय मिथ्याज्ञान से उपरक्त होने के कारण शिशु की तरह हित की प्राप्ति और अहित के परिहार से विमुख होता है । (द्र बालतप) बालतप मिथ्याज्ञान से उपरक्त आशय वाले तपस्वियों द्वारा किया जाने वाला अग्निप्रवेश आदि तप । मिथ्याज्ञानोपरक्ताशया बालाः शिशव इव हिताहितप्राप्तिपरिहारविमुखाः, तपो – जलानलप्रवेशे भृगुप्रपातादिलक्षणं, तेन तादृशा तपसा बालानां योगो बालसम्बन्धित्वाद्वा तपोऽपि बालम् । (तभा ६.१३ वृ) Jain Education International जैन पारिभाषिक शब्दकोश बालपण्डित संयतासंयत, वह जीव, जो आंशिक रूप में विरत है, व्रताव्रती है । विरयाविरइं पडुच्च बालपंडिए आहिज्जइ । ( सूत्र २.२.७५) अविरतत्वेन बालत्वाद् विरतत्वेन च पण्डितत्वाद् बालपण्डितः - संयतासंयत इति । (स्था ३.५१९ वृप १६५) (द्र विरताविरत) बालपण्डितमरण देशविरत - व्रताव्रती का करण । .....बालपंडियमरणं पुण देसविरयाणं ॥ ( उनि २२२ ) बालपण्डित वीर्य वीर्यलब्धि का एक प्रकार । देशविरत का संयमासंयममय पुरुषार्थ । (द्र बालवीर्य) बालमरण मरण का एक प्रकार । १. असंयति का मरण । अविरयमरणं बालं मरणं विरयाण पंडियं विंति । ( उनि २२२) २. बाल व्यक्ति अथवा अविरत व्यक्ति के आत्मघाती प्रयत्न, निदान और आर्त्त - रौद्रध्यान की दशा में होने वाला मरण । (भग २.४९ भा) बालवीर्य का एक प्रकार । अविरत का असंयममय पुरुषार्थ और सामर्थ्य, जो चारित्रमोह के उदय और वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से प्राप्त होता है। बालस्य - असंयतस्य यद्वीर्यं - असंयमयोगेषु प्रवृत्तिनिबन्धनभूतं तस्य या लब्धिश्चारित्रमोहोदयाद् वीर्यान्तरायक्षयोपशमाच्च सा तथा, एवमितरे अपि यथायोगं वाच्ये, नवरं पण्डितः - संयतो, बालपण्डितस्तु संयतासंयत इति ॥ (भग ८.१४५ वृ) For Private & Personal Use Only बालवैयावृत्त्यकर वह मुनि, जो बाल- शैक्ष साधु-साध्वियों की सेवा में नियुक्त होता है। (व्यभा १९४३) www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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