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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश १. राग-द्वेष, प्रियता - अप्रियता के प्रकम्पनों से मुक्त रहकर देखना- जानना । आत्मा के द्वारा आत्मा को देखना - ज्ञानचेतना के द्वारा दीनता, चंचलता आदि वृत्तियों को देखना । संपिक्खए अप्पगमप्पएणं । (दचूला २.१२) संधिं समुप्पेहमाणस्स एगायतणरयस्स । (आ ५.३० ) २. वह ध्यान, जिसमें आत्मदर्शन के द्वारा निर्विकल्प समाधि सिद्ध होती है। अन्तर्लक्ष्यात्मकेन अनिमेषप्रेक्षाध्यानेन निर्विकल्पसमाधिः सिद्ध्यति । (आभा. ९.१.५) आयंसघरपवेसो भरहे । ताहे अप्पाणं पेच्छति । ईहावूहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स अपुव्वकरणं झाणं अणुपविट्टो केवलणाणं उप्पाडेति । (आवचू १ पृ २२७ ) प्रेक्षा संयम संयम का एक प्रकार । स्थान, निषीदन और शयन के स्थान का प्रतिलेखन-प्रमार्जन करना । पेहासंजमो - जत्थ ठाण- निसीयण तुयट्टणं काउकामो पडि-लेहिय पमज्जिय करेमाणस्स संजमो भवति । (दअचू पृ १२) प्रेक्ष्य संयम प्रेक्ष्य क्रियामाचरन् संयमेन युज्यते । प्रेक्ष्येति चक्षुषा दृष्ट्वा स्थण्डिलं बीजजन्तुहरितादिरहितं पश्चादूर्ध्वनिषद्यात्वग्वर्तनस्थानानि विदधीतेत्येवमाचरतः संयमो भवति । (तभा ९.६ वृ पृ १९८) (द्र प्रेक्षा संयम ) प्रेम (द्र प्रेयस्पाप) (भग १.२८६ वृ) प्रेयस्पाप पापकर्म का दसवां प्रकार । रागात्मक प्रवृत्ति से होने वाला अशुभ कर्म का बंध। (आवृ प ७२) 'पेज्जे' त्ति प्रियस्य भावः कर्म वा प्रेम, तच्चानभिव्यक्तमायालो भलक्षणभेदस्वभावमभिष्वङ्गमात्रम् । (स्था १.१०० वृ प २४) प्रेयस्प्रत्यया क्रिया क्रिया का एक प्रकार । राग के कारण होने वाली प्रवृत्ति । Jain Education International प्रेम - रागो मायालो भलक्षणः । प्रेषक वह मुनि, जो संदेशवाहक के रूप में नियुक्त होता है। (व्यभा १९४३) २०१ प्रेष्य प्रतिमा उपासक प्रतिमा का नौवां प्रकार, जिसमें प्रतिमाधारी उपासक कर्मकरों के द्वारा भी आरंभ (हिंसा) नहीं कराता, वह अपने कुटुम्ब का कार्यभार दूसरों को सौंप देता है, इसलिए वह उससे निवृत्त रहता है नवमी – प्रेष्यारम्भवर्जनप्रतिमा भवति, यस्यां नव मासान् यावत् पुत्रभ्रातृप्रभृतिषु न्यस्तसमस्तकुटुम्बादिकार्यभारतया धनधान्यादिपरिग्रहेष्वल्पाभिष्वङ्गतया च प्रेष्यैरपि - कर्मकरादिभिरपि आस्तां स्वयमारम्भान् सपापव्यापारान् महतः कृष्यादीनिति भावः । (प्रसा ९९० वृप २९५ ) (स्था २.३५ वृ प ४० ) प्रेष्यप्रयोग देशावकाशिक व्रत का एक अतिचार । संकल्पित देश से बाहर व्यापार आदि के प्रयोजन से प्रेष्य को भेजना। बलाद्विनियोज्यः प्रेष्यस्तस्य प्रयोगो, यथाभिगृहीतप्रविचारदेशव्यतिक्रमभयात् 'त्वयाऽवश्यमेव तत्र गत्वा मम गवाद्यानेयम् इदं वा तत्र कर्तव्यम्' इत्येवंभूतः प्रेष्यप्रयोगः । (उपा १.४१ वृ पृ १९ ) प्रोषधोपवास पर्व तिथियों में किया जाने वाला उपवास । प्रोषधशब्दः पर्व पर्यायवाची । प्रोषधे उपवासः प्रोषधोपवासः । (तवा ७.२१.१०) (द्र पौषधोपवास) फ For Private & Personal Use Only फलचारण चारण ऋद्धि का एक प्रकार, जिसके द्वारा साधक फलों के जीवों की विराधना न करते हुए उनके ऊपर से गमन कर सकता है। वहिदू जीवे तल्लीणे वणफलाण विविहाणं । वरम्मि जं पधावदि स च्चिय फलचारणा रिद्धी ॥ (त्रिप्र ४.१०३८) www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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