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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश पूर्वसंस्तवं जननी - जनकादिद्वारेण पश्चात्संस्तवं श्वश्रूश्वसुरादिद्वारेणात्म-परवयोऽनुरूपं संबन्धं भिक्षार्थं घटयतः पूर्वपश्चात्संस्तवपिण्डः । ( योशा १.३८ वृ पृ १३५ ) पूर्वरतपूर्वक्रीडितविरतिसमिति (द्र पूर्वरतानुस्मरणवर्जन) पूर्वरतानुस्मरणवर्जन ब्रह्मचर्य महाव्रत की एक भावना। पूर्व भुक्त कामभोग की स्मृति का वर्जन । प्रव्रज्यापर्यायात् पूर्वी गृहस्थपर्यायस्तत्र रतं - क्रीडितं विलसितं यदङ्गनाभिः सह तस्यानुस्मरणात् कामाग्निस्तत्स्मरणेन्धनानुसन्धानतः सन्धुक्षते, अतस्तद्वर्जनं श्रेय इति भावयेत् । (तभा ७.३ वृ) ( प्रश्न ९.१० ) पूर्वरात्र - अपरात्र पूर्व रात्रि का अंतिम भाग और पश्चिम रात्रि का पूर्व भाग, मध्यरात्रि का समय । (भग २.६६ ) पूर्ववत् अनुमान पूर्वपरिचित लिङ्ग के द्वारा होने वाला वस्तु का प्रत्यभिज्ञान, जैसे- मेघघटा को देखकर वर्षा का अनुमान करना। पूर्वोपलब्धेनैव लिंगेण नाणकरणं । ( अनु ५१९ चू पृ ७५) पूर्वविद् (द्र पूर्वधर) पूर्वाङ्ग चौरासी लाख वर्ष (८४०००००) । ( तवा ९.३७) चउरासीइं वाससयसहस्साइं से एगे पुव्वंगे। ( अनु ४१७) इच्छयमाणेण गुण पणसुण्णं चउरासीतिगुणितं वा । काऊण तत्तिवारा पुव्वंगादीण मुण संखं ॥ पुव्वंगे परिमाणं पण सुण्णा चउरासीती य । (अनुचू पृ ३७) Jain Education International पूर्वानुपूर्वी औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी का एक प्रकार। अनुलोम क्रमप्रथम से गणना प्रारम्भ करना । प्रथमात्प्रभृति आनुपूर्वी अनुक्रमः परिपाटी पूर्वानुपूर्वी । (द्र आनुपूर्वी) पूर्वार्द्ध १८३ ( अनु १४७ हावृ पृ ४१ ) (आव ६.३) (द्र पुरिमार्द्ध) पृथक्त्व १. एक सामयिकी संज्ञा, जो दो से लेकर नौ तक की संख्या के लिए व्यवहृत होती है । पुहुत्सद्दी दोसु आरद्धो जाव णव लब्धंति । (आवनि ३२ चू पृ ४१ ) पृथक्त्वं च समयपरिभाषया द्विप्रभृत्यानवभ्यः सर्वत्र द्रष्टव्यम् । (विभा ६०८ वृपृ २७३ ) २. पर्याय का एक लक्षण । संयुक्त पदार्थों में भिन्नता की प्रतीति का कारणभूत पर्याय, जैसे- यह इससे भिन्न है । पृथक्त्वं - संयुक्तेषु भेदज्ञानस्य कारणभूतं पृथक्त्वम्, यथा -अयमस्मात् पृथक् । (जैसिदी १.४६ वृ) पृथक्त्व अनुयोग अनुयोग की एक व्याख्यापद्धति, जिसके अनुसार द्रव्यानुयोग आदि का विभक्तीकरण किया गया है और जिसमें नयपद्धति से विचार करना अनिवार्य नहीं है। अहत्ते अणुओगो चत्तारि दुवार भासई एगो । हत्ताणुओगकरणे ते य तओ वि वोच्छिन्ना ॥ .......जुगमासज्ज विभत्तो अणुओगो तो कओ चउहा ॥ (विभा २२८६, २२८८) पार्थक्येन व्यवस्थापने सति नास्त्यसौ नयावतारः । (विभा ९५० वृ) पृथक्त्व विक्रिया विक्रिया का एक प्रकार। अपने शरीर से भिन्न प्रासाद, मण्डप आदि का निर्माण करना । For Private & Personal Use Only पृथक्त्वविक्रिया स्वशरीरादन्यत्वेन प्रासादमण्डपादिविक्रिया । ( तवा २.४९ ) पृथक्त्व-वितर्क सविचार शुक्लध्यान का एक प्रकार । पृथक्त्व का अर्थ-भेद, वितर्क www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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