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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश परलोकाशंसाप्रयोग संलेखना का एक अतिचार । 'परलोक में मैं देवता बनूं'इस प्रकार की आकांक्षा करना । परलोकाशंसाप्रयोगो 'देवोऽहं स्याम्' इत्यादि । ( उपा १.४४ वृ पृ २१ ) परवाद वह मत या सिद्धांत, जो बौद्ध आदि अन्य दार्शनिकों द्वारा सम्मत है I परवादा: - शाक्यादिमतानि । (औपवृ प ३३) परविवाह करण स्वदारसंतोष व्रत का एक अतिचार। अपनी और अपने आत्मीयों की संतान के अलावा अन्य का विवाह करना । परेषाम् - आत्मन आत्मीयापत्येभ्यश्च व्यतिरिक्तानां विवाहकरणं परविवाहकरणम् । ( उपा १.३५ वृ पृ १३ ) परव्यपदेश अतिथिसंविभाग व्रत का एक अतिचार। 'यह देय आहार किसी दूसरे का है ' - यह बहाना बनाकर न देना । ‘परव्यपदेशः 'परकीयमेतत् तेन साधुभ्यो न दीयते इति साधुसमक्षं भणनम् । (उपा १.४३ वृ पृ १९ ) परव्याकरण तीर्थंकर की वह वाणी, जो पूर्वजन्म की स्मृति का हेतु बनती है । परवइवागरणं पुण, जिणवागरणं जिणा परं नत्थि । (आनि ६६ ) परशरीरानवकांक्षाप्रत्यया क्रिया अनवकांक्षाप्रत्यया क्रिया का एक प्रकार। दूसरे के शरीर की क्षति की उपेक्षा कर की जाने वाली प्रवृत्ति । (स्था २.३४) परसंग्रह नय संग्रह का एक प्रकार। विशेष को उपेक्षित कर सत्तामात्र ग्रहण करने वाला दृष्टिकोण, जैसे- विश्व एक है। अशेषविशेषेष्वौदासीन्यं भजमानः शुद्धद्रव्यं सन्मात्रमभिमन्यमानः परसंग्रहः । (प्रनत ७.१५) परसमय Jain Eccurarernational (अनु ६०७) १६९ परसमयवक्तव्यता प्रज्ञापन की वह विधा, जिसमें अन्यतीर्थिकों के दार्शनिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जाता है। जत्थ णं परसमए आघविज्जइ पण्णविज्जइ परूविज्जइ दंसिज्जड़ निदंसिज्जइ उवदंसिज्जइ । से तं परसमयवत्तव्वया । ( अनु ६०७ ) परस्परोदीरित दुःख वह दु:ख, जो मिथ्यादृष्टि वाले नारक जीवों द्वारा परस्पर दिया जाता है। परस्परोदीरितानि च दुःखानि नरकेषु नारकाणां भवन्ति । मिथ्यादृष्टयो भवप्रत्ययविभङ्गानुगतत्वादालोक्य परस्परमेवाभिघातादिभिर्दुःखानि । (तभा ३.४) परहस्तपारितापनिकी क्रिया पारितापनिकी क्रिया का एक प्रकार। दूसरे के हाथ से स्वयं या दूसरे को परिताप दिलाना । परहस्तेन तथैव च तत्कारयतः परहस्तपारितापनिकी । (स्था २.१० वृप ३८ ) परहस्तप्राणातिपात क्रिया प्राणातिपात क्रिया का एक प्रकार। दूसरे के हाथ से स्वयं अथवा दूसरों के प्राणों का अतिपात करना । परहस्तेनापि तथैव परहस्तप्राणातिपातक्रिया । (स्था २.१२ वृ प ३८) पराक्रम १. वह प्रयत्न, जो कार्यनिष्पत्ति में सक्षम होता है। पराक्रमश्च स एव साधिताभिमतप्रयोजनः । (भग १.१४६ वृ) २. वह सामर्थ्य, जिसके द्वारा शत्रु का निराकरण होता है । पराक्रमस्तु शत्रुनिराकरणमिति । (भग १.१४६ वृ) For Private & Personal Use Only पराघातनाम कर्म नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव अपने प्रभाव के कारण दूसरे को अभिभूत कर देता है । यदुदयात् पुनरोजस्वी दर्शनमात्रेण वाक्सौष्ठवेन वा महानृपसभामपि गतः सभ्यानामपि त्रासमापादयति प्रतिवादिनश्च प्रतिभाविघातं करोति तत्पराघातनाम | (प्रज्ञा २३.५३ वृ प ४७३) www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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