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________________ १६४ जैन पारिभाषिक शब्दकोश नोइन्द्रिययमनीय क्रोध, मान, माया और लोभ की उदीरणा न करना। जं मे कोह-माण-माया-लोहा वोच्छिण्णा नो उदीरेंति, सेत्तं नोइंदियजवणिजे॥ (भग १८.२१०) नोकर्म कर्म-पुदगलों की उदयोत्तरकालीन अवस्था, इस अवस्था में वे निर्जरा के योग्य बन जाते हैं। वेदितरसं कर्म नोकर्म। (भग ७.७५ वृ) नोकर्मवर्गणा कर्म, भाषा, मन और तैजस-इन चार वर्गणाओं को छोड़कर शेष उन्नीस वर्गणाएं। सेसएक्कोणवीसवग्गणाओ णोकम्मवग्गणाओ। (धव पु १४ पृ५२) नोकर्मशरीर कर्म की सहायक सामग्री। चार शरीर-औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस। ओरालिय-वेगुब्विय-आहारय-तेजणामकम्मुदये। चउ णोकम्मसरीरा, कम्मेव य होदि कम्पइयं ॥ कर्मसहकारित्वेन ईषतकर्मत्वाच्च नोकर्मशरीरत्वसंभवात्। (गोजी २४४ वृ) नोपरीत-नोअपरीत सिद्ध, जो न परीत है, न अपरीत-दोनों अवस्था से परे है। णोपरित्ते-णोअपरित्ते सादीए अपज्जवसिते। (जीवा ९.८२) नोभवोपपातगति उपपात गति का एक प्रकार। सिद्ध जीव तथा परमाणु की एक समय में होने वाली गति। नोभवः-भवव्यतिरिक्तः कर्मसम्पर्कसम्पाद्यनैरयिकत्वादिपर्यायरहित इति भावः, स च पुद्गलः सिद्धो वा। (प्रज्ञा १६.३३ वृ प ३२८) णोभवोववायगती विहा पण्णत्ता, तं जहा-पोग्गलणोभवोववायगती य सिद्धणोभवोववायगती य॥ (प्रज्ञा १६.३३) नोशब्दरूपगन्धरसस्पर्शानुपाती ब्रह्मचर्य की दसवीं गुप्ति (कोट), जिसमें शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श में आसक्त नहीं बनने का निर्देश है। सद्दे रूवे य गंधे य, रसे फासे तहेव य। पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए॥ (उ १६ सूत्र १२ गाथा १०) नोकषाय ईषत् कषाय, कषाय का उपजीवी कषाय। जैसे-हास्य, रति आदि। कषायैः सहचारिणो नोकषाया इति, उक्तं चकषायसहवर्त्तित्वात्, कषायप्रेरणादपि। हास्यादिनवकस्योक्ता, नोकषायकषायता। (प्रज्ञा २३.३६ वृ प ४६९) नोसंज्ञीनोअसंज्ञी केवलज्ञानी और सिद्ध जो समनस्क और अमनस्क-इन दोनों अवस्थाओं से परे होते हैं। नोसंज्ञीनोअसंज्ञी च केवली सिद्धश्च। (प्रज्ञा २८.१२० वृ प ५१५) नोसातसौख्यप्रतिबद्ध ब्रह्मचर्य की गुप्ति का एक प्रकार, जिसमें ब्रह्मचारी प्रियता और अनुकूल संवेदन में प्रतिबद्ध नहीं होता। नोसायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ। (सम ९.१) नोकषायवेदनीय चारित्रमोहनीय कर्म की एक प्रकृति । स्त्रीवेद आदि नोकषाय का वेदन करना। स्त्रीवेदादिनोकषायरूपेण वेद्यते तन्नोकषायवेदनीयम्। (प्रज्ञा २३.३४ वृ प ४६८) नोकसायवेयणिज्जे "णवविहे पण्णत्ते, तं जहा-इथिए, पुरिसवेए णपुंसगवेदे हासे रती अरती भए सोगे दुगुंछा।। (प्रज्ञा २३.३६) नोसूक्ष्मनोबादर सिद्ध, शरीर मुक्त जीव, जो सूक्ष्म और बादर नहीं होता। नोसूक्ष्मनोबादराः सिद्धाः। (प्रज्ञा ३.१११ वृ प १३९) नोस्त्रीकथा ब्रह्मचर्य महाव्रत की एक भावना। स्त्रीविषयक कथा का वर्जन करना, उनके श्रृंगार आदि की कथा न करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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