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________________ १६० निवृत्तिबादर जीवस्थान जीवस्थान/गुणस्थान का आठवां प्रकार । १. निवृत्ति का अर्थ है - विसदृशता । वह जीवस्थान, जिसमें एक साथ प्रविष्ट सब जीवों की विवक्षित एक समय में परिणामविशुद्धि समान नहीं होती । निवृत्तिः - समसमयवर्तिजीवानां परिणामविशुद्धेर्विसदृशता । निवृत्तिबादरजीवस्थाने भिन्नसमयवर्तिजीवानां परिणामविशुद्धिर्विसदृशी भवति, समसमयवर्तिजीवानां च विसदृशी सदृशी चाऽपि । ( षखं १ पृ १८४) २. जो निवृत्ति और बादर-स्थूल कषाय वाला है, उसकी आत्मविशुद्धि | निवृत्तिबादर का अपर नाम अपूर्वकरण भी है । निवृत्तियुक्तो बादरकषायो निवृत्तिबादरः । बादरः स्थूलः । इदमपूर्वकरणमपि उच्यते । (जैसिदी ७.१० वृ) निशीथ कालिक श्रुत का एक प्रकार । चार छेदसूत्रों में से एक, जिसमें प्रायश्चित्त का विधान और प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया का विवरण है। पच्छित्तमिहज्झयणे । ( नन्दी ७८ ) (निभा ७१ ) (निचू १ पृ ३५) इदमज्झयणं अववायबहुलं । निश्चयनय तात्त्विक अर्थ को स्वीकार करने वाला दृष्टिकोण । तात्त्विकार्थाभ्युपगमपरो निश्चयः । (द्र नैश्चयिक नय) निश्चित अवग्रहमति ( भिक्षु ५.१८) (तभा १.१६ वृ) (द्र असंदिग्ध अवग्रहमति ) निश्राणपद अपवाद पद, जिसका आसेवन मन्द श्रद्धा वाले मुनि करते हैं । Jain Education International निश्रीयते- - मन्द श्रद्धाकैरासेव्यत इति निश्राणं तच्च तत् पदं च निश्राणपदम् - अपवादपदमित्यर्थः । ( बृभा ६६१ वृ) निश्रास्थान मुनि की साधना में आलम्बन बनने वाले स्थान | जैन पारिभाषिक शब्दकोश धम्मणं चरमाणस्स पंच णिस्साद्वाणा पण्णत्ता, तं जहाछक्काया, गणे, राया, गाहावती, सरीरं । (स्था ५/१९२) निश्रित अवग्रहमति व्यावहारिक अवग्रह का एक प्रकार। पूर्व गृहीत हेतु के द्वारा विषय का ग्रहण करना, जैसे- पूर्व अनुभूत फूल के स्निग्ध, मृदु आदि स्पर्श का अनुभव करना । यदा त्वेतस्मादाख्याताल्लिङ्गात् परिच्छिनत्ति निश्रितं तदा स लिङ्गमवगृह्णातीति भण्यते । (तभा १.१६ वृ) निषद्या बैठने की विशिष्ट मुद्रा - आसन का प्रयोग । निषदनानि निषद्याः - उपवेशनप्रकाराः । (स्था ५.५० वृ प २८७) (द्र नैषधिक) निषद्या परीषह परीषह का एक प्रकार । साधना के अनुकूल एकान्त स्थान में उपस्थित होने वाला भय का प्रसंग, जो मुनि के द्वारा समभावपूर्वक सहनीय है। सुसाणे सुन्नगारे वा रुक्खमूले व एगओ । अकुक्कुओ निसीएज्जा न य वित्तासए परं ॥ तत्थ से चिट्ठमाणस्स उवसग्गाभिधारए । संकाभीओ न गच्छेज्जा उट्ठित्ता अन्नमासणं ॥ ( उ २.२०, २१ ) निषध वह वर्षधर पर्वत, जो महाविदेह क्षेत्र से दक्षिण में, हरिवर्ष से उत्तर में, पूर्वी लवण समुद्र से पश्चिम में और पश्चिमी लवणसमुद्र से पूर्व में स्थित है। यह हरिवंश और विदेहइन दोनों के मध्य विभाजन रेखा का काम करता है। महाविदेहस्स वासस्स दक्खिणेणं, हरिवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे सिहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते । (जं ४.८६ ) हरिवंशविदेहयोर्विभक्ता निषधः । (तभा ३.११ वृ) For Private & Personal Use Only निषेक एक साथ एक समय में उदयाभिमुख कर्मदलिकों का विभाग www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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