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________________ ९६ जैन पारिभाषिक शब्दकोश का केवलिसमुग्धाए""अट्ठसमइए पण्णते, तं जहा-पढमे समए कात्कुच्य दंडं करेइ, बीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, अनर्थदण्ड विरमण व्रत का एक अतिचार। भाण्ड की तरह चउत्थे समए लोयं पूरेइ पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छठे मुख, नयन आदि की विकारपूर्ण और हास्यजनक प्रवृत्ति समए मंथं पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे करना। समए दंडं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता सरीरत्थे भवइ॥ 'कौत्कुच्यम्' अनेकप्रकारा मुखनयनादिविकारपूर्विका परि(औप १७४) हासादिजनिका भाण्डानामिव विडम्बनक्रिया, अयमपि केशवाणिज्य तथैव। (उपा १.३९ वृ पृ१७) कर्मादान का एक प्रकार । केश वाले जीव-गाय, भैंस, स्त्री क्रमव्यवच्छिद्यमानबन्धोदय आदि का व्यापार। 'केसवाणिज्जे'त्ति केशवज्जीवानांगोमहिषीस्त्रीप्रभृतिकानां वह कर्म-प्रकृति, जिनका पहले बंध-विच्छेद और बाद में विक्रयः। (भग ८.२४२ वृ) उदय-विच्छेद होता है, जैसे-मतिज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण आदि। केसरिका क्रमेण पूर्वं बन्धः पश्चादुदय इत्येवंरूपेण व्यवच्छिद्यमानौ जिनकल्पी साधु का एक उपकरण। पात्र को साफ करने का बन्धोदयौ यासां ताः क्रमव्यवच्छिद्यमानबन्धोदयाः। वस्त्र-खण्ड। (कप्र पृ ४१) 'केशरिका'-प्रमार्जनार्थं चीवरखण्डम्। (भग २.३१ वृ) क्रिया (द्र पात्रकेसरिका) १. द्रव्य का एक देश से दूसरे देश में होने वाला गतिरूप कोटिसहित प्रत्याख्यान पर्याय, जो आंतरिक और बाह्य दोनों कारणों से होता है। प्रत्याख्यान का एक प्रकार। एक प्रत्याख्यान के अन्तिम दिन उभयनिमित्तापेक्षः पर्यायविशेषो द्रव्यस्य देशान्तरप्राप्तिहेतुः और दूसरे प्रत्याख्यान के प्रारंभिक दिन के बीच में समय का क्रिया। (तवा ५.७.१) व्यवधान न हो। २. जीव की कषायप्रत्ययिक अथवा योगप्रत्ययिक प्रवृत्ति, 'कोडीसहियं तिकोटीभ्यां-एकस्य चतुर्थादेरन्तविभागोऽ- जो कर्मबंध का हेतु बनती है। (स्थावृ प ३७) परस्य चतुर्थादेरेवारम्भविभाग इत्येवंलक्षणाभ्यां सहितं मिलितं यक्तं कोटीसहितं मिलितोभयप्रत्याख्यानकोटेश्चतुर्थादेः क्रियावादी करणम्। (स्था १०.१०१ वृप ४७२) १. वह वादी, जो अस्तित्ववाद, सम्यग्वाद, पुनर्जन्मवाद और आत्मकर्तृत्ववाद में विश्वास करता है। कोष्ठ किरियावादी यावि भवति, तं जहा-आहियवादी आहियधारणा की पांचवीं अवस्था, जिसमें अवधारित अर्थ सुरक्षित पण्णे आहि यदिट्ठी सम्मावादी नीयावादी संतिहो जाता है, विनष्ट नहीं होता। परलोगवादी "सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति। कोट्टे त्ति जहा कोटगे सालिमादिबीया पक्खित्ता अविणता (दशा ६.४) धारिजंति तहा अवातावधारितमत्थं गुरूवदि8 सुत्तमत्थं वा २. वह वादी, जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है अविणटुं धारयतो धारणा कोट्ठगसम त्ति कातुं कोटे त्ति । किन्तु उसके व्यापकत्व, कर्तृत्व आदि के विषय में विप्रतिपन्न वत्तव्वा। (नन्दी ४९ चू पृ ३७) कोष्ठकबुद्धि अस्थि त्ति किरियवादी, वदति नत्थि त्ति अकिरियावादी य। अण्णाणी अण्णाणं, विणइत्ता वेणइयवादी॥ लब्धि का एक प्रकार । कोष्ठ में रखे हुए धान्य की भांति (सूत्रनि ११८) अधीत ज्ञान को सुरक्षित रखने वाली योगज विभूति। किरियावादीणं अस्थि जीवो। अत्थित्ते सति के केसिंच """कोट्ठयधन्नसुनिग्गलसुत्तत्था कोट्ठबुद्धीया॥ सव्वगतो केसिंच असव्वगतो, केसिंच मुत्तो अमुत्तो. (विभा ७९९) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org है। Jain Education International
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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