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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश/भूमिका प्रारम्भिक कार्य मैंने किया। तत्पश्चात् इस कार्य में अनेक व्यक्तियों की सहभगिता रही है। प्रस्तुत कोश में लगभग ३६३२ शब्द हैं। समीक्षा समीक्षा के बिना ग्रन्थ की सर्वाङ्गीणता नहीं होगी। समीक्षा के लिए आवश्यक है पुनरीक्षा और वीक्षा। पुनरीक्षा, वीक्षा और शब्द संचयन में युवाचार्य महाश्रमण ने अत्यधिक श्रम किया, यह कहना पर्याप्त नहीं होगा। किन्तु जिस सूक्ष्मेक्षिका से निरीक्षण किया, वह इस कार्य की विशदता और सफलता का सेतुबंध बना। धर्मसंघ के दायित्व और अनेक कार्य-कलापों का सम्यक् निर्वाह करते हुए जो समय का नियोजन किया, वह उल्लेखनीय है। साध्वी विश्रुतविभा ने जिस निष्ठा से इस कार्य का संयोजन किया, उसकी धृति का उदहारण है। उसकी तत्परता कभी-कभी हमारी निश्चिन्तता के लिए चुनौती बन जाती थी। परिभाषा के आधारसूत्रों को खोजने में उसका मति-कौशल और कार्य-कौशल प्रस्फुट हो रहा है। प्रस्तुत कोश को व्यवस्थित आकार देने में साध्वीश्री सिद्धप्रज्ञा का योगदान बहुत उपयोगी रहा। उन्होंने प्रूफ निरीक्षण में सूक्ष्म दृष्टि का परिचय दिया है। एक दुर्बल शरीर वाले व्यक्ति का यदि मनोबल प्रबल हो तो वह बहुत कार्यकारी बन सकता है। संपादन कार्य में साध्वी जयविभा, समणी मुदितप्रज्ञा, समणी उज्ज्वलप्रज्ञा, समणी विनीतप्रज्ञा, समणी चारित्रप्रज्ञा, समणी शारदाप्रज्ञा आदि समणियों की सहभागिता रही, वह बहुत मूल्यवान् है। अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत कोश का अंग्रेजी अनुवाद मुनि महेन्द्रकुमारकुमारजी ने किया। वे हमारे धर्मसंघ के मनीषी संत हैं। जैनदर्शन, पाश्चात्य दर्शन और चिन्तन तथा अनेक भाषाओं के विज्ञाता है। उनकी श्रमनिष्ठा भी अपूर्व है। अंग्रेजी के प्रूफ-संशोधन में साध्वी वंदनाश्री एवं मुनि अभिजितकुमार ने भी निष्ठा के साथ श्रम किया है। संपूर्ति मुझे प्रसन्नता है कि हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में निर्मित जैन पारिभाषिक शब्दकोश गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी की आन्तरिक अभीप्सा का मूर्त रूप बन रहा है। इस कार्य में जिनका योग रहा, उन सभी साधुसाध्वियों और समणियों के लिए शुभाशंसा है कि वे जैन दर्शन के बहुआयामी विकास में निरंतर अपनी निष्ठा का अर्ध्य चढ़ाते रहे। २५ दिसम्बर २००८ आचार्य महाप्रज्ञ १. अभिधानराजेन्द्र कोश-विजय राजेन्द्र सूरि, लोगोस प्रेस, नई दिल्ली, प्रथम सन् १९१३, द्वितीय सन् १९१०, सप्तम् सन् १९३४ वि. सं. १९६७, १९३१ २. अल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोष-आचार्य श्री आनन्दसागरसूरीश्वर सं. गणी कंचनसागर, मुनि प्रमोदसागर, सेठ देवचन्द लालभाई जैन, पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत, सन् १९५४, वि. सं. २०१०, १९६९ उराभण, १९७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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