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________________ ६९ "I want to answer the call of nature." इस का शब्दार्थ होगा-"मैं प्रकृति के बुलाने का उत्तर देना चाहता हूं ।" परन्तु सब जानते हैं कि शब्दार्थ होते हुए भी यह अनुवाद भाव से बहुत दूर है । ऐसे ही अनुवाद इन पाश्रात्यों ने वेद, ब्राह्मणादि ग्रन्थों के किये हैं। तदनुसार ही ये यज्ञ को sacrifice समझ बैठे हैं । यज्ञ शब्द के अर्थ बड़े विस्तृत हैं । इस कोष में यज्ञ शब्द देखो। उन विस्तृत अर्थों में जो यज्ञ का स्वरूप है, उस का वर्णन करते हुए ही ब्राह्मणों में अद्भुत विज्ञान और सृष्टि-चक्र का वर्णन किया है । उस को न समझ कर ही पाश्चात्य लोग ब्राह्मणों में अपनी पूर्वकाल्पत (preconceivel) sacrifice ढूंढते रहते हैं । ३-वैदिक सूक्तों के कर्ताओं के भाव से ब्राह्मण बहुत परे हटे हुए है। प्रथम तो हम यह कहंग, कि वैदिक सूक्तों के कर्ता नहीं हैं । जो इन के कर्ता मानते है, उन की युनियां का खण्डन हम अपन ऋग्वेद पर व्याख्यान पृ० ४५ -७६ पर कर चुके हैं। पूर्वपक्षियों ने हमार लेख पर कोई आपत्ति नहीं उठाई । इस लिये अभी इस पर और न लिखेंगे । हां, दूसरे पक्ष का उत्तर अवश्य दगे । ब्राह्मणों का भाव मन्त्रों से बहुत परे हटा हुआ नहीं है, प्रत्युत ब्राह्मण तो मन्त्रा के साक्षात् अर्थ का दर्शन कराते हैं । कल्पविद्या और नित्य शब्दार्थसम्बन्ध विद्या से अपरिचित होने के कारण पाश्चात्याकं मनमें भय पड़ गया है कि एक शब्द का एक ही अर्थ सर्वत्र लेना चाहिये । अर्थ बने या न बने, वे उसी एक अर्थ से सर्वत्र काम चलाना चाहते हैं । ब्राह्मणों में एक २ शब्द के अनक अर्थ देखकर वे घबरा जात है । यह सत्य है कि बहुभक्तिवादीनि हि ब्राह्मणानि । निरुक्त ७ । २॥ 'ब्राह्मणग्रन्थ गुणों की सदृशता का बहुविभाग करके अनक शब्दों को पर्याय बनाते हैं,' पर स्मरण रहे कि इस गुणा का सदृशता का विभाग किये बिना कभी काम चल ही नहीं सकता । वैदभाषा तो क्या, संसारस्थ लौकिक भाषाओं में भी बहुधा गुणों की सदशता का विभाग करने से ही पर्याय बन हैं । वेद में स्वयं विशेष्य विशेषण की राति से इस गुण विभाग के करन का प्रकार आरम्भ किया गया है। देखोत्वं महीमवनिम् । ऋ० ४।१९।६॥ उवा पृथ्वी। ऋ० १११८५/७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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