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________________ समान पिता होने से ये दिल् और उषा इन देवों की बहन-समान हैं । इसी सारे रहस्य का अन्य गम्भीर आशयों के साथ इन शातपथीय कण्डिकाओं में रूपकालङ्कार* के रूप में वर्णन है। इस सारी कथा का विशेष वर्णन ऋषि दयानन्द प्रणीत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के ग्रन्थप्रामाण्याप्रामाण्य विषय में देखो । भट्ट कुमारलस्वामिकृत तन्त्रवार्तिक ५। ३ । ७ || में भी ऐसा ही मात्र लिखा है-- ___प्रजापतिस्तावत् प्रजापालनाधिकारादादित्य एवोच्यते । स चारुणोदयवेलायामुषसमुद्यन्नभ्यैत् । सा तदागमनादेवोपजायत इति तदुहितृत्वेन व्यपदिश्यते । तस्यां चारुणकिरणाख्यबीजनिक्षेपात् स्त्रीपुरुषयोगवदुपचारः ।। *रूपकालकार से जड़ जगत् की जो कथाएं वेद और ब्राह्मणादि ग्रन्थों में वर्णन की गई हैं, उन के सब अंश आर्यजनों में अनुकरणीय नहीं हैं । ये रूपकालकार तो प्रायः आधिदैविक तथ्यों को बताने के लिये ही कहे गये हैं । जैसे देखो शतपथ १।३।१।१५|| आदि में कहा है इयं पृथिव्यदितिः सेयं देवानां पत्नी। कि यह पृथिवी देवों की पत्नी है । तो क्या अनेक मनुष्यों की एक पनी हो सकता है । नहीं, नहीं। ब्राह्मणों में स्वयं कहा है नकस्यै बहवः सहपतयः। ऐ०३।२३॥ न हैकस्या बहवः सहपतयः। गो० उ०३।२०॥ एक स्त्री के एक काल में अनेक पति नहीं होते । ( भिन्न कालों में नियोग के रूप से होसकते हैं। ऐसे ही प्रजापति का अपनी कन्या के साथ सम्बन्ध जड़ जगत् की वार्ता है, आर्यों की सभ्यता का चिह नहीं। भट्ट कुमारिलखामि के ऐसे यथार्थ अर्थ पर मैक्समूलर विस्मित होता है । वह अपने प्राचीन संस्कृत साहित्य के इतिहास पृ० ५२९ पर कहता है Sometimes, however, we feel surprised at the precision with which even such modern writers as Kumarila are able to read the true meaning of their mythology. मैक्समूलर को यह बात नहीं कि इस कथा का वास्तविक अर्थ शतपथ माह्मण में ही अन्यत्र खोल दिया गया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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