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________________ हम यह नहीं कहते कि हम नामों सनस्त अर्थों को समझ गये हैं,परन्तु हम यह जानते हैं कि जब आर्यावर्तयि सायण प्रशांत भी इन के अर्थ का पूरा नहीं समझे, तो पाश्चात्य लोग भला क्या समझ हांगे । ब्राह्मणों में स्थल स्थल पर रूपकालंकार की कथायें भरी पड़ी है । देखो शतपथ १ । ७॥ ४ ॥ में कहा है प्रजापति ह वै स्वां दुहितरमभिदध्यौ । दिवं वोषसं वा मिथुन्येनया स्यामिति ता सम्बभूव ॥१॥....." स वै यज्ञ एव प्रजापतिः ॥४॥ * इस प्रकरण में प्रजापति नाम सूर्य का है। ब्राह्मणग्रन्थ स्वयं कहते हैंयो ह्येव सविता स प्रजापतिः । श० १२।३।५।१।। प्रजापतिर्वै सविता । ता० १६।५।१७॥ प्रजापतिर्वै सुपर्णो गरुत्मानेष सविता । श० १०।२।७४॥ अर्थात् सविता = सूर्य = आदित्य हा प्रजापाते है। यह प्रजापति हा यन्त्र है। यह बात पूर्वोत्त चतुर्थ कण्डिका में कही है। अन्यत्र भी ब्राह्मणग्रन्थ ऐसा ही कहते हैं । देखो यज्ञ उवै प्रजापतिः । कौ० १०॥१॥ प्रजापतिर्वै यज्ञः। तै० १।३।१०।१०॥ अर्थात् यक्ष प्रजापति है । यह यश ही सूर्य हैयज्ञ एव सविता । गो० पू० १॥३३॥ स यः स यज्ञो ऽसौ स आदित्यः । श० १४।१।१॥६॥ सविता को यज्ञ इस लिये कहा है कि इसी विष्णु सूर्य में हमारे सौर जगत् के सारे अमिहोत्रादि महाकार्य हो रहे हैं। इसी सविता = प्रजापति की दिव् = प्रकाश और उषा कन्या समान हैं । यही सविता प्रजापति अन्य देवों का जनक है। क्योंकि-- सविता वै देवानां प्रसविता । श० ॥१॥३॥६॥ कहा है, कि मावता परमात्मा और यह सूर्य देवों का उत्पादक है । ऐसा * तुलना करो ऐ. ३३॥ तां० ८१२११०॥ गलिङ्ग इस का अर्थ Impeller करता है । यह युक्त अर्थ नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016086
Book TitleVaidik kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwaddatta, Hansraj
PublisherVishwabharti Anusandhan Parishad Varanasi
Publication Year1992
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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